गया:बिहार की धार्मिक नगरी गया (Gaya) में 20 सितंबर से पितृपक्ष (Pitri Paksh) केपहले दिन का पिंडदान (Pind Daan) शुरू होगा. गयाजी में पिंडदान करने का बड़ा महत्व है, लिहाजा न केवल देशभर से बल्कि विदेशों से भी सनातन धर्मावलंबी पिंडदान करने आते हैं. ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष के दौरान गयाजी में पिंडदान करने के बाद फिर कहीं भी श्राद्ध या कर्मकांड करने की जरूरत नहीं पड़ती है. यहां पिंडदान एक दिवसीय से लेकर 15 दिनों तक का रहता है.
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दरअसल पूरे विश्व मे एक मात्र शहर में 'जी' का शब्द का उपयोग किया जाता है, वो शहर मोक्षनगरी गयाजी है. सनातन धर्मावलंबियों के लिए गयाजी पितरों को मोक्ष दिलाने एक स्थान है. गयाजी में बालू मात्र से पिंडदान अर्पण करने और मोक्षदायिनी फल्गु के पानी के तर्पण करने से ही पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. इस स्थान की चर्चा सनातन धर्म के अधिकांश वेदों और पुस्तकों में है.
19 सिंतबर से पितृपक्ष शुरू होनेवाला है. गयाजी में 20 सितंबर से पितृपक्ष का पहला दिन होगा. पितृपक्ष यानी पितरों का पक्ष इस पक्ष में पितर अपने लोक से पृथ्वी लोक में एक मात्र गयाजी में आते हैं. कहा जाता है कि गयाजी में पितर अपने वंशज को देखकर काफी प्रसन्न होते हैं. यहां आटा, फल-फूल, भोजन और कुछ नहीं मिले तो बालू का पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिल जाता है. पितृपक्ष में पिंडदान करने की शुरुआत ब्रह्माजी के पुत्र ने की थी.
वायु पुराण की कथा के अनुसार प्राचीन काल में गयासुर नामक एक असुर बसता था, उसने दैत्यों के गुरु शंकराचार्य की सेवा कर वेद, वेदांत, धर्म और युद्ध कला में महारत हासिल कर भगवान विष्णु की तपस्या शुरू कर दी, उसकी कठिन तपस्या से प्रभावित होकर भगवान विष्णु प्रकट हुए और उसने वरदान मांगने को कहा. गयासुर ने वरदान मांगा कि भगवान जो भी मेरा दर्शन करे, वह सीधे बैकुंठ जाए.
भगवान विष्णु 'तथास्तु' कह के चले गए, भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त करते ही गयासुर का दर्शन और स्पर्श करके लोग मोक्ष की प्राप्ति करने लगे नतीजा यह हुआ कि यमराज सहित अन्य देवता का अस्तित्व संकट में आने लगा. ब्रह्माजी ने देवताओं को बुलाकर सभा की और विचार विमर्श किया. भगवान विष्णु ने कहा कि आप सभी गयासुर उसके शरीर पर महायज्ञ करने के लिए राजी करें. उसके बाद ब्रह्मा जी गयासुर के पास गए गयासुर से कहा कि मुझे यज्ञ करने के लिए तुम्हारा शरीर चाहिए. ब्रह्मा जी के आग्रह में गयासुर यज्ञ के लिए अपना शरीर दे दिया उसका शरीर पांच कोस में फैला था, उसका सिर उत्तर में और पैर दक्षिण में था.
यज्ञ के दौरान गयासुर का शरीर कंपन करने लगा तो ब्रह्मा जी की बहू धर्मशीला जो एक शिला के स्वरूप थी, उसके छाती पर धर्मशीला को रख दिया गया. फिर भी गयासुर का शरीर हिलता रहा. अंत में भगवान विष्णु यज्ञ स्थल पर पहुंचे और गयासुर के सीने पर रखे धर्मशीला पर अपना चरण रखकर दबाते हुए गयासुर से कहा अंतिम क्षण में मुझसे चाहे जो वर मांग लो. इस पर गया सुर ने कहा कि भगवान में जिस स्थान पर प्राण त्याग रहा हूं. वो शिला में परिवर्तित हो जाए और मैं उस में मौजूद रहे. इस शिला पर आप का पदचिह्न विराजमान रहे और जो इस शिला पर पिंडदान प्रदान करेगा, उसके पूर्वजों तमाम पापों से मुक्त होकर स्वर्ग में वास करेंगे. जिस दिन एक पिंड और मुंड नहीं मिलेगा, उस दिन इस क्षेत्र और शिला का नाश हो जाएगा. विष्णु भगवान ने तथास्तु कहा, उसके बाद से इस स्थान पर पिंडदान शुरू हो गया.
गयाजी में एक दिन, तीन दिन, पांच दिन, एक सप्ताह और 17 दिनों का गया श्राद्ध यानी पिंड दान क्रिया कर्म होता है. वेद पुराण के अनुसार गयाजी मे कम से कम तीन दिवसीय पिंडदान करने का उल्लेख है. इस आधुनिक युग मे एक दिवसीय पिंडदान शुरू हो गया है, इस पिंडदान से भी लाभ है. 15-17 दिवसीय पिंडदान 45 पिंड वेदियों पर होता है.
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