गया:पितृपक्ष (Pitru Paksha 2021) के तहत गयाजी में पिंडदान का आज पांचवां दिन है. पिंडदानी आज पांचवां पिंडदान (Fifth Day Of Pinddan In Gaya) कर रहे हैं. पितृ पक्ष के पांचवें दिन गयाजी में ब्रह्म सरोवर में महत्व रखता है. ब्रह्म सरोवर में पिंडदान कर काकबलि वेदी पर कुत्ता, कौआ और यम को उड़द के आटे का पिंड बनाकर तर्पण दिया जाता है. काकबलि से बलि देकर आम्र सिचन वेदी के पास आम वृक्ष की जड़ को कुश के सहारे जल दिया जाता है. तीनों वेदियों में प्रमुख वेदी ब्रह्म सरोवर है. यहां पिंडदान करने से पितरों को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है.
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ऐसी मान्यता है कि इस सरोवर में पिंडदान करने से पितरों को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है. इसके पीछे कथा है कि गयाजी स्थित ब्रह्म सरोवर में यज्ञ करने के बाद ब्रह्मा जी ने स्नान किया था. ब्रह्मा जी ने गयासुर के विशाल शरीर पर ये यज्ञ किया था. चार महीने तक चले इस यज्ञ से गयासुर के शरीर से खंभा निकला. जिसे ब्रह्म यूप कहते हैं.
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इसके बाद से इस सरोवर में श्राद्ध करने से पितरों को तरण और यूप की प्रदक्षिणा करने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है. गोप्रचार तीर्थ के समीप आम्र वृक्ष रूप तीर्थ है, जिसका सेचन करने से पितर से मोक्ष प्राप्त करते हैं.
आम्र सेचन करते समय यजमान बोले कि 'सर्व देवमय विष्णु रूप ब्रह्मसर उतपन्न' अर्थात आम पेड़ का पितरों की मुक्ति के लिए अच्छी प्रकार से सेचन करते हैं. इस संबंध में यह उक्ति भी प्रसिद्ध है कि एक मुनि हाथ में कुम्भ एवं कुशाग्र लेकर आम्र के जड़ में पानी दे रहे थे. जिससे पितरों की तृप्ति हो रही थी. यह क्रिया एक ही है लेकिन दो अर्थ में प्रसिद्ध है.
ब्रह्म सरोवर तीर्थ के पास कागबलि तीर्थ है. यह रामशिला के पास के तीर्थ की वेदी भिन्न है. इसमें भी यम श्वान एवं काक को बलि रूप में पिंड दिए जाते हैं. काकबलि में मूंगदाल अथवा उरद दाल अवश्य दान करना चाहिए. ततपश्चात ब्रह्म सरोवर के पास तारक ब्रह्मा का दर्शन कर पांचवें दिन की विधि पूर्ण की जानी चाहिए. तारक ब्रह्मा का पितृतारक ब्रह्मा भी कहते हैं.
बताते चलें कि पिंडदानी अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पिंडदान और श्राद्ध कर रहे हैं. पिंडदान करने वाले ज्यादातर लोगों को इच्छा होती है कि वे अपने पूर्वजों का पिंडदान गयाजी में ही करें. हिंदू मान्यताओं के अनुसार पिंडदान और श्राद्ध करने से व्यक्ति को जन्म मरण से मुक्ति मिल जाती है और मोक्ष की प्राप्ति होती है. देश में कई जगहों पर पिंडदान किया जाता है, लेकिन गया में पिंडदान करना सबसे फलदायी माना जाता है. इस जगह से कई धार्मिक कहानियां जुड़ी है.
शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति श्राद्ध कर्म करने के लिए गया जाता है. उनके पूर्वजों को स्वर्ग में स्थान मिलता है. क्योंकि भगवान विष्णु यहां स्वयं पितृदेवता के रूप में मौजूद हैं. पौराणिक कथा के अनुसार, भस्मासुर नामक के राक्षस ने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान मांगा कि वे देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और उसके दर्शनभर से लोगों के पाप दूर हो जाए. इस वरदान के बाद जो भी पाप करता है, वो गयासुर के दर्शन के बाद पाप से मुक्तु हो जाता है. ये सब देखकर देवताओं ने चिंता जताई और इससे बचने के लिए देवताओं ने गयासुर के पीठ पर यज्ञ करने की मांग की.
जब गयासुर लेटा तो उसका शरीर पांच कोस तक फैल गया और तब देवताओं ने यज्ञ किया. इसके बाद देवताओं ने गयासुर को वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति इस जगह पर आकर अपने पूर्वजों का श्राद्ध कर्म और तर्पण करेगा उसके पूर्वजों को मुक्ति मिलेगी. यज्ञ खत्म होने के बाद भगवान विष्णु ने उनकी पीठ पर बड़ा सा शीला रखकर स्वयं खड़े हो गए थे.
गरूड़ पुराण मे भी कहा गया है कि जो व्यक्ति श्राद्ध कर्म के लिए गया जाता है, उसका एक- एक कदम पूर्वजों को स्वर्ग की ओर ले जाता है. मान्यता है कि यहां पर श्राद्ध करने से व्यक्ति सीधा स्वर्ग जाता है. फ्लगु नदी पर बगैर पिंडदान करके लौटना अधूरा माना जाता है. पिंडदानी पुनपुन नदी के किनारे से पिंडदान करना शुरू करते हैं. फल्गु नदी का अपना एक अलग इतिहास है. फल्गु नदी का पानी धरती के अंदर से बहती है. बिहार में गंगा नदी में मिलती है. फल्गु नदी के तट पर भगवान राम और माता सीता ने राजा दशरथ के आत्मा की शांति के लिए नदी के तट पर पिंडदान किया था.
बता दें कि गया में विभिन्न नामों से 360 वेदियां थी, जहां पिंडदान किया जाता था. इनमें से 48 बची हुई हैं. इस जगह को मोक्षस्थली कहा जाता है. हर साल पितपक्ष में यहां 17 दिन के लिए मेला लगता है.
जानिए किस तिथि में कौन सा श्राद्ध पड़ेगा?
20 सितंबर (सोमवार) 2021- पहला श्राद्ध, पूर्णिमा श्राद्ध