गया:हिंदू धर्म में पुनर्जन्म की मान्यता है और जब तक पुनर्जन्म या मोक्ष नहीं होता, आत्माएं भटकती हैं. इनकी शांति और शुद्धि के लिए गया में पिंडदान (Pind Daan Gaya) किया जाता है, ताकि वे जन्म-मरण के फंदे से छूट जाएं. लेकिन इस बार भी कोरोना महामारी (Corona Pandemic) के कारण पिंडदान पर रोक लगा दिया गया है. जिसके कारण प्रेतशिला पर्वत (Pretshila Mountain) पर आत्माएं भूखी हैं.
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दरअसल प्रेतशिला को लेकर एक दंत कथा प्रचलित है. कहा जाता है ब्रह्मा जी ने सोने का पहाड़ ब्राह्मणों को दान में दिया था. सोने का पहाड़ दान में देने के बाद ब्रह्मा जी ने ब्राह्मणों को कहा था कि आपलोग किसी से दान लेगे तो ये सोने का पर्वत पत्थर का पर्वत हो जाएगा.
इसके बाद राजा भोग ने छल से पंडा को दान दे दिया. जिसके बाद भगवान ब्रह्मा ने इस पर्वत को पत्थर का पर्वत बना दिया. ब्राह्मणों ने ब्रह्मा जी से गुहार लगाई कि हमलोग की जीविका कैसे चलेगी. जिसके बाद ब्रह्मा जी ने कहा इस पहाड़ पर बैठकर मेरे पांव पर पिंडदान किया जाएगा उसके बाद ही पितरों को प्रेतयोनि से मुक्ति मिलेगी.
दो साल से यहां कोई भी तीर्थयात्री, पिंडदानी नहीं आ रहे हैं. यहां काफी सन्नाटा पसरा हुआ है, आत्माएं भूखी हैं. यहां सत्तू उड़ाने का प्रचलन है. प्रेतशिला में पिंडदान करते हैं ताकि आत्माओं को मोक्ष की प्राप्ति हो.- सत्येंद्र पांडेय, पंडा
इस पर्वत पर तीन स्वर्ण रेखा है तीनों स्वर्ण रेखा में ब्रह्मा,विष्णु और शिव के विराजमान होने की मान्यता है. तब से इस पर्वत को प्रेतशिला कहा गया और ब्रह्मा जी के पदचिह्न पर पिंडदान होने लगा. वहीं सत्तू उड़ाने की प्रथा का भी निर्वहन धर्मशीला पर्वत पर किया जाता है.
यहां लोग आते थे श्राद्ध करते थे. पितरों के मोक्ष के लिए प्रेतशिला पर्वत पर सत्तू वितरण करते थे लेकिन दो सालों से पितरों को सत्तू नहीं मिला, वे भूखे हैं.- अजय पांडे, पंडा
जिनकी अकाल मृत्यु होती है उनके यहां सूतक लगा रहता है. सूतक काल में सत्तू का सेवन वर्जित माना गया है. उसका सेवन पिंडदान करने के बाद ही किया जाता है. इसीलिए यहां लोग प्रेतशिला वेदी (Pretshila Vedi) पर आकर सत्तू उड़ाते हैं और फिर प्रेत आत्माओं से आशीर्वाद व मंगलकामनाएं मांगते हैं.
इस पर्वत पर धर्मशीला है जिस पर पिंडदानी ब्रह्मा जी के पद चिन्ह पर पिंडदान करके धर्मशीला पर सत्तू उड़ाकर कहते है 'उड़ल सत्तू पितर को पैठ हो'. सत्तू उड़ाते हुए पांच बार परिक्रमा करने से पितरों को प्रेत योनि से मुक्ति मिलती है.
विश्व में एक ही प्रेतशिला है जो बहुत सिद्ध जगह है. यहां पितृ लोक है. गया जिला महान जिला है.- जगदीश गिरी, पुजारी
ये है मान्यता: इस धर्मशीला में एक दरार है उस दरार में सत्तू का एक कण जरूर जाना चाहिए. कहा जाता है कि ये दरार यमलोक तक जाता है. साल 2020 से कोरोना महामारी के वजह से कोई धार्मिक आयोजन नहीं हो रहा है. ऐसे में प्रेत आत्माओं को सत्तू भी नहीं मिल पा रहा है और वे सभी भूखे हैं.
दो चार लोग आते हैं उससे क्या होगा. कभी कमाई होती है कभी नहीं. कई कई दिनों तक तो हम कुछ नहीं कमा पाते. अब पालकी वाले यहां से जा रहे हैं. कमाई नहीं होगा तो क्या करेंगे.- फागू मांझी, पालकी उठाने वाला
पिछले साल पितृपक्ष मेला भी आयोजित नहीं किया गया था. पिछले दो साल से गया जी मे पिंडदानी ना के बराबर आ रहे हैं जो आ भी रहे है वो विष्णुपद मन्दिर स्थित पिंडवेदी पर पिंडदान करके चले जाते है. ऐसे में शहर से तकरीबन 10 किलोमीटर दूर स्थित प्रेतशिला में कोई नहीं जा रहा है.
कोरोना काल से पहले पिंडदानी प्रेतशिला में पिंडदान करने जाते थे. इधर इस साल कोरोना की दूसरी लहर में धार्मिक स्थलों को बंद कर दिया गया है. ऐसे में प्रेतशिला पर्वत में प्रेत आत्माओं को सत्तू नहीं पैठ हो रहा है. आत्माएं पिछले दो साल से भूखी हैं.
प्रेतशिला में भगवान विष्णु की प्रतिमा है. पिंडदानी अकाल मृत्यु वाले लोग की तस्वीर विष्णु चरण में रखते हैं. और उनके मोक्ष की कामना करते हैं. मंदिर के पुजारी 6 माह तक तस्वीर की पूजा करते हैं और फिर उस तस्वीर को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं. पितृ पक्ष के 15 दिन पितरों के मोक्ष के दिन माने जाते हैं. यही कारण है कि हर साल यहां तर्पण के लिए भारी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते थे लेकिन अब यहां विराना छाया हुआ है.
पर्वतशिला में लोगों के लिए आय का साधन तीर्थयात्री है जो फिलहाल गया और पर्वत से दूरी बनाए हुए हैं. ऐसे में लोगों के सामने भुखमरी की नौबत आ गई है. पालकी उठाने वाले फागू मांझी ने बताया कि सावन माह से लेकर कार्तिक माह तक सैकड़ों की संख्या में पालकी वाले रहते थे. सभी पालकी से हर दिन हजार के करीब कमा लेते थे. पिछले 2 सालों से 1 सप्ताह में मुश्किल से दो सौ से तीन सौ रुपये की कमाई होती है.
गौरतलब है कि प्रेतशिला के शिखर पर जाने के लिए 676 सीढ़ी चढ़ना होता है. पिंडदानियों के लिए यह बड़ा कष्टदायक रहता है. पैसे वाले पिंडदानी पालकी का सहारा लेते हैं. वहीं प्रेतशिला के आसपास के लोग हर रोज प्रेतशिला के शिखर तक पहुचते हैं. इसकी मान्यताओं के कारण दूर दूर से लोग यहां आते हैं. लेकिन फिलहाल कोरोना संक्रमण के खतरे के कारण पिंडदानी व तीर्थयात्रियों ने इससे दूरी बना ली है.
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