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कभी गुलजार रहता था जमुई का बस अड्डा, अब बनता जा रहा है भूत बंगला

बिहार के जमुई बस डिपो की हालात बद से बदतर हो चली है. यहां खड़ी बसें अब कबाड़ में तब्दील हो रही है. आलम ये है कि ये बस डिपो अब भूत बंगले में तब्दील होता जा रहा है.

वीरान पड़ा बस डिपो.

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Published : Feb 27, 2019, 9:10 PM IST

जमुई: कभी अपनी भव्यता और यात्रियों से गुलजार रहने वाला जमुई जिले का बस डिपो अब विभागीय उदासीनता और उपेक्षा के कारण बदहाली के आंसू रो रहा है. आज इस बस डिपो में वीरानी छाई हुई है. यहां आलम ये है कि पूरा बस अड्डा भूत बंगले में तब्दील होता जा रहा है.

जमुई में बिहार सरकार के तत्कालीन परिवहन मंत्री कृष्ण सिंह ने जमुई बस डिपो का निर्माण सरकारी राज कोष से करवाया था. उस समय इस डिपो में यात्रियों की भारी-भरकम भीड़ रहती थी. आज, आलम ये है कि यहां यात्रियों का सूखा पड़ गया है. इसकी वजह प्रशासनिक उदासीनता है.

जमुई बस डिपो.

डिपो के हालात
जिले का सरकारी बस डिपो आज भूत बंगले में तब्दील हो चुका है. सरकारी उपेक्षा और उदासीनता की शिकार बस डिपो में वर्षों से खड़ी बसें जंग खा चुकी है. परिसर में जंगल ने अपना पैर पसार लिया है. कार्यालय में पड़ी टेबल-कुर्सियां धूल फांक रही हैं. बस डिपो परिसर में असामाजिक तत्वों ने अपना डेरा जमा लिया है.

होते थे 120 कर्मचारी, आज...
बता दें कि यहां कभी 120 कर्मचारियों की मौजूदगी रहती थी. आज इस बदतर हालात में ये घटकर 8 रह गई है. इनके भरोसे बस डिपो संचालित हो रहा है. इसमें एक डीएस, एक बड़ा बाबू, एक कोष अधिकारी, दो चेकर और दो क्लीनर शामिल हैं.

वीरान पड़ा बस डिपो.

यात्रियों में कमी
बस डिपो में न सिर्फ कर्मियों की संख्या दिन-ब-दिन कम हो गयी. बल्कि डिपो में बसों की संख्या भी कम होती चली गई. लिहाजा समय के साथ यात्रियों की संख्या में भी काफी गिरावट आई है. अब तो आलम यह है कि यहां से दिन भर में 1 बस ही चलती है.

क्या कहते हैं कर्मचारी
बस डिपो में काम करने वाले कर्मियों का कहना है कि एक जमाना था जब इस बस डिपो से दिन भर में करीब 50 हजार की आमदनी होती थी. लेकिन अब 4 से 5 हजार रुपये की ही आमदनी होती है. बिहार राज्य पथ परिवहन निगम के मुखिया संतोष कुमार निराला हैं. उनको जानकारी देने की जहमत भी उठाई गई है. लेकिन हालात आज हालात ज्यों के त्यों हैं.

सूनी पड़ा टिकट घर.

इस ड्रीम का क्या हुआ
2016 में इस बस डिपो की हालत को सुधारने के लिए यहां से लग्जरी बसें चलाने की बात की जा रही थी. यहां से पटना, रांची, कोलकाता के अलावा बोकारो के लिए बसें चलाई जानी थी. लेकिन ये सारी बातें कागजों में सिमट कर रह गई. ऐसे में सवाल उठता है कि दिवा स्वप्न दिखाकर सरकारी तंत्र का काम धीमें क्यों चलता है. वहीं, इस डिपो के लिए सरकार और प्रशासन क्यों सोया हुआ है.

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