गया:राजधानी पटना से करीब 200 किलोमीटर की दूरी पर स्थित गया जिले का दोवाट गांव आज भी विकास की बाट जोह रहा है (Picture of Dowat Village of Gaya). जिले के इस गांव में तुरी जाति के लोग अधिकांश तौर पर निवास करते हैं, जिनका पुश्तैनी धंधा बांस का है. लेकिन यह धंधा भी मंदा पड़ गया है. बांस नहीं मिलने से इनकी रोजी-रोटी पर आफत आ रही है. रोजगार के कोई और विकल्प नहीं होने से इस गांव के तुरी समुदाय के लोगों की स्थिति बद से बदतर होती जा रही है.
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पुश्तैनी रोजगार है बांस से बर्तन बनाना:जिले के बाराचट्टी प्रखंड के काफी पिछड़े गांव दोवाट में तुरी समुदाय के लोग अधिकांश संख्या में निवास करते हैं. यहां के लोगों का मुख्य पेशा बांस का है, जिससे यहां निवास करने वाले तुरी समुदाय के लोग सूप और दौरी बनाते हैं. दिन भर कटरी यानी चाकू नुमा औजार से बांस को छिलकर उसे आकार देते हैं और वह सूप और दौरी के रूप में बनाई जाती है. यहां के ग्रामीणों का यह रोजगार पुश्तैनी है, जिसे कई दशक से ये लोग करते आ रहे हैं.
गांव की पहचान है काफी अलग:बांस से बनाए जाने वाले सामानों से दोवाट गांव की पहचान होती है. इस गांव में बुनियादी सुविधाओं का घोर अभाव है. यहां के लोगों के लिए रोजगार का कोई और विकल्प नहीं है, जिससे इस गांव में रहने वाले तुरी समुदाय के ग्रामीण अपनी तरक्की कर सकें. वहीं बांस से सूप और दौरी बनाकर बस इनकी जिंदगी किसी तरह ही चल पाती है. बांस का बिजनेस खराब हुआ तो पेट पर भी आफत बन आती है. तुरी समुदाय के लोग अपने इस पारंपरिक पेशे से जुड़े हुए हैं, लेकिन इस महंगाई वाले दौर में हालात यह हो चुके हैं, कि कई लोग कर्ज में डूब चुके हैं.
राशन लेने जाना पड़ता है गांव से तीन किमी दूर:ग्रामीण महावीर तुरी बताते हैं कि "हमारे लिए रोड है ही नहीं. मुख्य रोड है, वह भी कच्ची है. वहीं कई गांव से जुड़े रोड गड्ढ़ेनुमा है या यूं कहें कि रोड है ही नहीं. ऐसे स्थानों पर उन्हें राशन के लिए जाना पड़ता है. राशन के लिए 3 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है. इन 3 किलोमीटर की दूरी में सड़क की जो हालात हैं, उससे कई लोग हादसे का शिकार भी हो जाते हैं.
"हमारा कोई सहारा नहीं है. 3 किलोमीटर दूर जा कर राशन लेना पड़ता है. कोई नया बिजनेस भी नहीं मिल रहा है, जिससे गांव घर के लोग तरक्की कर सकें. नया रोजगार मिले तो कोई और बात हो. सब कोई आते हैं, आश्वासन देकर चले जाते हैं. बड़ी ही विकट स्थिति है. गरीबी के जंजाल में जीवन फंसा हुआ है पूरे गांव की यही स्थिति है."-महावीर तुरी, ग्रामीण