गोपालगंज: जिले के कुचायकोट प्रखण्ड के मिश्रावली गांव के लोगों को सालों बाद भी गांव से निकलने के लिए सुरक्षित रास्ता नहीं मिल सका है. जिससे दस हजार की आबादी वाले इस गांव के लोगों को रेलवे लाइन पार कर आवागमन करना पड़ता है.
स्थानीय लोगों के मुताबिक यह जान को खतरे में डालने वाला काम है लेकिन रास्ता नहीं होने की वजह से मजबूरी में ऐसा करना पड़ता है. वहीं, बाढ़ के समय यहां के लोगों को गांव में ही कैद होना पड़ता है. कई बार अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों से गुहार लगाने के बाद भी कोई सुनावाई नहीं हुई.
जान जोखिम में डालकर कर रहे आवागमन
स्थानीय लोगों के मुताबिक देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डिजिटल इंडिया की बात करते हैं. इसके बावजूद इस डिजिटल इंडिया में आज भी लोगों को मूलभूत सुविधा के लिए दर-दर की ठोकरे खानी पड़ती है. बिहार के गोपालगंज में कुचायकोट प्रखण्ड के मिश्रावली गांव के हजारों लोगों को आवागमन के लिए जान जोखिम में डालकर रेलवे लाइन को पार करना पड़ता है. ऐसे में कब बड़ी दुर्घटना हो जाये, यह कोई नहीं जानता है.
एक ओर दाहा नदी तो दूसरी ओर रेलवे लाइन की समस्या है. ऐसे में गांव के लोगों के लिए समस्या तब और बढ़ जाती है, जब दाहा नदी अपने उफान पर होती है. जिससे यहां के लोग अपने ही गांव में कैद हो जाते हैं.
जान जोखिम में डालकर कर रहे आवागमन 'रेलवे लाइन पार कर बाजार और सड़क तक पहुंचते हैं'
स्थानीय लोगों की मानें तो इस गांव में सासामुसा या गोपालगंज जाने के लिए 7 से 10 किलोमीटर की लंबी दूरी तय करनी पड़ती है. मरीजों की दवा करानी हो या बच्चो को स्कूल जाना हो. हर तरह से ग्रमीणों को परेशानी झेलनी पड़ी है. गांव के बगल में ही एनएच और बाजार है. लेकिन समस्या यह है कि गांव से निकलने के लिए दूसरा कोई रास्ता नहीं है. मजबूरन रेलवे लाइन पार कर बाजार या सड़क तक पहुंचते हैं.
कई बार अधिकारियों और जन प्रतिनिधियों से सड़क बनाने और दाहा नदी पर पुल बनाने की मांग की गई. लेकिन आज तक किसी ने इस ओर ध्यान देना उचित नहीं समझा. वहीं, इस संदर्भ में जब प्रखण्ड विकास अधिकारी दीपचंद्र जोशी से बात की गई तो उन्होंने कहा कि इस बारे में जानकारी नहीं है. इसके बारे में जानकारी प्राप्त कर उचित कार्रवाई की जाएगी.