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बिहार के इस मंदिर की कहानी अद्भुत, यहां संत ने ली थी समाधि, धड़कन के बदले सीता राम की ध्वनि सुनकर डॉक्टर के छूटे थे पसीने

बिहार में ऐसे कई मंदिर हैं, जिसका इतिहास और मान्यताएं प्रचलित हैं, लेकिन गोपालगंज का इटवा धाम की कहानी अद्भुत है. यहां इटवा बाबा ने समाधि ली थी. बीमार पड़ने पर डॉक्टर ने बाबा का धड़कन जानने के लिए आला लगाया था तो राम सीता की ध्वनि सुनाई दी थी. पढ़ें पूरी खबर.

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Dec 10, 2023, 6:15 AM IST

गोपालगंज का इटवा धाम

गोपालगंजः बिहार के गोपालगंज इटवा धाम का इतिहास काफी पुराना है. जितना पुराना इतिहास है, उतनी ही दिलचस्प इस मंदिर की कहानी है. यह मंदिर जिले के उचकागांव प्रखंड के मीरगंज मुख्य पथ पर बाण गंगा नदी किनारे स्थित है. यहां के महान संत श्रीश्री 108 रामशरण दास जी महाराज उर्फ इटवा बाबा की ख्याति दूर-दूर तक फैली है.

गोपालगंज इटवा धाम का पोखर

आकर्षण का केंद्र हैं मंदिरः मान्यता है कि इस प्रसिद्ध धार्मिक स्थल पर संत इटवा बाबा ने जिंदा समाधि ली थी, जिस कारण यह स्थान काफी प्रसिद्ध है. बताया जाता है कि महान संत रामशरण दास जी महाराज उर्फ इटवा बाबा एक महान संत थे. उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान और चमत्कारों के लिए जाना जाता था. उनकी समाधि स्थल पर एक भव्य मंदिर बनाया गया है, जो बिहार के लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है.

12 वर्ष की आयु में घर छोड़ दिए थेः इटवा बाबा के शिष्य और इटवा धाम के महंत श्रीश्री 108 रामजी दास जी महाराज ने बताया कि महाराज जी यूपी के देवरिया जिले के बरहज खरवानिया के निवासी थे. दो भाईयों में बड़े थे, जिन्होंने 12 वर्ष की आयु में घर छोड़ कर ईश्वर की भक्ति में लीन हो गए. विभिन्न जगहों पर भ्रमण करने के बाद जब 20 वर्ष के थे तब 1945 में अमावस्या के दिन यहां पहुंचे थे और एक कुटिया बना कर रहने लगे.

गोपालगंज इटवा धाम का गोशाला

इस जगह पर पहले शमशान थाः महंत बताते हैं कि इस स्थान पर श्मशान हुआ करता था. महराराज भगवान के चरणों में अपना सब कुछ न्योछावर कर भक्ति में लीन हो गए. महाराज की भक्ति को देख हथुआ राज की महारानी ने इस स्थान से श्मशान हटाकर नदी के उसे पार कर दिया. यहां माता सीता और भगवान राम की मंदिर बनवाई गई. महाराज राम-सीता के अन्नय भक्त थे.

धड़कन में सीता राम की आवाज सुनाई दी थीः रामजी दास जी महाराज बताते हैं कि एक बार इटवा बाबा की तबीयत खराब हो गई थी. जांच के लिए डॉक्टर को बुलाया गया था. जब डॉक्टर ने आला लगाकर धड़कन की जांच की थी तो पसीने छूट गए थे. संत बताते हैं कि इटवा बाबा की धड़कन से सीता राम की ध्वनि निकल रही थी. कुछ दिनों के बाद वे जिंदा समाधि ले लिए थे.

"इस जगह पर शमशान था. श्रीश्री 108 श्री रामशरण दास जी महाराज उर्फ इटवा बाबा 12 साल की आयु में अपना घर छोड़कर भगवान की शरण में आ गए थे. घूमते-घूमते 20 साल की आयु में 1945 में अमावस्या के दिन महाराज यहां आए. यहीं पर भगवान की भक्ति में लीन हो गए. इटवा बाबा इसी जगह पर समाधि लिए थे. इसके बाद यहां मंदिर का निर्माण किया गया."-रामजी दास जी महाराज, इटवा बाबा के शिष्य

समाधि स्थल पर भव्य मंदिरःइटवा बाबा के समाधि स्थल पर भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया है. मंदिर में नक्काशीदार दरवाजे हैं. मंदिर के बाहर एक विशाल परिसर है, जिसमें गौशाला है, जहां 70 से ज्यादा गायें है. इसके साथ एक आश्रम और तालाब है. इटवा धाम एक लोकप्रिय तीर्थस्थल है. हर साल नवरात्रि, शरद पूर्णिमा और अन्य धार्मिक अवसरों पर मेले का आयोजन होता है.

गोपालगंज इटवा का समाधि स्थल

यहां आने से आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती हैः संत बताते हैं कि लाखों श्रद्धालु इटवा धाम आते हैं और इटवा बाबा की समाधि पर पूजा करते हैं. मान्यता है कि इटवा धाम एक शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक स्थान है. यहां आने वाले श्रद्धालुओं को शांति और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है. जिले के लोगों का भी इस मंदिर से अपार आस्था जुड़ा है. बिहार के साथ-साथ अन्य राज्य के भी श्रद्धालु इटवा बाबा के समाधि स्थल आते हैं.

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