गयाः बिहार की धर्मनगरी गया में आज से पौष पितृपक्ष शुरू होगा. इस पितृपक्ष को बोलचाल की भाषा में मिनी पितृपक्ष भी कहा जाता है. मिनी पितृपक्ष को लेकर अधिकारिक घोषणा नहीं हुई है. लेकिन अभी से ही तीर्थयात्रियों के आगमन से पूरा विष्णुपद मेला क्षेत्र गुलजार हो गया है. इस क्षेत्र में सैकड़ों की संख्या में आए पिंडदानियों के लिए बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. यहां तक कि मेला क्षेत्र में एक भी शौचालय चालू हालत में नहीं है.
नगर निगम से नहीं मिली कोई सुविधा
गया जी में पौष पितृपक्ष और खरमास में आने वाले तीर्थयात्रियों के लिए जिला प्रशासन और गया नगर निगम बुनियादी सुविधा नहीं दे रही है. गया जी में सबसे अधिक पिंडदान देवघाट पर होता है. लोग नदी में जाकर भी पिंडदान करते हैं. देवघाट और नदी में पिंडदान करना खतरों से खाली नहीं है. नदी में पिंड खाने के लिए गाय और सांड हमेशा ताक में रहते हैं. कई बार लोग इसके हमले के शिकार होने से बाल-बाल बचे भी हैं. गया जी के देवघाट और विष्णुपद मेला क्षेत्र में लाल पत्थर से सुंदर शौचालय का निर्माण करवाया गया. लेकिन दोनों जगहों के शौचालय में ताला लटका हुआ है.
स्नानागार भी बंद
पिंडदान करने पहुंची महिलाओं को सबसे बड़ी दिक्कत का सामना करना पड़ता है. यही नहीं, महिलाओं के लिए बना स्नानागार भी बंद पड़ा है. पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो गया है. महिलाएं मजबूरी में खुले में या पुरुषों के स्नानागार में स्नान करने के लिए मजबूर दिखती हैं. गया जी में 14 दिसंबर से तीर्थयात्रियों का आने का सिलसिला जारी है. लेकिन नगर निगम ने स्वच्छता का मुकम्मल व्यवस्था नहीं किया है. विष्णुपद मंदिर और उसके परिसर छोड़ सभी स्थानों पर गंदगी है. फल्गु नदी में गंदगी ही गंदगी है. वहीं विष्णुपद क्षेत्र और देवघाट पर शुद्ध पेयजल की व्यवस्था भी नहीं है. शुद्ध जल देने वाला मशीन देवघाट में एक कोने में सड़ रहा है
गड्ढा खोदकर निकालते हैं पानी
गया जी में पिंड अर्पित किया जाता है और मोक्षदायिनी फल्गु की पानी से तर्पण किया जाता है. लेकिन इन दिनों फल्गु पूर्ण रूप से सूखी हुई है. फल्गु के पानी के लिए तीर्थयात्रियों को मूल्य देना पड़ता है. स्थानीय लोग फल्गु में कई फिट गड्ढा खोद पानी निकालते हैं. फल्गु का पानी लेने के एवज में पिंडदानियों से रुपये लिए जाते हैं. गया जी में आए तीर्थयात्रियों की सुरक्षा के लिए जिला प्रशासन ने कोई व्यवस्था नहीं की है. तीर्थयात्रियों की सुरक्षा भगवान भरोसे है. वहीं अन्य साल सुरक्षा की व्यवस्था मुकम्मल की जाती रही है. विष्णुपद मंदिर छोड़ देवघाट और नदी में एक भी पुलिस नजर नहीं आती है.
साल में दो पितृपक्ष काल होता है
दरअसल, पितरों के मोक्ष के लिए और पिंडदान करने गया जी में हर सनातनी परिवार एक बार जरूर आता है. साल में दो पितृपक्ष काल होता है. इस काल में पितरों को पिंडदान करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. साल में पहला आश्विन मास में पितृपक्ष और दूसरा पौष मास पितृपक्ष काल आता है. 31 दिसंबर से दूसरा पौष पितृपक्ष काल शुरू होगा. इस पौष पितृपक्ष को मिनी पितृपक्ष भी कहा जाता है. गया जी के तीर्थ पुरोहित राजाचार्य बताते हैं कि पौष मास के कृष्ण पक्ष में अनेकों स्थानों से लोग पिंडदान के लिए आते हैं.
31 दिसंबर से शुरू है पौष पितृपक्ष