गया: पितृपक्ष (Pitru Paksha 2021) के तहत गयाजी में पिंडदान का आज दसवां दिन है. पिंडदानी आज नौवां पिंडदान (Tenth Day Of Pinddan In Gaya) कर रहे हैं. गयाजी में पिंडदान के दसवें दिन कश्यप पद पर पिंडदान अर्पित करने का महत्व है. जहां पिंडदानी पिंडदान अर्पित कर गजकर्ण पद पर तर्पण कर रहे हैं. पिंडदान और तर्पण करने से पितरों को अक्षय लोक की प्राप्ति होती है.
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दरअसल, गयाजी में पिंडदान के दसवें दिन का श्राद्ध 16 स्तंभ रूपी वेदी पर करने का महत्व है. यह पिंडवेदी विष्णुपद मंदिर प्रांगण में छोटे अक्षयवट से उत्तर में है और विष्णुपद से पूर्व दिशा में है. यह 16 वेदी गयासुर के सिर पर रखी गई धर्मशिला पर है. ब्रह्माजी के किए गए यज्ञ में गयासुर के सिर पर परम पावन धर्मशिला रखी गई थी. धर्मशिला पहले मरीचि ऋषि की पत्नी धर्मव्रता थीं, जो पति के श्राप से धर्मशिला हो गई. गयासुर और धर्मशिला को वरदान प्राप्त हैं कि उनके ऊपर श्राद्ध करने वाले के पितरों का उद्धार होगा. यहां सभी तीर्थों पर देवता हमेशा निवास करेंगे.
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ऐसी मान्यता है कि प्राचीन काल में भारद्वाज मुनि कश्यप पद पर श्राद्ध करने के लिए उद्यत हुए. उस समय पद को उद्भेदन से कृष्ण और शुक्ल दो हाथ निकले. उन्हें देखकर मुनि को संशय हुआ और अपनी माता शान्ता से पूछा कि कश्यप दिव्य से कृष्ण और शुक्ल दो हाथ निकले हैं. मैं किसको पिंड दूं? तुम ही बताओ कि मेरा पिता कौन है? उसी दौरान मां ने जवाब देते हुए कहा, महाप्रज्ञ भारद्वाज कृष्ण हाथ वाले को पिंडदान दें.
जब भारद्वाज कृष्ण को पिंड देने के लिए उद्यत हुए, तो शुक्ल ने कहा कि तुम हमारे ओरस पुत्र हो. कृष्ण ने कहा तुम हमारे क्षेत्रज हो मुझे पिंड दो. तब सवेरिणी ने कहा कि क्षेत्रज और वीर्यज दोनों को पिंड दो. इसके बाद भारद्वाज मुनि ने कश्यप पद पर पिंड दिया. ऐसा करने से दोनों हंसयुक्त विमान से ब्रह्मलोक चले गए.
बताते चलें कि पिंडदानी अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और श्राद्ध कर रहे हैं. पिंडदान करने वाले ज्यादातर लोगों को इच्छा होती है कि वे अपने पूर्वजों का पिंडदान गयाजी में ही करें. हिंदू मान्यताओं के अनुसार पिंडदान और श्राद्ध करने से व्यक्ति को जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. देश में कई जगहों पर पिंडदान किया जाता है, लेकिन गया में पिंडदान करना सबसे फलदायी माना जाता है. इस जगह से कई धार्मिक कहानियां जुड़ी है.
शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति श्राद्ध कर्म करने के लिए गया जाता है. उनके पूर्वजों को स्वर्ग में स्थान मिलता है. क्योंकि भगवान विष्णु यहां स्वयं पितृदेवता के रूप में मौजूद हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, भस्मासुर नामक के राक्षस ने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान मांगा कि वे देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और उसके दर्शनभर से लोगों के पाप दूर हो जाए. इस वरदान के बाद जो भी पाप करता है, वो गयासुर के दर्शन के बाद पाप से मुक्तु हो जाता है. ये सब देखकर देवताओं ने चिंता जताई और इससे बचने के लिए देवताओं ने गयासुर के पीठ पर यज्ञ करने की मांग की.
जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस तक फैल गया और तब देवताओं ने यज्ञ किया. इसके बाद देवताओं ने गयासुर को वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति इस जगह पर आकर अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म और तर्पण करेगा उसके पूर्वजों को मुक्ति मिलेगी. यज्ञ खत्म होने के बाद भगवान विष्णु ने उनकी पीठ पर बड़ा सा शीला रखकर स्वयं खड़े हो गए थे.
गरूड़ पुराण मे भी कहा गया है कि जो व्यक्ति श्राद्ध कर्म के लिए गया जाता है, उसका एक- एक कदम पूर्वजों को स्वर्ग की ओर ले जाता है. मान्यता है कि यहां पर श्राद्ध करने से व्यक्ति सीधा स्वर्ग जाता है. फ्लगु नदी पर बगैर पिंडदान करके लौटना अधूरा माना जाता है. पिंडदानी पुनपुन नदी के किनारे से पिंडदान करना शुरू करते हैं. फल्गु नदी का अपना एक अलग इतिहास है. फल्गु नदी का पानी धरती के अंदर से बहती है. बिहार में गंगा नदी में मिलती है. फल्गु नदी के तट पर भगवान राम और माता सीता ने राजा दशरथ के आत्मा की शांति के लिए नदी के तट पर पिंडदान किया था.
बता दें कि गया में विभिन्न नामों से 360 वेदियां थी, जहां पिंडदान किया जाता था. इनमें से 48 बची हुई हैं. इस जगह को मोक्षस्थली कहा जाता है. हर साल पितपक्ष में यहां 17 दिन के लिए मेला लगता है.
जानिए किस तिथि में कौन सा श्राद्ध पड़ेगा?
20 सितंबर (सोमवार) 2021- पहला श्राद्ध, पूर्णिमा श्राद्ध
21 सितंबर (मंगलवार) 2021- दूसरा श्राद्ध, प्रतिपदा श्राद्ध