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बिहार में शिक्षा की असलियत : गांव से दूर स्कूल रहने से बच्चे छोड़ देते हैं पढ़ाई - आदिवासी बहुल गांव

जमुई जिले के आदिवासी अपनी स्थिति पर रो रहे हैं. आजादी के 70 साल बाद भी विकास की रोशनी टिमटिमाती नजर आती है. विकास के नाम पर रोड, स्कूल, पानी जैसी सुविधाओं से आज भी वंचित हैं.

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Published : Jun 25, 2019, 8:41 AM IST

जमुई: जमुई जिले के आदिवासी आज भी अपनी स्थिति पर रोने के के लिए विवश हैं. जिले के झाझा प्रखंड स्थित बरियाडी पंचायत के आदिवासी बहुल गांव में समस्याओं का अंबार लगा है.

गांव में नदी-नाले सूख चुके हैं. चापाकल से गंदा पानी निकल रहा है. बच्चों को पढ़ने के लिए 4 किलोमीटर दूर नरगंजो जाना पड़ता है. आजादी के 70 साल बाद भी विकास की रोशनी टिमटिमाती नजर आती है. संविधान में मिले विशेष अधिकार के वाबजूद इनकी स्थिति बदतर है.

स्थानीय निवासियों से बात करते संवाददाता.

अधूरा पड़ा है नल-जल का बोरिंग
ग्रामीणों का कहना है कि गांव में पीने के लिए शुद्ध पानी नहीं है. स्कूल नहीं होने से बच्चे कई किलोमीटर पैदल चलते हैं. दूरी होने के कारण कई बच्चें बीच में ही पढ़ाई छोड़ देते हैं. गांव में सड़क नहीं है. साल भर से सात निश्चय योजना अन्तर्गत बोरिंग का काम आज भी अधूरा पड़ा है. वही गांव में पिछड़ेपन की यह हाल है कि गांव में एक किराने की दुकान तक नहीं है. आपात स्थिति में लोगों को नरगंजो या फिर झाझा जाना पड़ता है.

सूखा पड़ा कुंआ

आदिवासियों की दयनीय स्थिति के लिए जिला प्रशासन जिम्मेदार
प्रख्यात समाजसेवी वत्स ने इसके लिए को जिम्मेदार ठहराया. उन्होने कहा कि जिला प्रशासन के किसी भी पदाधिकारियों को लाचार बेबस आदिवासियों की दशा का ख्याल नहीं है. भले ही संविधान में आदिवासियों के विकास और संवर्धन के लिए विशेष प्रावधान है. लेकिन अब तक इस समुदाय को विकास की मुख्य धारा से जोड़ा नहीं जा सका है. इनके विकास के लिए अलग से मंत्रालय भी बनाया गया है. लेकिन प्रशासन की उदासिनता के कारण यह समुदाय आज भी मुख्य धारा से नहीं जुड़ पाया है.

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