गया:बिहार के गया में सीता कुंड और राम सीता कुंड दोनों मौजूद हैं. दोनों धार्मिक सथलों की अपनी महता है. दोनों पिंड वेदी के रूप में हैं. इन वेदियों को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. सीता कुंड में माता सीता ने राजा दशरथ का बालू से पिंडदान किया था. इसके बाद भगवान राम और सीता ने गांठ बांधकर राम सीता कुंड में जौ के आटे से दशरथ जी का पिंडदान किया था. राम सीता कुंड में पिंडदान के साक्षी भगवान ब्रह्मा जी बने थे, जिनके चरण चिन्ह आज भी यहां मौजूद हैं.
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गया में माता सीता ने किया था पिंडदान : सीता कुंड की कथा अनोखी है. वाल्मीकि रामायण के मुताबिक, जब श्री राम मां सीता और लक्ष्मण जी वनवास पर थे, तो उसे समय वे गया में सीता कुंड को पहुंचे थे. यहां पहुंचने के बाद माता सीता को बैठाकर श्री राम और लक्ष्मण जी दोनों राजा दशरथ के पिंडदान के लिए सामग्री लाने चले गए. माता सीता जब अकेली यहां थी, तो इस समय आकाशवाणी हुई और एक हाथ आया जो कि राजा दशरथ जी का सूक्ष्म स्वरूप था. आकाशवाणी में कहा गया कि पिंडदान कर दो.
''इसके बाद सीता माता बोली कि पिंडदान के लिए भगवान राम और लक्ष्मण जी सामग्री लाने गए हैं, तो राजा दशरथ जी की ओर से आवाज आई, कि सूर्यास्त होने वाला है. सूर्यास्त के बाद स्वर्ग का फाटक बंद हो जाता है. इसके उपरांत माता सीता ने पांच को साक्षी मानते हुए बालू से राजा दशरथ का पिंडदान किया. इसके चिन्ह आज भी मौजूद हैं. राजा दशरथ के हाथ में माता सीता से पिंड ग्रहण करने के स्वरूप की प्रतिमा रामायण काल से सीताकुंड में मौजूद है.''- रविशंकर पांडे, पुजारी
पांच में से चार साक्षियों ने झूठ बोला : वाल्मीकि रामायण के मुताबिक, माता सीता ने फल्गु नदी, गौ माता, कौआ, तुलसी, वट वृक्ष और ब्राह्मण को साक्षी मानकर राजा दशरथ का पिंडदान किया था. लेकिन इसमें से पांच अपनी बात से पलट गए. सिर्फ अक्षयवट ने सच बोला था. इसके बाद माता सीता ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि जब तक आकाश पाताल, सूर्य, चंद्र रहेंगे. यह वट वृक्ष भी अक्षयवट के रूप में विराजमान रहेगा. तब से लेकर गया में अक्षयवट मौजूद हैं.