गोपालगंज: जिले के कुचायकोट प्रखंड के जमुनिया गांव में वीरेंद्र टीबी की बीमारी से जूझ रहा है. बीमार वीरेंद्र का घर गंडक की लहरों ने उजाड़ दिया था. वहीं, पत्नी ने पांच साल पहले ही बीमारी के चलते दम तोड़ दिया था. अब उसके परिवार में कुल तीन लोग बचे हैं. कोरोना के इस संकट में वीरेंद्र के बच्चे खाने को मोहताज हो गए हैं.
टूटी खाट पर लेटा वीरेंद्र बस कडंक्टर था. बीमारी के बाद से उनकी नौकरी छूट गई. इसके बाद से वो अपने उजड़े हुए घर पर बीमारी का दंश झेल रहा है. एक बेटा है जिसे पढ़ाना है और एक बेटी जो सयानी हो गई है उसकी शादी करनी है. लेकिन बीमारी ने उसे बिस्तर पर पटक रखा है. कोरोना संकट के इस दौर में अब वीरेंद्र के परिवार पर दोहरी मार पड़ी है. बच्चे इधर-उधर से खाना मांग-मांगकर अपनी और वीरेंद्र की भूख मिटा रहे हैं.
गोपालगंज से अटल बिहारी पांडेय की रिपोर्ट नहीं मिली सरकारी सुविधा
बेटा विकास, जो अपने पिता के इलाज के सरकार से गुहार लगा रहा है. बताता है कि किसी तरह अभी तक खाना पीना चल रहा है. लेकिन पापा का इलाज नहीं हो पा रहा है. इसके लिए रुपया नहीं है. किसी तरह कुछ बेचकर काम चलाते रहे हैं. किसी प्रकार की कोई सरकारी मदद नहीं मिली है. वहीं, गुमसुम बैठी बेटी निपु यह आस लगाए है कि सरकार उनकी मदद करे.
इस टूटे तख्त पर सोते हैं बच्चे संबंधी करते रहे मदद
वीरेंद्र के संबंधी बिगू मांझी ने बताया कि वो उनकी मदद कर रहे हैं. हम मजदूर हैं, खाना खुराक की मदद कमा कर लाता हूं तो कर देता हूं. सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली है.
देशभर में कोरोना का कहर बरपा हुआ है. ऐसे में गरीबों पर दुखों का भारी पहाड़ टूट पड़ा है. वीरेंद्र जैसे न जाने कितने परिवार देश में हैं, जो बीमारी के साथ-साथ भुखमरी जैसी स्थिति से गुजर रहे हैं. सभी को सरकारी रहनुमा का इंतजार है.