जमुई: सरकार महिलाओं में विशेषकर बेटियों को न्याय दिलाने के लिए गंभीर है. इसके नारे भी राह चलते दीवारों पर लिखे दिखाई पड़ जाते हैं. लेकिन न्यायालय में ही महिलाओं के लिए बनी स्पेशल अनुमंडल न्यायिक दंडाधिकारी (Special Sub-Divisional Judicial Magistrate) और परिवार न्यायालय के न्यायिक पदाधिकारी (Family Court Judicial Officer) की कुर्सी अगर लंबे समय तक खाली रहती है तो बेटियों को इंसाफ कैसे मिलेगा. यह बानगी सिर्फ जमुई जिले की ही नहीं, बल्कि बिहार के कई जिलों की है, जहां लंबे समय से महिलाओं से जुड़े मामलों की सुनवाई रुकी पड़ी है या बाधित रही है.
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किसी भी जिला जजशिप में एक परिवार न्यायालय होता है. जहां जिला जज स्तर के प्रधान न्यायाधीश ही महिलाओं से संबंधित मामले, जिनमें भरण पोषण, तलाक, विवाह विच्छेद अथवा परिवार के मेल के लिए अथवा टूटे रिश्ते को जोड़ने के लिए मुकदमे लाए जाते हैं और इसकी सुनवाई होती है. 6 जून 2021 से जमुई में परिवार न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश का पद खाली पड़ा है.
महीनों बीत गए सैकड़ों की संख्या में आधी आबादी यानी जमुई की लाखों महिलाओं से संबंधित मामले वाला यह कोर्ट रिक्त है. जिससे महिलाओं से संबंधित मुकदमों और उनके अधिकारों को लेकर लंबित मामलों पर कोई कार्रवाई नहीं हो पा रही. यह सिर्फ जमुई जिले का हाल नहीं है, बल्कि बिहार के 38 जिलों में से अधिकांश परिवार न्यायालय का कोर्ट खाली पड़ा है. हालांकि, अब चर्चा है कि जल्द ही इन न्यायालयों में प्रधान न्यायाधीश की नियुक्ति होने वाली है. जिससे एक एक पैसे और न्याय के लिए मोहताज महिलाओं में उम्मीद और खुशी दौड़ गई है.