गोपालगंज:देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू ने उन्हें श्रद्धांजलि दी. डॉ. राजेंद्र प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1884 को बिहार के जीरादेई गांव में हुआ था. उनके पिता का नाम महादेव सहाय और माता का नाम कमलेश्वरी देवी था. पिता फारसी और संस्कृत भाषाओं के विद्वान तो माता धार्मिक महिला थी.
दो सालों से प्राचार्य का पद है रिक्त
राजेन्द्र बाबू ने अपनी प्राथमिक शिक्षा जीरादेई गांव में पांचवीं तक पूरी की थी. लेकिन पांचवीं के बाद आठवीं तक उन्होंने हथुआ के ईडन स्कूल से पूरी की. इसके बाद आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए छपरा चले गए. तब से उनकी यादें आज भी इस विद्यालय में मौजूद है. इस स्कूल में कार्यरत शिक्षक नरेंद्र मिश्रा से बात की गई तो उन्होंने कहा कि पिछले दो साल से इस स्कूल में प्राचार्य के पद पर कार्यरत हूं. लेकिन अभी तक तत्कालीन प्राचार्य ने प्रभार नहीं दिया है, इसे लेकर मामला कोर्ट में लंबित है.
डॉ.राजेन्द्र प्रसाद उच्च विद्यालय पहले 'ईडन' था स्कूल का नाम
इस विद्यालय की नींव 1881 में रखी गई थी, जिसके संदर्भ में नरेंद्र मिश्रा ने बताया कि जब हमारे पूर्वज गुलामी के बेड़ियों से जकड़े थे. तब तत्कालीन वायसराय ईडन क्षेत्र भ्रमण के दौरान हथुआ आए थे. उनके ठहरने के लिए इस भवन का निर्माण किया गया था. इसके बाद तत्कालीन युवराज गोपेश्वर शाही के पढ़ने के लिए इस भवन को स्कूल में तब्दील कर दिया गया. उस वक्त इस स्कूल का नाम ईडन स्कूल पड़ा था.
अब तक नहीं 'राजेन्द्र बाबू' की प्रतिमा राजेंद्र बाबू ने किया था स्कूल में विजिट
उन्होंने बताया कि राजेन्द्र बाबू के पिता स्व. महादेव बाबु हथुआ राज में दीवान के पद पर कार्यरत थे. उस वक्त राजेन्द्र बाबू ने यहां तीन साल छठी, सातवीं और आठवीं तक कि शिक्षा ग्रहण की थी. राष्ट्रपति बनने के बाद इस विद्यालय में आये थे और विजिटर बुक पर उन्होंने लिखा था कि यहां आने का अवसर प्राप्त हुआ. जहां से मैंने शुरूआती शिक्षा ग्रहण की थी. मैं इस विद्यालय के उज्ज्वल भविष्य की कामना करता हूं. उन्होंने अपनी आत्मकथा में भी इस विद्यालय का जिक्र किया है.
दो सालों से प्राचार्य का इंतजार 1996 में बदला स्कूल का नाम
साल 1881 मेंईडन स्कूल के नाम से स्थापित इस स्कूल का नाम देश के प्रथम राष्ट्रपति के नाम पर रखने की मांग लंबे समय से की जा रही थी. वर्ष 1996 में तत्कालीन जिला अधिकारी अतुल कुमार जमुआर के कार्यकाल में स्कूल का नाम बदल कर राजेन्द्र बाबू के नाम पर कर दिया गया.
137 साल पुराने भवन में संचालित स्कूल
वर्तमान में ये स्कूल पूरी तरह से उपेक्षा का सामना कर रहा है. करीब 137 साल पुराने भवन में ही ये स्कूल संचालित होता है. विकास के नाम पर स्कूल के विशाल परिसर की चारदीवारी और मुख्य गेट बनाए गए हैं. इसके अलावा फर्श पर ग्रेनाइट लगाया गया है. लेकिन आज तक इस विद्यालय परिसर में उनकी एक भी प्रतिमा नहीं लगाई गई है.
अब तक नहीं लगी राजेन्द्र बाबू की प्रतिमा
इस संदर्भ में नरेंद्र मिश्र ने बताया कि दो वर्ष पहले यहां प्रतिमा लगाने की बात हुई थी जिसकी तैयारी चल रही है. जल्द ही यहां राजेन्द्र बाबू की प्रतिमा लगाई जाएगी. प्रभारी प्राचार्य ने कहा कि इस विद्यालय का काफी विकास हुआ है. बावजूद अभी भी इस विद्यालय के लिए बहुत कुछ करने की आवश्यकता है.