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गोपालगंज: कुचायकोट का किंग कौन?, डॉन काली पाण्डेय या बाहुबली पप्पू पाण्डेय

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Published : Oct 25, 2020, 7:23 PM IST

गोपालगंज के कुचायकोट विधानसभा पर सबकी नजरें टिकी हुई है. क्योंकि दो बाहुबलियों के बीच जबरदस्त भिड़ंत होने वाली है.और दोनों ही अपनी अपनी जीत का राग अलाप रहे हैं. एक तरफ हैं जेडीयू प्रत्याशी बाहुबली अमरेंद्र कुमार पांडेय उर्फ पप्पू पाण्डेय तो दूसरी तरफ हैं कांग्रेस प्रत्याशी बाहुबली काली पाण्डेय.

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गोपालगंज:बिहार विधानसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई है. कुचायकोट की जंग भी काफी दिलचस्प हो गई है. इस बार के चुनाव में दो पांडेय एक दूसरे को टक्कर दे रहे हैं. एक तरफ हैं जेडीयू प्रत्याशी 45 वर्ष के बाहुबली अमरेंद्र कुमार पांडेय उर्फ पप्पू पाण्डेय तो दूसरी तरफ हैं कांग्रेस प्रत्याशी 70 वर्ष के बाहुबली काली पाण्डेय.

काली पाण्डेय और पप्पू पाण्डेय में मुकाबला
बिहार की राजनीति में हमेशा से जाति हावी रहती है. कुचायकोट में दो पांडेय जी जनता से वोट मांग रहे हैं. काली पांडेय आखिरी चुनाव लड़ने की बात कह रहे हैं.और लूट को बंद करने, अपराध मुक्त क्षेत्र बनाने के मुद्दे को लेकर जनता के पास जा रहे हैं. वही अमरेंद्र पाण्डेय उर्फ पप्पू पाण्डेय अपने 15 वर्षो के कार्यकाल में किये गए विकास के काम को लेकर जनता के बीच मौजूद हैं. और बचे हुए विकास कार्यों को पूरा करने का मौका जनता से मांग रहे हैं. हालांकि कुचायाकोट के मुकाबले को रालोसपा प्रत्याशी सुनीता कुशवाहा त्रिकोणीय बना रहीं हैं.

पेश है रिपोर्ट

जातीय समीकरण
वहीं दो पाण्डेय के बीच जातीय समीकरण में बंटवारा होता दिख रहा है. ब्राह्मण बहुल क्षेत्र में ब्राह्मण ही निर्णायक साबित होते रहे हैं. ऐसे में इस बार काली पाण्डेय के चुनावी मैदान में उतरने से ब्राह्मणों का वोट में बंटता हुआ नजर आता है. वहीं भूमिहारों की बात करें तो भूमिहार वोट दो खेमों में बंटते दिख रहे हैं. एक खेमा काली तो दूसरा खेमा पप्पू के समर्थन में दिख रहा है.

अमरेंद्र कुमार उर्फ पप्पू पांडेय
अमरेंद्र कुमार उर्फ पप्पू पांडेय पांचवीं बार जेडीयू की टिकट पर अपनी किस्मत आजमा रहे हैं. इन्हें हराना उतना आसान नहीं होगा क्योंकि पप्पू जनता के बीचे काफी लोकप्रिय हैं. वैसे तो अमरेंद्र पांडेय को बाहुबली कहा जाता है, लेकिन इलाके में इनका खासा क्रेज है. जनता का कहना है कि अमरेंद्र कुमार ने क्षेत्र का काफी विकास किया है. सड़क, बिजली, शिक्षा का स्तर सुधारा है. अमरेंद्र अपने इलाके में सामाजिक कामों के लिए मशहूर हैं.

अमरेंद्र कुमार उर्फ पप्पू पांडेय

काम के आधार पर वोट का भरोसा
अमरेंद्र कुमार उर्फ पप्पू पांडेय का कहना है कि इस बार जनता इतिहास बनाएगी और मुझे जिताएगी. पप्पू ने कुचायकोट इलाके में पॉलिटेक्निक कॉलेज की सौगात दी है. और अब विधायक ने यूनिवर्सिटी खुलवाने का वादा किया है.

