गयाः बिहार में धर्मनगरी गया की सबसे प्रसिद्ध मिठाई तिलकुट है, तिलकुट इन दिनों अधिकांश गलियों में बनते हुए दिख जाएगा. कहा जाता है 140 वर्ष पूर्व गया के रमणा रोड से तिलकुट बना शुरू हुआ था. तब से तिलकुट बनाने के लिए रमणा के कारीगर प्रसिद्ध हैं.
कारीगरों का हाल खास्ता
यहां के कारीगर तिलकुट में बेहतरीन खास्तापन ला देते हैं. जिसकी वजह से ज्यादा तिलकुट की बिक्री होती है. कारीगरों की मेहनत से आज तिलकुट देश ही नही विदेशों तक पहुंच गया है. लेकिन इन कारीगरों की जिंदगी तिलकुट के बाजार खत्म होने के बाद बेरोजगार हो जाती है. साल के 10 माह तिलकुट कारीगर ठेला चलाने और कच्चा आलू बेचने को मजबूर हो जाते हैं.
सिर्फ दो महीने मिलता है काम
गया के रमणा रोड में सैकड़ों तिलकुट की दुकानें हैं. जिसमें कई लोग काम करते हैं. लेकिन अधिकांश कारीगर सिर्फ दो माह के लिए आते हैं. बाकी के दस माह उनको जीवन चलाना मुश्किल हो जाता है. एक कारीगर विशु गुप्ता ने बताया कि दस माह खाजा मिठाई बनाता हूं और दो माह तिलकुट बनाता हूं. तिलकुट बनाने में मेहनत ज्यादा है लेकिन पैसा भी ज्यादा मिलता है.
10 महीने ऑटो चलाना मजबूरी
तिलकुट दुकानों में काम करने वाले ज्यादातर लोग परेशान हैं. कारीगर दीपक कुमार कहते हैं दो महीने तिलकुट दुकान में काम करने के बाद दस माह ऑटो चलाना मजबूरी हो जाता है. अगर सरकार ध्यान दे तो यह रोजगार बहुत अच्छा है. कारीगर निशांत स्नातक प्रथम वर्ष के छात्र हैं, पिताजी का देहांत हो गया है. लिहाजा घर चलाने के लिए तिलकुट बनाने का काम करते हैं. पढ़ाई के साथ-साथ कमाई होती है लेकिन काम दो माह तक ही मिलता है.
कारीगरों में है हुनर
श्री विष्णुधाम तिलकुट व्यवसाय संघ के अध्यक्ष लालाजी प्रसाद बताते हैं कि यहां के कारीगरों में एक हुनर है. जो तिलकुट को सबसे अलग बना देते हैं. लेकिन इन कारीगरों के हुनर का कदर नहीं है. दो माह के बाद ये सभी 5 हजार कारीगर बेरोजगार हो जाते हैं. अगर सरकार तिलकुट मिष्ठान्न को जल्द ही जीआई टैग दे देती है तो तिलकुट की मांग सालों रहेगी और इन सभी कारीगरों को सालों रोजगार मिलेगा.