गया:पितृपक्ष (Pitru Paksha 2021) के तहत गयाजी में पिंडदान का आज चौथा दिन है. त्रैपाक्षिक कर्मकांड करने वाले पिंडदानी आज चौथा पिंडदान (Fourth Day Of Pinddan In Gaya) कर रहे हैं. पितृपक्ष के चौथे दिन सरस्वती (मुहाने नदी) में तर्पण के पश्चात धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान करने का महत्व है. यहां पिंडदान करने से पितरों को प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है.
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आज एक ओर जहां महाबोधि मंदिर परिसर में 'बुद्धं शरणं गच्छामि' के स्वर गूंज रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर पिंडवेदियों पर मोक्ष के मंत्रों का उच्चारण हो रहा है. इसी क्रम में गुरुवार को हजारों की संख्या में हिंदू धर्मावलंबी अपने पुरखों की मोक्ष प्राप्ति के लिए बोधगया में स्थित पांच वेदी पर पिंडदान और तर्पण कर कर्मकांड को पूरा कर रहे हैं.
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बोधगया क्षेत्र में ऐसे तो पांच पिंडवेदियां हैं. लेकिन तीन पिंडवेदियां धर्मारण्य, मातंगवापी और सरस्वती प्रमुख हैं. पूर्वजो के मोक्ष की कामना को लेकर आने वाले श्रद्धालु भगवान बुद्ध को विष्णु का अवतार मानते हुए पिंडदान के विधान को कालांतर से निभाते आ रहे हैं. वहीं, आज पितृपक्ष के चौथे दिन पिंडदान करने की विधि है. चौथे दिन सरस्वती (मुहाने नदी) में तर्पण के पश्चात धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान कर रहे हैं. साथ ही वहां स्थित अष्टकमल आकार के कूप में पिंड विसर्जित कर पिंडदानी मातंगवापी पिंडदान के लिए निकलते हैं. यहां पिंडदानी पिंड मातंगेश शिवलिंग पर अर्पित करते हैं.
आज के दिन पिंडदान को लेकर सनातन पुस्तकों में एक कथा है कि महाभारत युद्ध के दौरान मारे गए लोगों की आत्मा की शांति और पश्चाताप के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान किया था. धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान और त्रिपिंडी श्राद्ध का विशेष महत्व है. यहां किए गए पिंडदान और त्रिकपंडी श्राद्ध से प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है.
बता दें कि गया शहर से 12 किलोमीटर दक्षिण मुहाने नदी के पूर्वी छोर पर स्थित धर्मारण्य वेदी है. वेदों में प्रमाण है कि धर्मराज युधिष्ठिर ने जप करके अपने पितरों के कल्याण लिये त्रिपिंडी श्राद्ध किया था. जिसके बाद से ही यहां पिंडदानी अपने पूर्वजों के लिये त्रिपिंडी श्राद्ध करते हैं. जिससे उनके पितरों को प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है.
कहा जाता है कि गया में पहले विभिन्न नामों के 360 वेदियां थी. जहां पिंडदान किया जाता था. लेकिन इनमें से अब 48 ही बची हैं. यहां की वेदियों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी माना जाता है. इसके अतिरिक्त वैतरणी, प्रेतशिला, सीताकुंड, नागकुंड, पांडुशिला, रामशिला, मंगलागौरी, कागबलि आदि भी पिंडदान के लिए प्रमुख है. यही कारण है कि देश में श्राद्घ के लिए 55 स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है. जिसमें बिहार के गया का स्थान सर्वोपरि है.
जानिए इसके कारण-
गयासुर नामक असुर ने कठिन तपस्या कर ब्रह्माजी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पापमुक्त हो जाएं. इस वरदान के चलते लोग भयमुक्त होकर पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन करके फिर से पापमुक्त हो जाते थे. इससे बचने के लिए यज्ञ करने के लिए देवताओं ने गयासुर से पवित्र स्थान की मांग की.
गयासुर ने अपना शरीर देवताओं को यज्ञ के लिए दे दिया. जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस में फैल गया. यही पांच कोस जगह आगे चलकर गया बना.देह दान देने के बाद गयासुर के मन से लोगों को पाप मुक्त करने की इच्छा नहीं गई और फिर उसने देवताओं से वरदान मांगा कि यह स्थान लोगों को तारने वाला बना रहे. तब से ही यह स्थान मृतकों के लिए श्राद्ध कर्म कर मुक्ति का स्थान बन गया.
कहते हैं कि गया वही आते हैं जिन्हे अपने पितरों को मुक्त करना होता है. लोग यहां अपने पितरों या मृतकों की आत्मा को हमेशा के लिए छोड़कर चले जाते हैं. मतलब यह कि प्रथा के अनुसार सबसे पहले किसी भी मृतक तो तीसरे वर्ष श्राद्ध में लिया जाता है और फिर बाद में उसे हमेशा के लिए जब गया छोड़ दिया जाता है तो फिर उसके नाम का श्राद्ध नहीं किया जाता है. कहते हैं कि गया में श्राद्ध करने के उपरांत अंतिम श्राद्ध बदरीका क्षेत्र के 'ब्रह्मकपाली' में किया जाता है.
गया क्षेत्र में भगवान विष्णु पितृदेवता के रूप में विराजमान रहते हैं. भगवान विष्णु मुक्ति देने के लिए 'गदाधर' के रूप में गया में स्थित हैं. गयासुर के विशुद्ध देह में ब्रह्मा, जनार्दन, शिव तथा प्रपितामह स्थित हैं. अत: पिंडदान के लिए गया सबसे उत्तम स्थान है.
जानिए किस तिथि में कौन सा श्राद्ध पड़ेगा?
20 सितंबर (सोमवार) 2021- पहला श्राद्ध, पूर्णिमा श्राद्ध