गया की डिप्टी मेयर चिंता देवी गया:भले ही चिंता देवी ने 40 साल तक शहर की साफ सफाई के काम से जुड़ी रही हों लेकिन उनके जेहन में हमेशा से शहर के विकास का सपना था. तभी तो कम पढ़ी लिखी होने के बावजूद जनता ने चिंता देवी को शहर को खुबसूरत बनाने के जिम्मेदारी सौंप दी है. गया की डिप्टी मेयर चिंता देवी की जीत की कहानी को नीति आयोग ने सराहा है. आयोग ने टि्वटर हैंडल पर लिखा है, चिंता देवी की जीत से प्रेरित होकर दूसरे को प्रेरित करने की सीख मिलती है.
पढ़ें-जिस शहर में लगाती थीं झाड़ू, वहां की जनता ने बनाया डिप्टी मेयर.. गया की चिंता देवी से मिलिए
नीति आयोग ने गया की चिंता देवी को सराहा: दरअसल नीति आयोग ने एक ट्वीट कर गया की डिप्टी मेयर चिंता देवी की कहानी की प्रशंसा की है और दूसरों को भी इससे सीख लेने की बात कही है. आयोग ने लिखा है एक सफाई कर्मचारी से लेकर उप महापौर तक, बिहार के आकांक्षी जिला गया की चिंता देवी की कहानी नारी शक्ति की भावना को उत्साह देता है और प्रेरित करता है.
नीति आयोग ने गया की चिंता देवी को सराहा डिप्टी मेयर चिंता देवी बनी मिसाल: वहीं चिंता देवी से ईटीवी भारत संवाददाता ने खास बातचीत कर जानना चाहा कि अब उनके जीवन का आगे क्या लक्ष्य होगा. लेकिन हमारी टीम ने देखा कि इतना बड़ा पद हासिल करने के बावजूद चिंता देवी की जिंदगी में कुछ बदला नहीं है, जिस तरह पूर्व में वह अपने घर में गोबर उठाती थीं, झाड़ू लगाती थीं, बर्तन मांजती थीं, आज भी वह जारी है. वहीं, डिप्टी मेयर चिंता देवी की बहू जो कि दैनिक वेतन भोगी सफाई कर्मी हैं, वह आज भी मोहल्ले में झाड़ू लगाने का काम कर रही हैं.
'ऑफिस की गाड़ी नहीं चाहिए': चिंता देवी बताती हैं, कि लोगों ने कहा कि आपको बहुत कुछ मिलेगा. गाड़ी की लाइन होगी. लेकिन इस पर उन्होंने जनता से कहा कि वह कुछ नहीं चाहती हैं. गाड़ी से घूमने के बजाय खुद जनता के पास जाएंगे और मिलेंगे. हमें यह सब नहीं चाहिए. आज भी झाड़ू लगाने या किसी भी काम को करने में शर्मिंदगी महसूस नहीं करती हूं.
"मुझपर जनता ने भरोसा जताया है. डिप्टी मेयर बनाया है. ऑफिस जाने की बजाय जनता के दरबार में ही जाना पसंद है. मैं महिलाओं को सफल बनाना चाहती हूं. पहले जब कुछ नहीं था तब भी गरीबों की सेवा करती थी. आज भी मैं लोगों की सेवा के लिए तत्पर हूं."- चिंता देवी, डिप्टी मेयर, गया
चुनाव लड़ने के लिए लेना पड़ा कर्ज: जीत की सफर के बारे में चिंता देवी ने बताया कि चुनाव बहुत ही सहज तरीके से लड़ रही थी. विश्वास था, कि मेरी छवि को लेकर जनता वोट करेगी. यह सही भी साबित हुआ और डिप्टी मेयर बनी. चुनाव लड़ने के लिए थोड़ा कर्ज लेना पड़ा. तब जाकर चुनाव प्रचार की सामग्री का जुटान हो पाया. कई और लोगों ने भी मदद की.