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कोरोना महामारी का असर, गया में अधिकांश भिक्षु नहीं कर रहे हैं वर्षावास - कोरोना महामारी

वर्षावास की शुरुआत हो चुकी है लेकिन गया में इस बार अधिकांश बोध भिक्षु इसे नहीं कर रहे हैं. ऐसे में एक संस्था ने बौद्ध मठों को राशन उपलब्ध कराया है. ताकि खाने की कमी न हो और वर्षावास की यह परंपरा चलती रहे.

वर्षावास परंपरा की शुरुआत
वर्षावास परंपरा की शुरुआत

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Published : Jul 30, 2021, 7:50 AM IST

गया:भगवान गौतम बुद्ध ने वर्षा ऋतु में बौद्ध भिक्षुओं के लिए वर्षावास परंपरा (Varshavas Tradition) की शुरुआत की थी. इस साल का वर्षावास शुरू हो गया है लेकिन बोधगया (Bodhgaya) में इस बार अधिकांश भिक्षु वर्षावास नहीं कर रहे हैं. इसका कारण बौद्ध मठों और बौद्ध भिक्षुओं के पास खाने के लिए राशन की कमी को बताया जा रहा है.

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बोधगया में यह परंपरा न टूटे, इसके लिए एक संस्था सभी बौद्ध मठों में तीन महीने का राशन मुफ्त में दे रही है. दरअसल, बौद्ध भिक्षुओं के लिए वर्षावास गुरु पूर्णिमा से ही शुरू हो गया है. यह वर्षावास अक्टूबर के आश्विनी पूर्णिमा या कार्तिक पूर्णिमा तक चलेगा. वर्षावास के दौरान बौद्ध भिक्षु एक ही स्थान पर रहकर तीन माह तक साधना और स्वध्याय करते हैं.

वर्षावास को लेकर एक बात काफी प्रचलित है कि बरसात में बड़ी संख्या में छोटे-छोटे जीव जंतु उत्पन्न होते हैं. ऐसे में भ्रमण के दौरान उनकी हिंसा हो सकती है. इसी वजह से तीन महीने तक बौद्ध भिक्षु वर्षावास मनाते है. वर्षावास के बारे चकमा मोनोस्ट्री के बौद्ध भंते प्रिये पाल भंते बताते है कि यह वर्षा से जुड़ा हुआ है.

भगवान बुद्ध ने बौद्ध भिक्षुओं की समस्या और वैज्ञानिक कारण से इस वर्षावास परंपरा की शुरुआत की थी. पूर्व के समय में बरसात में एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाने में काफी कठिनाई होती थी. साथ ही बरसात के समय कहीं ठहरना मुश्किल होता था और खाने की भी समस्या होती थी. भिक्षा भी नहीं मिलती थी. बौद्ध भिक्षुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर आने-जाने में सारा समय व्यतीत हो जाता था.

इन सभी बातों को देखकर भगवान बुद्ध ने बौद्ध भिक्षुओं के लिए तीन माह का वर्षावास की शुरुआत की थी. इस दौरान बोध भिक्षु एक जगह रहकर साधना करते हैं, बौद्ध ग्रथों का अध्ययन और स्वध्याय करते हैं. इस साल पूरे देश में बौद्ध धर्म की इस परंपरा निर्वहन बहुत कम बौद्ध भिक्षु कर रहे हैं. इसका मुख्य कारण कोविड महामारी (Covid Pandemic) है. कोविड महामारी की वजह से बौद्ध भिक्षुओं और बौद्ध मठों में जमापूंजी खत्म हो गयी है. ऐसे में तीन माह बिना भिक्षाटन के कैसे जीवन व्यतीत होगा.

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ज्ञान की धरती बोधगया में यह परंपरा बौद्ध भिक्षु इस बार नहीं निभा रहे थे. ऐसे में बोधगया के एक सामाजिक संगठन ने सभी बौद्ध भिक्षुओं और बौद्ध मठों को तीन माह का राशन देना शुरू किया जिससे बौद्ध धर्म की यह परंपरा टूटे नहीं. डुंगेश्वरी पहाड़ स्थित वर्मा बौद्ध मठ में सिद्धार्था कैम्पेशन ट्रस्ट ने वर्षावास के लिए तीन माह का राशन दिया है.

वर्मा बौद्ध मठ के बौद्ध भंते चंद्रमुनि ने बताया कि कोविड काल (Corona Pandemic) की वजह से विदेशी पर्यटक नहीं आ रहे हैं. इससे वैश्विक विश्व के कोने-कोने से आने वाले दान भी बंद हो गए हैं. इसी बीच वर्षावास भी आ गया है. वर्षावास के दौरान एक जगह रहकर तीन माह बिताना रहता है लेकिन बिना भोजन के तीन माह कैसे बीतेगा. सिद्धार्था कैम्पेशन ट्रस्ट ने आज 40 लोगों के लिए तीन माह का राशन दिया है.

सिद्धार्था कैम्पेशन ट्रस्ट के निदेशक विवेक कल्याण ने बताया कि मैं आम लोगों को पिछले साल से एक सप्ताह का राशन साम्रगी वितरण कर रहा था. मुझे जानकारी मिली कि कोविड महामारी का असर वर्षावास पर भी पड़ रहा है. कई बौद्ध मठ में इस साल वर्षावास नहीं हो रहा है. ऐसे में मैंने अभी तक दो दर्जन से अधिक बौद्ध मठों में तीन माह का राशन उपलब्ध करवाया है.

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गौरतलब है कि बोधगया में 150 के करीब बौद्ध मठ हैं. जिसमें थाई बौद्ध मठ सबसे अधिक हैं. कोरोना काल में 50 से 60 मठों में बौद्ध भिक्षु रह रहे हैं. बाकी मठों में ताला लटका हुआ है. वहीं, कोरोना काल के पहले की बात करें तो वर्षावास में बोधगया के सभी बौद्ध मठों में बौद्ध भिक्षु का जमावड़ा लगा रहता था. सभी बौद्ध भिक्षु 3 महीने तक बोधगया में रहते थे और वर्षावास परंपरा का निर्वहण करते थे.

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