गया : बिहार के गया की बेटी ने 11 बार की असफलता के बाद 12वीं बार में नौकरी पाई और मिसाल कायम की है. हौसलेमंद सरिता की सफलता की कहानी हजारों वैसे युवा छात्र-छात्राओं के लिए प्रेरणा भरी है, जो थोड़ी सी असफलता के साथ खुद को हारा हुआ मानने लगते हैं. इस युवती ने अपने विभिन्न परीक्षा में 11 बार विफलताओं से सामना किया. नौकरी के करीब पहुंचकर छंटती गई, किंतु हताश नहीं हुई.
इसे कहते हैं हार के आगे जीत है :यह कहने में गुरेज नहीं है कि नक्सल इलाके से आकर भी सरिता ने मिसाल कायम की. आखिरकार 12वीं बार में उसका सिलेक्शन सचिवालय की नौकरी में हो गया है. उसे सचिवालय में सहायक प्रशाखा पदाधिकारी की अब नौकरी मिल गई है. इस तरह उसने यह जरूर दिखा दिया, कि हार के आगे जीत भी है.
11 बार फेल हुई, 12वीं बार में कामयाबी : 11 नौकरी में वह सफलता पाते-पाते रह गई. कई नौकरी में उसका रिजल्ट होता रहा, लेकिन कभी इंटरव्यू, कभी मेरिट तो कभी कुछ अन्य कारणों से उसकी छंटनी हो जाती थी. आखिरकार प्रतिभा को अपना मुकाम मिला और वह सचिवालय में सहायक प्रशाखा पदाधिकारी बनी है.
''कड़ी मेहनत और विफलताओं के आगे नहीं झुकने की ताकत से मुझे जीत मिली है. घर में रहते हुए काम करती थी और 8 से 10 घंटे की रोजाना पढ़ाई भी गांव में करती थी.''- सरिता
बेटी से बहू बनी लेकिन लक्ष्य को नहीं छोड़ा :सरिता की नौकरी लगने की खबर मिलते ही गांव और परिवार में खुशी व्याप्त हो गई, क्योंकि इन लोगों ने सरिता के संघर्ष को नजदीक से देखा और महसूस किया था. सरिता के लिए यह सफर काफी मुश्किलों भरा रहा. वह घर की बेटी से ससुराल की बहू बन गई. किंतु हौसले को बनाए रखा. बेटी से बहू बनने तक अपनी पढ़ाई जारी रखी और दारोगा, ईएसआईसी, एनटीपीसी, बिहार पुलिस, आरपीएफ समेत अन्य तैयारी में जुटी रही.
माता-पिता के बाद पति का मिला साथ :सफल हुई छात्रा सरिता के घर से लेकर ससुराल में उसकी नौकरी लगने के बाद खुशी का माहौल है. घर की बेटी थी तो माता-पिता का साथ मिला और नौकरी के लिए वह प्रयास करती रही, जब शादी हुई तो पति का साथ मिला. ससुराल के अन्य लोगों ने भी साथ दिया. हौसले को तोड़ने का काम ससुराल में नहीं हुआ, क्योंकि सभी सरिता के जज्बे-जुनून और प्रतिभा को पहचान चुके थे.