गया:पितृ पक्ष 2022 के मौके पर बड़ी संख्या में पिंडदानी तर्पण के लिए गयाजी पहुंचते हैं. यहां पितरों की मोक्ष की प्राप्ति के लिए विधि विधान से पिंडदान किया जाता है. लेकिन गया में पिंडदान की एक अनोखी परंपरा भी है. यहां आत्माओं का रिजर्वेशन किया जाता है. पिंडदानी पितृदंड को बोगियों में सुलाकर लाते हैं.
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ट्रेन में मृत आत्माओं के नाम पर सीट: पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2022) के दौरान अपने पितरों की मोक्ष प्राप्ति (Pind Daan in Gayaji) के लिए सनातन धर्मावलंबी गयाजी आते हैं. यहां आने वाले पिंडदानी के कंधे पर एक दण्ड में लाल या पीले कपड़े में नारियल बंधा रहता है. उस दण्ड को पितृदंड कहते हैं. पिंडदानी, पितृदण्ड को एक बच्चे की तरह घर से गया जी लाते हैं. गया जी आने वाले पिंडदानियों की आस्था को इसी बात से समझा जा सकता है कि वे पितृदंड को वाहन या ट्रेन में सीट बुक करके लाते हैं.
पिंडदानी पितृदंड का बच्चों की तरह रखते हैं ख्याल: बिहार के गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला चल रहा है. इस दौरान कच्चा बांंस का 13 पोर से बने पितृ स्वरूप पितृदंड को लेकर तीर्थयात्रियों की आस्था का बड़ा जुड़ाव है. खास बात यह है कि पितृदंंड लाते वक्त मृत आत्माओं के नाम पर रिजर्वेशन होता है. यदि ट्रेन में पितृदंड लाते हैं, तो उसके लिए रिजर्वेशन भले ही किसी व्यक्ति के नाम पर होता है, लेकिन उसमें पितृदंड को पूरा स्थान दिया जाता है. वहीं बस यात्रा में भी यही स्थिति रहती है. पितृ दंड को पूरी आस्था के साथ सुलाकर नैवेद भोग लगाकर लाया जाता है.
पितृदंड का क्या है महत्व:दरअसल पितरों को मोक्ष दिलाने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु गया जी आते हैं. गयाजी में मोक्षधाम में पितरों का वास होता है. ऐसी मान्यता है कि जो सनातन धर्म को मानने वाले लोग होते हैं, जिनकों पितरों के प्रति श्रद्धा होती है, वही गया जी मे श्राद्ध करने आते हैं. पिंडदानी का पूरा कर्मकांड श्रद्धा पर निर्भर होता है. पितृपक्ष के दौरान एक ऐसी परंपरा है जो पिंडदानियों की श्रद्धा को प्रस्तुत करता है. हजारों सालों से चलती आ रही गया जी में पितृदण्ड लाने की परंपरा आज के आधुनिक युग में भी जिंदा है.पितृदण्ड एक ऐसी परंपरा है, जिसमें पितरों का आह्वान करके लाल,सफेद और पीले कपड़े में बांधकर पितरों को नारियल वास कराया जाता है. घर से निकलने से लेकर पिंडदानी की समाप्ति तक उसको स्वच्छता और सुरक्षित रखा जाता है.