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Gaya Pitru Paksha Mela का 13वां दिन आज, मुंडपृष्ठा, आदिगया व धौतपद में तिल-गुड़ और खोवे से पिंडदान का विधान - 13th day of Gaya Pitru Paksha Mela 2023

गया में पितृपक्ष मेले का आज 13वां दिन है. इस दिन मुंडपृष्ठा, आदिगया व धौतपद में तिल-गुड़, खोवे से पिंडदान कर, चांदी दान की परम्परा है. इससे पितर विष्णु लोक को प्राप्त होते हैं. पढ़ें पूरी खबर-

पितृपक्ष मेला महासंगम 2023
पितृपक्ष मेला महासंगम 2023

By ETV Bharat Bihar Team

Published : Oct 10, 2023, 6:00 AM IST

गया: बिहार केगया में पितृपक्ष मेला महासंगम 2023 चल रहा है. पितृपक्ष मेले में लाखों तीर्थयात्री अपने पितरों का पिंडदान के लिए पहुंचे हैं. वहीं, त्रिपक्षीय श्राद्ध करने वालों के लिए आश्विन कृष्ण एकादशी के दिन मुंडपृष्ठा, आदिगया और धौतपद में खोवे और तिल-गुड़ से पिंडदान करने का विधान है. यहां चांदी दान करने की परंपरा है. इससे पितरों को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है और पितर खुश होकर अपने वंश को संपन्नता का आशीर्वाद देते हैं.

ये भी पढ़ें-Gaya Pitru Paksha Mela: रूस-यूक्रेन युद्ध में मारे गए लोगों के मोक्ष के लिए सामूहिक पिंडदान, यूक्रेनी युवती ने की विश्व शांति की कामना


विष्णु पद मंदिर के समीप है यह तीनों वेदियां: विष्णुपद मंदिर के समीप मुंडपृष्ठा, आदिगया और धौतपद वेदी हैं. इन तीनों वेेदियों की पिंडदान को लेकर बड़ी मान्यता है, यहां पिंडदान से जहां पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. वहीं, पितर अपने वंश को संपन्न होने का आशीर्वाद देते हैं. मुंडपृष्ठा में 12 भुजा वाली मुंडपृष्ठा देवी की मूर्ति है. वहीं, गया का सबसे प्राचीन स्थान आदिगया को माना जाता है. यहां भगवान गजाधर की प्राचीन प्रतिमा है. मुंडपृष्ठा से यह स्थान दक्षिण पश्चिम है.

गया विष्णुपद मंदिर

तीनों वेदियों पर आज पिंडदान: मुंडपृष्ठा में एक शिला है, जिस पर पिंडदान होता है. यहां से पांच सीढ़ी उतरने पर एक आंगन मिलता है. आंगन के पश्चिम तीन सीढ़ियां उतरने पर एक कोठरी में कई प्रतिमाएं हैं. वहीं, आदि गया के दक्षिण -पश्चिम गया के दक्षिण फाटक के पूर्व में एक सफेद शिला है, उस शिला के आसपास पिंडदान होता है. इस स्थान को धौतपद कहा जाता है. धौतपद को लेकर ब्रह्मा जी से जुड़ी मान्यता भी है.

गया विष्णुपद मंदिर में जुटे पिंडदानी
फल्गु में स्नान कर मुंंडपृष्ठा तीर्थ पर पिंडदान का विधान : आश्विन कृष्ण एकादशी के दिन फल्गु नदी में स्नान कर मुंडपृष्ठा तीर्थ पर पिंडदान का विधान है. मुंडपृष्ठा वेदी के समीप ही आदिगया और धौतपद वेदियां हैं. आश्विन कृष्ण एकादशी के दिन इन तीनों वेदियों पर पिंडदान किया जाता है. इसे मुंडपृष्ठा तीर्थ कहा जाता है. मान्यता है, कि इन वेदियों पर खोवे, तिल और गुड़ से पितरों का पिंडदान करने से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है. वहीं, यहां चांदी के सामान दान करने से पितर अपने वंश को संपन्नता का आशीर्वाद देते हैं.
गया विष्णुपद मंदिर में जुटे पिंडदानी
मुंडपृष्ठा में बैठे थे भगवान विष्णु: मान्यता है कि जब गयासुर पर धर्मशिला रखा गया और उसपर यज्ञ शुरू किया गया तो गयासुर काफी हिल डुल रहा था, उसे स्थिर करने के लिए भगवान गदाधर श्री विष्णु पहुंचे थे, तो वह मुंंडपृष्ठा पर बैठे थे. मुंंडपृष्ठा में पिंडदान से पितरों को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है. वहीं, मुंडपृष्ठा के अलावा इस दिन आदिगया और धौतपद में पिंडदान का विधान है.
गया विष्णुपद मंदिर

त्रिपाक्षिक श्राद्ध के पिंडदान का महत्व: एकादशी तिथि को इन तीनों वेदियों पर त्रिपाक्षिक श्राद्ध करने पहुंचे तीर्थ यात्रियों को पिंडदान करना चाहिए. इससे पितरों को विष्णु लोक की प्राप्ति होती है. वहीं, इन पिंड वेदियों पर चांदी के सामान को दान करना चाहिए. मान्यता है कि खोवे, तिल -गुड़ से जहां पितर विष्णुलोक को जाते हैं. वहीं इन वेदियों पर ब्राह्मण को चांदी का दान से पितर अपने वंश को संपन्नता का आशीर्वाद देते हैं.

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