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'लॉकडाउन में खाने के बिना मर रहे हैं साहेब'

मजदूरों के परिवार वालों ने कहा कि हम लोगों को काफी दिक्कत हो रही है. खाने के बिना मर रहे है. किसी तरह घर में छिपे हुए है. हमे खाने पीने को कुछ मिलना चाहिए. हम लोग रोज कमाने खाने वाले लोग है.

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Published : May 4, 2020, 7:08 PM IST

लॉकडाउन
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गोपालगंज : जिले के मांझा प्रखण्ड के कविलासपुर गांव के पास सालों से नहर के किनारे झोपड़ी बना कर रहने वाले कटाव पीड़ित मजदूर दाने-दाने को मोहताज हो गए है. इस लॉकडाउन के कारण इन मजदूरों के सामने भुखमरी की स्थिति उतपन्न हो गई है. 45 परिवारों का यह बस्ती अब किसी मददगार का इंतजार कर रहा है.

दरअसल देश और दुनिया में फैले कोरोना वायरस के कहर से हर ओर हाहाकार मचा हुआ है. लोग डरे और सहमे हुए है. वहीं, इस महामारी से निजात पाने के लिए सरकार द्वारा लॉकडाउन घोषित कर दिया गया है. इस लॉक डाउन का सबसे ज्यादा असर दैनिक मजदूरों पर पड़ा है, क्योंकि ये मजदूर प्रतिदिन कमाने और खाने वाले हैं. लेकिन लॉकडाउन के बाद इन मजदूरों को ना ही कोई काम मिल रहा है, और ना ही ये घर से बाहर निकल रहे हैं. आलम यह है कि ये और इनके परिवार खाने को मोहताज हो गया है.

देखें पूरी रिपोर्ट

मजदूरों और महिलाओं ने सुनाई अपनी दुखड़ा
मजदूरों के ऊपर उतपन्न हुई समस्या को ग्राउंड स्तर पर जब ईटीवी भारत की टीम ने पड़ताल की. तब कई ऐसे मजदूर मिले जिनके घर कई दिनों से भोजन नहीं बन पाए है. ये मजदूर किसी तरह भूखे और एक टाइम खाना-खा कर अपनी जिंदगी गुजार रहे है. हमारी टीम जब मांझा प्रखण्ड के कविलासपुर गांव के पास नहर किनारे रहने वाले कटाव पीड़ितों के पास पहुंची, तो यहां रहने वाले मजदूरों और महिलाओं ने अपनी दुखड़ा सुना डाली.

मजदूर के परिवार वाले

6 दिनों से नहीं बना है घर में भोजन
मजदूरों के परिवार वालों ने कहा कि हम लोगों को काफी दिक्कत हो रही है. खाने के बिना मर रहे है. किसी तरह घर में छिपे हुए है. हमे खाने पीने को कुछ मिलना चाहिए. हम लोग रोज कमाने खाने वाले लोग है. जब से यह बंदी हुई है, तब से हमलोगों के ऊपर दुःखों का पहाड़ टूट पड़ा है. खाना बनाने के लिए घर में अनाज नहीं है. घर से बाहर निकलने पर पुलिस मारती है. वहीं, स्थानीय वेदांती देवी ने कहा कि 6 दिनों से घर में भोजन नहीं बना है. कोई देखने वाला अभी तक नहीं आया है.

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