गया: होली पर्व के एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है. होलिका दहन में प्राय: लकड़ी और उपले जलाए जाते हैं. कई जगहों पर प्लास्टिक और टायर भी जलाया जाता है. जिससे पेड़ों की जमकर कटाई होती है और पर्यावरण को काफी नुकसान होता है. इसी क्रम में पर्यावरण संबंधी समस्याओं के समाधान के लिए गया में गौरक्षणि गौशाला होलिका दहन पर्व के मौके पर गोबर के कंडे बनाकर बेच रहा है. बता दें कि गौरक्षणि गौशाला के इस पहल का पशुपालन मंत्री प्रेम कुमार ने भी सराहना की है.
पंजाब से लाई गई है खास मशीन
बता दें कि सन 1888 में गया के मानपुर में गौरक्षणि गौशाला का आधारशिला रखी गई थी. वहीं, गौशाला में वर्तमान समय में 250 से गाय हैं. पहले गौशाला में प्रतिदिन निकलने वाले गोबर को फेंक दिया जाता था. गौशाला प्रशासन की ओर से गोबर के सदुपयोग पर विचार किया गया. पंजाब से गोबर के कंडे बनाने वाली मशीन खरीदकर लाई गई है. मशीन से गोबर से कंडे बनाया जाता है जिससे आम बोलचाल की भाषा में गोबर की लकड़ी भी कहते हैं. बता दें कि गौरक्षणि गौशाला मशीन का प्रयोग कई महीनों से कर रहा है.
'वायु प्रदूषण रोकने के लिए उठाया गया कदम'
गौरतलब है कि पहले पहल अंत्योष्टि के लिए गौशाला ने गोबर के कंडे बनाना शुरू किया था. हालांकि गौशाला को मकसद में कुछ खास सफलता नहीं मिली. वहीं, अब गौशाला होलिका दहन पर्व के लिए बड़े पैमाने पर गोबर का कंडे बना रहा है. मामले में गौरक्षणि गौशाला के प्रबंधक मनबोध मिश्रा ने बताया कि होलिका दहन पर लकड़ी जलाने से वायु प्रदूषण होता है. होलिका दहन में लकड़ी उपयोग होने से जंगल के पेड़ों की कटाई होती है. पर्यावरण की रक्षा के लिए गौशाला की ओर से कंडे बनाए जा रहे हैं. हमलोगों का प्रयास रहेगा कि होलिका दहन के मौके पर ज्यादा से ज्यादा लोगों तक गोबर के कंडे पहुंचाया जा सके.
'पर्यावरण को नहीं होगी कोई क्षति'
वहीं, पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य को ध्यान में रखकर गौरक्षणी गौशाला की ओर से उठाए जा रहे कदम का पशुपालन मंत्री प्रेम कुमार ने भी सराहना की है. पशुपालन मंत्री प्रेम कुमार ने कहा मुझे खुशी है कि गौरक्षणि गौशाला से बड़े पैमाने पर गोबर के कंडे बनाये जा रहे हैं. होलिका दहन में गोबर के कंडों का उपयोग होगा तो गौशाला की आय बढ़ने के साथ-साथ पर्यावरण को भी कोई क्षति नहीं होगी.