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लावारिस बच्चियों को जिंदगी दे रही हैं आसमा खातून, मेहनत और मजदूरी कर करती हैं लालन-पालन - आसमा खातून

गोपालगंज के नई बाजार में लावारिस बच्चियों को नई जिंदगी देतीं आसमा खातून कहती हैं कि बेटों का तो सभी लोग पालन-पोषण करते हैं. लेकिन बेटियों को कोई नहीं पूछता. बेटियों को लोग या तो गर्भ में मार देते हैं, या तो उन्हें मरने के लिए छोड़ देते हैं.

गोपालगंज की आसमा खातून की खबर

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Published : Sep 5, 2019, 2:28 PM IST

गोपालगंज:जिले के हथुआ प्रखंड के नई बाजार गांव की निवासी 55 वर्षीय आसमा खातून लावारिस बच्चियों को नई जिंदगी देती हैं. झाड़ी या कहीं से भी बच्चियों को उठाकर उन्हें सीने से लगाकर उनका पालन-पोषण करती हैं. आसमा गली-गली श्रृंगार के सामान बेच कर अपनी 16 वर्षीय बेटी को बड़ा अधिकारी बनते देखना चाहती हैं.

मायके और ससुराल से नहीं मिला कोई सहयोग
आसमा खातून की शादी वर्ष 1980 में मोहम्मद कैफ से हुई थी. शादी के 7 साल बाद पति मोहम्मद कैफ लकवा से ग्रसित हो गए. कोई औलाद नहीं होने के कारण आसमा का जीवन काफी कष्ट में बीता. उनके पति उनको छोड़ कर कहीं चले गए. अपने बीते दिनों को याद कर आसमा फफक पड़ती है और अपनी आपबीती सुनाने लगती है. उन्होंने बताया कि पति के चले जाने के बाद मायके और ससुराल से कोई सहयोग नहीं मिला. इसके बाद अकेले ही जीवन गुजारने लगी. पति की काफी खोजबीन की लेकिन उनका पता नहीं चल पाया. एक दिन अचानक आसमा को पति की मौत की खबर मिली.

आसमा खातून दे रही हैं लावारिस बच्चियों को नई जिंदगी

झाड़ी में फेंकी हुई बच्ची मिली
जीवन गुजारने के लिए आसमा ने लोगों के घरों में बर्तन साफ किए और सब्जियां बेची. आसमा बताती हैं कि उसने एक बार आत्महत्या करने की भी सोची. इसी बीच आसमा को झाड़ी में फेंकी हुई बच्ची के बारे में जानकारी मिली. जिसके बाद वह मौके पर पहुंची और देखा कि लोगों की भीड़ तो काफी थी पर लोग बच्ची को लड़की समझकर नहीं उठा रहे थे. तभी आसमा के मन में ख्याल आया कि अगर यह लड़का होता तो लोग इसे उठा लेते. इसी पर आसमा ने फैसला किया कि आज के बाद जहां भी कोई लड़की इस हालत में मिलेगी तो उसे वह उठाकर अपने घर ले आएगी.

मजदूरी कर बेटी को पढ़ाती हैं

बड़ा अधिकारी बनाना चाहती है बेटी को
आसमा झाड़ी में पड़ी हुई बच्ची को सरपंच और थाना के सहयोग से घर उठा लाई. इसके कुछ दिन बाद आसमा को फिर एक नवजात बच्ची मिली. फिर उसे तीसरी नवजात बच्ची भी मिली. लेकिन बीमारी के कारण उन दोनों की मौत हो गई. आज झाड़ी से मिली हुई बच्ची करीब 16 साल की हो चुकी है. अब वह पढ़ने भी जाती है और 'मां' का काम में हाथ भी बटाती है. आसमा की जिंदगी भी उस बच्ची की बदौलत संवर गई. अब आसमा अपनी बच्ची को पढ़ा-लिखाकर एक बड़ा अधिकारी बनाना चाहती है.

श्रृंगार के सामान बेचती आसमा खातून

बेटों को सब पालते है पर बेटियों को छोड़ देते हैं
आसमा आज भी अपनी बच्ची के लिए कड़ी मेहनत और मजदूरी करती है. पैर में परेशानी होने के बावजूद गली-गली श्रृंगार के सामान बेचती है. आसमा कहती हैं कि बेटों का तो सभी लोग पालन-पोषण करते हैं, लेकिन बेटियों को कोई नहीं पूछता. बेटियों को लोग या तो गर्भ में मार देते है, नहीं तो उन्हें मरने के लिए छोड़ देते है. इसलिए मैंने फैसला लिया कि आज से जो बच्चियां उन्हें मिलेगी, उन्हें वह रखेगी और उसका लालन-पालन करेगी. इसके लिए चाहे उसे जितनी भी मेहनत करनी पड़े.

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