गोपालगंज:शिक्षा को लेकर सरकारें करोड़ों लाखों रुपये खर्च करने का दावा करती है. पर इन दावों की सच्चाई कुछ और कहती है. बिहार में शिक्षा व्यवस्था का हाल भी ऐसा ही है. जहां सरकार बच्चों को बेहतर शिक्षा मुहैया करने की दावा करती है तो जमीनी हकीकत कुछ और है. बिहार के गोपालगंज के सदर प्रखंड के एक मात्र एसएस बालिका उच्चतर माध्यमिक विद्यालय के दो शिक्षको के भरोसे 24 सौ छात्राओं की भविष्य संवर रहा है. जिसमें से रोजाना करीब 2292 छात्राएं स्कूल आती हैं. इन्हें गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने और भविष्य संवारने की जिम्मेदारी केवल एक उर्दू और एक कॉमर्स के दो शिक्षकों को कंधों पर है.
गोपालगंज में शिक्षा व्यवस्था का बुरा हाल:शिक्षकों की कमी से अंधेरे में बच्चों का भविष्य इस स्कूल के प्रभारी प्राचार्य उमेश चन्द्र कुशवाहा ने बताया कि कई बार शिक्षा विभाग के वरीय अधिकारियों को इसके लिए पत्र भेजा गया लेकिन अभी तक शिक्षकों की नियुक्ति नहीं हो सकी. जिसके कारण दो शिक्षकों के द्वारा ही किसी तरह मैनेज किया जा रहा है. ऐसे में 2292 छात्राओं का भविष्य अंधेरे में है. यहां का आलम यह है कि सामने बोर्ड एग्जाम है, लेकिन स्कूल में कई विषयों के शिक्षक ही नहीं है.
"शिक्षकों की कमी को लेकर शिक्षा विभाग को भी पत्र भेजा गया है. इसका कुछ खास फायदा नहीं हुआ. ऐसे में 2292 छात्राओं का भविष्य अंधेरे में है. यहां का आलम यह है कि सामने बोर्ड एग्जाम है, लेकिन स्कूल में कई विषयों के शिक्षक ही नहीं है."-उमेश चन्द्र कुशवाहा, प्रभारी प्राचार्य
दो शिक्षकों पर 2400 बच्चे का कैसे संवरेगा भविष्य: दरअसल एक ओर जहां छात्र छात्राओं को 75 प्रतिशत स्कूल में अनिवार्यता की गई है, ताकि छात्र छात्राएं स्कूली शिक्षा ग्रहण कर सके लेकिन शिक्षा ग्रहण कैसे करें जब शिक्षा देने वाले शिक्षक ही नहीं है. 24 सौ छात्राओं को पढ़ाने वाले महज दो रेगुलर शिक्षक ही अपनी सेवा दे रहे है. जबकि इन शिक्षकों में एक शिक्षक कॉमर्स के हैं, जबकि यहां कॉमर्स की पढ़ाई ही नहीं होती. वहीं एक अन्य शिक्षक उर्दू के हैं, तो उर्दू पढ़ने वाले छात्राएं भी काफी कम हैं. ऐसे में अब छात्राओं का भविष्य अधर में लटका है.