आपराधिक छवि
अमरेंद्र कुमार उर्फ पप्पू पांडेय के ऊपर हत्या, रंगदारी, वसूली, जैसे कई मामले हैं. हाल ही में आरजेडी नेता जेपी यादव के घर ट्रिपल मर्डर में भी इनको आरोपी बनाया गया था, लेकिन आरोप सिद्ध नहीं हो सका. विधायक के भाई सतीश पाण्डेय और भतीजा जिला परिषद अध्यक्ष मुकेश पाण्डेय जेल में बंद हैं. अमरेंद्र 12वीं पास हैं और करोड़ों की संपत्ति के मालिक हैं.

राजनीतिक करियर
पार्टी कोई भी हो अमरेंद्र को कोई फर्क नहीं पड़ता. पहली बार 2010 में बसपा के टिकट पर विधायक बने. 2015 में पार्टी बदल ली और जेडीयू से चुनाव लड़ा और जीते. हालांकि अमरेंद्र जनता के बीच हमेशा साफ छवि बनाने की कोशिश में रहते हैं. वो रॉबिन हुड की तरह जनता की मदद करते हैं. ये दूसरी बात है कि उनके नाम दर्ज मामलों से उनका एक अलग ही रुप नजर आता है.

कांग्रेस प्रत्याशी बाहुबली काली पाण्डेय
काली पाण्डेय को बिहार के सारे बाहुबली कभी अपना गुरु मानते थे. काली पाण्डेय एलजेपी के कद्दावर नेताओ में एक माने जाते थे. एलजेपी के महासचिव भी रहे. लेकिन लोजपा से टिकट नहीं मिलने के कारण ये कुचायकोट सीट से कांग्रेस के कैंडिडेट बन गए.

कांग्रेस प्रत्याशी बाहुबली काली पाण्डेय

काली पांडेय पर बन चुकी है फिल्म
कहा जाता है कि 1987 में आई रामोजी राव की फिल्म 'प्रतिघात' में विलेन 'काली प्रसाद' का रोल इन्हीं पर बेस्ड था. पांडेय गोपालगंज से लोकसभा सांसद भी रह चुके हैं. पांडेय के दबदबे का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य में आज जितने भी बाहुबली नजर आते हैं, उनके उदय से पहले काली ही उत्तर बिहार के सबसे बड़े बाहुबली माने जाते थे.

राजनीतिक करियर
काली पांडेय का राजनीतिक करियर 1984 में शुरू हुआ था. उसी साल इन्होंने गोपालगंज से लोकसभा चुनाव निर्दलीय जीता था. 2003 में पांडे, राम विलास पासवान की एलजेपी में शामिल हो गए. 1989 में प्रतिद्वंदी उम्मीदवार नगीना राय पर पटना में बम से हमला करवाने का इनपर आरोप लगा था. लेकिन पांडेय बच गए. उस वक्त उन्होंने कहा था कि खुद नगीना राय की पत्नी ने यह माना है कि इस हमले में उनका हाथ नहीं है. काली पांडे ने बाद में राजीव गांधी का सपोर्ट किया और 1989 में कांग्रेस में शामिल हो गए. 1989 और 1991 में काली पांडे ने कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव भी लड़ा. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस छोड़कर लालू यादव की आरजेडी ज्वाइन कर ली और 1999 में लोकसभा का चुनाव भी लड़ा.

कई सालों तक कांग्रेस में रहने के बाद काली पांडे रामविलास पासवान के बुलाने पर लोकजन शक्ति पार्टी में शामिल हो गए थे. एलजेपी में काली पांडे ने कई अहम पदों की शोभा बढ़ाई. हालांकि हाल ही में उन्होंने एलजेपी को छोड़ कांग्रेस का दामन थाम लिया और वर्तमान में चुनावी अखाड़े में ताल ठोंक रहे हैं.

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