गया: आमतौर पर श्मशान घाट में भगवान शंकर के रूप में मसान बाबा रहते हैं, लेकिन गया जी के श्मशान घाट पर भगवान विष्णु (Lord Vishnu) के रूप में विष्णु मसान (Vishnu Masan) है. पूरे देश में मात्र गया में विष्णु मसान है. गया जी में विष्णु मसान होने के पीछे एक कथा है.
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गया में प्राचीन काल में गयासुर नामक एक असुर बसता था. उसने दैत्यों के गुरु शंकराचार्य की सेवा कर वेद, वेदांत, धर्म और युद्ध कला में महारत हासिल कर भगवान विष्णु की तपस्या की. उसकी कठिन तपस्या से प्रभावित होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और वरदान मांगने को कहा. गयासुर ने वरदान मांगा कि भगवान जो भी मेरा दर्शन करे वह सीधे बैकुंठ जाए. भगवान विष्णु तथास्तु कहके चले गए.
भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त करते ही गयासुर का दर्शन और स्पर्श करके लोग मोक्ष की प्राप्ति करने लगे. नतीजा यह हुआ कि यमराज सहित अन्य देवता का अस्तित्व संकट में आने लगा. भगवान ब्रह्मा ने देवताओं को बुलाकर विचार-विमर्श किया. भगवान विष्णु ने कहा कि आप सभी गयासुर को उसके शरीर पर महायज्ञ करने के लिए राजी करें.
इसके बाद भगवान ब्रह्मा गयासुर के पास गए और उससे कहा कि मुझे यज्ञ करने के लिए तुम्हारा शरीर चाहिए. गयासुर ने यज्ञ के लिए अपना शरीर दे दिया. उसका शरीर पांच कोस में फैला था. सिर उत्तर और पैर दक्षिण में था. यज्ञ के दौरान गयासुर का शरीर कंपन करने लगा तो भगवान ब्रह्मा की बहू धर्मशीला (जो एक शिला के स्वरूप थी) को उसकी छाती पर रख दिया गया. फिर भी गयासुर का शरीर हिलता रहा. अंत में भगवान विष्णु यज्ञ स्थल पर पहुंचे और गयासुर के सीने पर रखे धर्मशिला पर अपना चरण रखकर दबाते हुए गयासुर से कहा अंतिम क्षण में मुझसे चाहे जो वर मांग लो.
इस पर गयासुर ने कहा कि भगवान मैं जिस स्थान पर प्राण त्याग रहा हूं वह शिला में परिवर्तित हो जाए और मैं उसमें मौजूद रहूं. इस शिला पर आप का पदचिह्न विराजमान रहे. जो इस शिला पर पिंडदान करे उसके पूर्वज तमाम पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में वास करें. जिस दिन एक पिंड और मुंड नहीं मिलेगा उस दिन इस क्षेत्र व शीला का नाश हो जाएगा. विष्णु भगवान ने तथास्तु कहा. उसके बाद से इस स्थान पर पिंडदान शुरू हो गया और विष्णुपद के बगल में विष्णु मसान घाट बनाया गया. उस दिन से गया में एक पिंड और एक मुंड की प्रथा चल रही है.
फल्गु नदी के तट और विष्णुपद मंदिर के ठीक बगल में विष्णु मसान घाट है. इस घाट पर हर दिन कम से कम एक मुंड यानी एक शव का अंतिम संस्कार होता है और विष्णुपद पर एक पिंड जरूर अर्पित किया जाता है. विष्णु मसान घाट के पुजारी बताते हैं कि भगवान विष्णु से जब गयासुर ने एक पिंड और एक मुंड देने को कहा तो भगवान विष्णु ने कहा कि जब तक पृथ्वी रहेगी तब तक गया जी में हर दिन एक पिंड और एक मुंड जरूर दिया जाएगा.
"भगवान विष्णु गयासुर की छाती से अपना पद हटाकर आज के विष्णु मसान घाट पर आकर बैठे थे. तब से यह विष्णु मसान घाट बन गया है. यहां एक मुंड की प्रथा का निर्वहन किया जाता है. यहां तांत्रिक आते हैं साधना करते हैं, लेकिन उनको सिद्धि प्राप्त नहीं होती है. इसके अलावा यहां सभी भक्तों की मनोकामना पूरी होती है."- सुरेश भगत, पुजारी
"विष्णु मसान बाबा के प्रति काफी आस्था है. हर शनिवार हजारों लोग विष्णु मसान बाबा के दरबार में आते हैं. यहां आनेवाले भक्त की हर मनोकामना पूर्ण होती है. मनोकामना पूर्ण होने पर लोग भगवान विष्णु को दूध और पेड़ा चढ़ाते हैं. यहां विष्णु मसान बाबा के दास को मुर्गा, शराब और अंडा चढ़ाया जाता है."- अनिल दास, श्रदालु
बता दें कि कोरोना महामारी के चलते लगे लॉकडाउन के दौरान एक पिंड और एक मुंड की प्रथा को जीवंत रखने के लिए पंडा समुदाय ने अपने पितरों का पिंडदान किया था. विष्णु मसान घाट पर शाम होने के बाद एक भी शव नहीं आया तो श्मशान घाट के डोमराजा ने एक मुंड की प्रथा जीवित रखने के लिए पुतला का शवदाह पूरे विधि विधान के साथ किया. हालांकि पुतला का शवदाह करने के तुरंत बाद एक शव शवदाह के लिए विष्णु मसान घाट आ गया था.
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