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Pitru Paksha 2023: गया में इस पिंडवेदी पर मौजूद हैं ब्रह्मा जी के चरण चिन्ह, बड़ी रोचक है इसकी कथा - गया न्यूज

बिहार के गयाजी में 17 दिवसीय से पितृपक्ष मेला 2023 से शुरू होने जा रहा है. 28 सितंबर से शुरू होकर इस मेले का समापन 15 अक्तूबर को होगा. लेकिन क्या आपको पता है कि माता सीता ने अपने ससुर राजा दशरथ का श्राद्ध गयाजी में किया था. पिंडदान के साक्षी भगवान ब्रह्मा जी (Lord Brahma Footprints) बने थे. इसके पीछे क्या पौराणिक कथा है, आइए इस बारे में बताते हैं. गया से रत्नेश कुमार की रिपोर्ट

Pitru Paksha 2023 Etv Bharat
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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Sep 23, 2023, 6:29 AM IST

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गया:बिहार के गया में सीता कुंड और राम सीता कुंड दोनों मौजूद हैं. दोनों धार्मिक सथलों की अपनी महता है. दोनों पिंड वेदी के रूप में हैं. इन वेदियों को लेकर कई कथाएं प्रचलित हैं. सीता कुंड में माता सीता ने राजा दशरथ का बालू से पिंडदान किया था. इसके बाद भगवान राम और सीता ने गांठ बांधकर राम सीता कुंड में जौ के आटे से दशरथ जी का पिंडदान किया था. राम सीता कुंड में पिंडदान के साक्षी भगवान ब्रह्मा जी बने थे, जिनके चरण चिन्ह आज भी यहां मौजूद हैं.

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गया में माता सीता ने किया था पिंडदान : सीता कुंड की कथा अनोखी है. वाल्मीकि रामायण के मुताबिक, जब श्री राम मां सीता और लक्ष्मण जी वनवास पर थे, तो उसे समय वे गया में सीता कुंड को पहुंचे थे. यहां पहुंचने के बाद माता सीता को बैठाकर श्री राम और लक्ष्मण जी दोनों राजा दशरथ के पिंडदान के लिए सामग्री लाने चले गए. माता सीता जब अकेली यहां थी, तो इस समय आकाशवाणी हुई और एक हाथ आया जो कि राजा दशरथ जी का सूक्ष्म स्वरूप था. आकाशवाणी में कहा गया कि पिंडदान कर दो.

गया में इस पिंडवेदी पर मौजूद हैं ब्रह्मा जी के चरण चिन्ह

''इसके बाद सीता माता बोली कि पिंडदान के लिए भगवान राम और लक्ष्मण जी सामग्री लाने गए हैं, तो राजा दशरथ जी की ओर से आवाज आई, कि सूर्यास्त होने वाला है. सूर्यास्त के बाद स्वर्ग का फाटक बंद हो जाता है. इसके उपरांत माता सीता ने पांच को साक्षी मानते हुए बालू से राजा दशरथ का पिंडदान किया. इसके चिन्ह आज भी मौजूद हैं. राजा दशरथ के हाथ में माता सीता से पिंड ग्रहण करने के स्वरूप की प्रतिमा रामायण काल से सीताकुंड में मौजूद है.''- रविशंकर पांडे, पुजारी

सीता कुंड की कथा अनोखी

पांच में से चार साक्षियों ने झूठ बोला : वाल्मीकि रामायण के मुताबिक, माता सीता ने फल्गु नदी, गौ माता, कौआ, तुलसी, वट वृक्ष और ब्राह्मण को साक्षी मानकर राजा दशरथ का पिंडदान किया था. लेकिन इसमें से पांच अपनी बात से पलट गए. सिर्फ अक्षयवट ने सच बोला था. इसके बाद माता सीता ने उन्हें आशीर्वाद दिया कि जब तक आकाश पाताल, सूर्य, चंद्र रहेंगे. यह वट वृक्ष भी अक्षयवट के रूप में विराजमान रहेगा. तब से लेकर गया में अक्षयवट मौजूद हैं.

माता सीता ने इन्हें दिया था श्राप :वहीं, साक्षी के झूठ बोलने पर माता सीता ने क्रोधित होकर उन्हें आजीवन श्राप दे दिया. उसमें फल्गु नदी जिसे सलिल होने का श्राप माता सीता ने दिया. माता सीता ने कहा था कि फल्गु सिर्फ नाम की नदी रह जाएगी. उसमें कभी पानी नहीं रहेगा. गाय को श्राप दिया कि पूजनीय होकर भी सिर्फ उसके पिछले हिस्से की पूजा की जाएगी. माता सीता ने ब्राह्मण को कभी संतुष्ट नहीं होने का श्राप दिया. वहीं माता सीता ने तुलसी को श्राप दिया कि वो गया कि मिट्टी में नहीं उगेगी.

गया में इस पिंडवेदी पर मौजूद हैं ब्रह्मा जी के चरण चिन्ह

जौ के आटे से पिंडदान :मान्यता है कि चार के झूठ बोलने के बाद विश्वास नहीं होने पर एक बार फिर से राम और सीता कुंड में भगवान राम और माता सीता ने गांठ बांधकर राजा दशरथ का पिंडदान किया था. यहां जौ के आटे से पिंडदान किया गया था. पिंडदान से पहले भगवान शंकर की पूजा की गई थी. वहीं भगवान ब्रह्मा इसके साक्षी बने थे.

मौजूद हैं ब्रह्मा जी के चरण चिन्ह : यह महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल आज भी मौजूद है, जहां भगवान राम और माता सीता की मूर्ति है. साथ ही, भोलेनाथ का शिवलिंग भी मौजूद है. इसके अलावा पिंडदान के साक्षी बने भगवान ब्रह्मा के चरण चिन्ह स्वरूप भी यहां मौजूद हैं. भगवान ब्रह्मा का यह चरण चिन्ह अलौकिक है, जिसके दर्शन करने के लिए देश भर से लोग आते हैं.

गया में इस पिंडवेदी पर मौजूद हैं ब्रह्मा जी के चरण चिन्ह

''यह अत्यंत ही महत्वपूर्ण धार्मिक स्थल है, जहां भगवान राम और माता सीता ने गांठ बांधकर पिंडदान किया था. यहां ब्रह्मा जी साक्षी बने थे, जिनके चरण चिन्ह आज भी मौजूद हैं और उनके दर्शन के लिए देश के विभिन्न हिस्सों से लोग काफी संख्या में आते हैं.'' - मुन्ना पांडे, राम सीता कुंड के पुजारी

वेदियों की अपनी-अपनी मान्यता : फिलहाल सीता कुंड और राम सीता कुंड की वेदियां अपने आप में महत्वपूर्ण है, क्योंकि पिंडदान में माता सीता और भगवान राम को लेकर दोनों वेदियों की अपनी मान्यता है. यह धार्मिक स्थल आज देश के प्रमुख स्थलों में से एक है.

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