गोपालगंज: जिले में कोरोना और बाढ़ के बाद यूरिया की कालाबजारी की मार पड़ने से किसान बेहाल हैं. किसानों को इस वर्ष विभाग द्वारा सरकारी दर पर यूरिया वितरण नहीं किया गया. इस वजह से किसान बाजारों से दुगने दामों पर यूरिया की खरीदारी को विवश हैं. खुदरा व्यापारी यूरिया खाद का अभाव बताकर किसानों से मनमानी कीमत वसूल रहे हैं. किसानों का आरोप है कि कृषि विभाग के अधिकारियों की लापरवाही का खामियाजा आम किसान उठा रहे हैं.
दरअसल मार्च के शुरुआत से ही किसानों पर मार पड़नी शुरू हो गई. पहले कोरोना कहर में लागू लॉकडाउन ने किसानों की खेती चौपट कर दी. इसमें 14 प्रखंड के हजारों किसान को परेशानी का सामना करना पड़ा. कुछ दिन बाद ही हालात जब सामान्य हुए तब किसानों ने अपने खेतों में धान की फसल लगाई. समय से बारिश हुई और धान के बिचड़े भी पड़े.
खेतों में यूरिया का छिड़काव शुरू किसानों के अरमानों पर फिरा पानी
कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार धान के आच्छादन का लक्ष्य 84 हजार हेक्टेयर रखा गया था. इस लक्ष्य की शत-प्रतिशत प्राप्ती की गई. किसानों के चेहरे पर खुशियां झलक रही थी. लहलहाती फसल को देख किसानों ने सोचा था कि इस बार फसल की पैदावार अच्छी होगी. इसके बाद अचानक आई अत्यधिक बारिश और बाढ़ ने किसानों के अरमानों पर पानी फेर दिया.
यूरिया की कालाबाजारी शुरू
जिले के पांच प्रखंड बाढ़ की चपेट में है. यहां के किसानों द्वारा लगाए गए फसल पूरी तरह डूब गए हैं. कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार 3657.2 हेक्टेयर में लगे फसल अत्यधिक बारिश और बाढ़ के कारण प्रभावित हुआ. जिसमें कुल 43.5 प्रतिशत फसल का नुकसान हुआ. किसानों की गाढ़ी कमाई पर बाढ़, बारिश और कोरोना की मार पड़ गई. वहीं अन्य प्रखंडों में लगे धान के फसल में यूरिया की जरूरत पड़ी. किसानों के खेतों में यूरिया छिड़काव का समय चल रहा है. लेकिन सरकारी कीमत पर यूरिया नहीं मिल रही है. कहीं खाद बीज के दुकान पर यूरिया मिल भी रही है, तो दुकानदार किसानों से सरकारी दर से काफी अधिक कीमत वसूल रहे हैं.
खेत में यूरिया छिंटता किसान महंगे दामों पर खरीदनी पड़ रही यूरिया
यूरिया का कालाबाजारी करने का खेल शुरू हो गया है. यूरिया की किल्लत पिछले 15 दिनों से बाजार में बनी हुई है. बिस्कोमान से लेकर सरकारी दुकानों तक हर जगह से यूरिया गायब है. ऐसे में किसानों यूरिया के कालाबजारी से हलकान हैं. सरकारी आंकड़ों के अनुसार जिले में वर्तमान समय में 19 हजार मैट्रिक टन यूरिया की आवश्यकता है, लेकिन विभाग के पास 7135.500 मैट्रिक टन यूरिया प्राप्त हुआ है. जिसमें 5878.18 मैट्रिक टन यूरिया की बिक्री हो चुकी है. जबकि वर्तमान में 1257.32 मैट्रीक टन यूरिया भंडारण है. बावजूद किसानों तक यूरिया नही पहुंच रही है. इस वजह से किसानों को महंगे दामों पर यूरिया खरीदनी पड़ रही है.
मनमाने दाम वसूल रहे दुकानदार
यूपी का सीमावर्ती क्षेत्र होने के चलते पूर्व में जिले में यूरिया की कमी होने पर किसान उत्तर प्रदेश के बाजारों से यूरिया खरीद कर अपनी फसल में छिड़काव कर लेते थे. वहीं इस बार सीमावर्ती उत्तर प्रदेश के बाजारों में भी यूरिया की कमी है. ऐसे में किसान यूरिया के लिए भटक रहे हैं. कृषि विभाग ने भी कम आवंटन मिलने के कारण यूरिया को लेकर अपना हाथ खड़ा कर लिया है. यूरिया की कमी का फायदा उठाकर कुछ खाद के दुकानदार यूरिया के कालाबाजारी में लग गए हैं. सरकार द्वारा निर्धारित 265 रुपये प्रति बोरी यूरिया की जगह किसानों से 350 से 400 रुपये प्रति बोरी यूरिया का दाम वसूला जा रहा है.
यूरिया की कालाबाजारी शुरू किसानों की परेशानी का सबब बना यूरिया
ऐसे में इस साल किसानों की आफत कम होने का नाम नहीं ले रही है. पहले कोरोना के चलते लॉकडाउन से किसान परेशान रहे. जून महीने में शुरुआती अच्छी बारिश के बाद जुलाई में अत्यधिक वर्षा ने किसानों की परेशानी बढ़ाई. अगस्त के दूसरे सप्ताह से अच्छी बारिश होने से किसानों ने राहत की सांस ली और कृषि कार्य में तेजी आई. वहीं अब बढ़े हुए यूरिया के दाम फिर से किसानों की परेशानी का सबब बने हुए हैं.