गया:बिहार में वर्ष 2016 से शराबबंदी कानून (Liquor Ban In Bihar) लागू है. बावजूद इसके शराब पीने और इसकी तस्करी करने के मामले थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. जहरीली शराब से संदिग्ध मौतें भी गया जिले में हो रही हैं. ऐसे में शराबबंदी कानून का उल्लंघन कर शराब सेवन करने वाले और बेचने वाले लगातार पकड़े जा रहे हैं, जिसका असर अब जेलों पर भी पड़ने लगा है. जेल में क्षमता से ज्यादा कैदी (Prisoners exceeding capacity in Gaya Jail) हैं वहीं नशा मुक्ति केंद्र खाली (De-Addiction Center Vacant In Gaya) पड़े हैं.
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गया सेंट्रल जेल में क्षमता से ज्यादा बंदी: दरअसल जेलों में शराब के बंदियों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि होने से क्षमता से अधिक बंदी हो गए हैं. वहीं शराब के आदी बंदियों के विड्रोल इफेक्ट (withdrawal effect ) से जेल प्रशासन में त्राहिमाम मचा हुआ है. गया सेंट्रल जेल (Gaya Central Jail) में बंदियों की कुल क्षमता 2600 है लेकिन यहां अब क्षमता से काफी अधिक बंदियों की संख्या हो गई है. इसका मुख्य कारण शराब के मामलों में लगातार गिरफ्तारियां सामने आ रही हैं.
शराब मामले से जुड़े कैदियों की संख्या ज्यादा:शराब के मामलों में अप्रत्याशित वृद्धि से गिरफ्तारियां हो रही है. यही वजह है कि वर्तमान में गया जेल में 3650 बंदी हो चुके हैं. इसमें से अकेले एक तिहाई के करीब शराब पीने वाले और बेचने वाले बंदी शामिल हैं. गया जेल में 1250 बंदी इस मामले से जुड़े हैं. इस तरह देखा जाए तो शराब के मामलों के कारण जेल में बंदियों की भार क्षमता काफी बढ़ गई है. जेल में बंद 34% बंदी शराब पीने वाले और बेचने वाले हैं.
नहीं थम रही शराब तस्करी: शराबबंदी कानून बिहार में कड़ाई से लागू होने के दावे किए जाते हैं. इसके बावजूद शराब की तस्करी नहीं थम रही है. देसी-विदेशी शराब की लगातार तस्करी हो रही है. वहीं ग्रामीण इलाकों में देसी शराब का काफी व्यापक तौर पर निर्माण किया जा रहा है. शराब पीने वाले भी नहीं मान रहे हैं. सरकार के शराबबंदी के कड़े कानून का उन्हें खौफ कमतर ही लग रहा है. नतीजतन शराब पीने और बेचने का सिलसिला लगातार जारी है.
गया के नशा मुक्ति केंद्र खाली: शराबबंदी कानून के बाद से जिलों में नशा मुक्ति केंद्र की भी स्थापना की गई थी. शुरुआत में तो लोग आए, बाद में नशा मुक्ति केंद्र में मरीजों का आना कम हो गया. शराब के आदी मरीज यहां कम आने लगे. इसके बाद एक तरह से नशा मुक्ति केंद्र को बंद कर दिया गया है. इसे गहन चिकित्सा इकाई में तब्दील कर दिया गया है, जहां सामान्य तौर पर मरीजों का इलाज किया जाता है. शराब के लती मरीज यहां अपवाद के तौर पर ही पहुंचते हैं. जानकारी हो कि जिले में गया के जिला अस्पताल जयप्रकाश नारायण अस्पताल में नशा मुक्ति केंद्र खोला गया था, अब यह एक तरह से बंद ही है.
26 जुलाई को हुई थी जेल में शराब के बंदी की मौत: बीते 26 जुलाई को ही गया सेंट्रल जेल में शराब पीने के आरोप में आए बंदी की मौत का मामला आया था. यह बंदी शराब पीने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था. गुरुआ थाना क्षेत्र के रहे रामप्रवेश मल्लाह नाम के इस व्यक्ति को आबकारी की टीम ने 24 जुलाई को गिरफ्तार किया था. 25 जुलाई को इसकी स्थिति बिगड़ने लगी. इसके बाद उसे मेडिकल में ले जाया गया, लेकिन इलाज के क्रम में 26 जुलाई की सुबह में मौत हो गई. इसके बाद परिजनों ने आरोप लगाया था कि शराब पीने के मामले में गिरफ्तारी के बाद क्या जेल में किसी की मौत हो जाएगी. जेल प्रशासन पर भी कई तरह के आरोप लगाए गए थे.
क्या कहते हैं जेल के अधिकारिक सूत्र : वहीं, इसे लेकर जेल के अधिकारिक सोर्स के अनुसार जो शराब के नशे का आदी हैं, उसे जेल में भेज दिया जाता है. उसका विड्रोल सिंड्रोम तुरंत पता नहीं लगता है. ऐसे में शराब पीने का आदी रहा बंदी बेहोश होने लगता है. मुंह से झाग निकलने लगते हैं और कंपकपाने लगता है. इससे बंदियों के बीच दहशत हो जाती है. ऐसे शराब के बंदियों को सीधे जेल में भेज दिया जाता है, जबकि उनके लिए नशा मुक्ति केंद्र एक विकल्प हो सकता है. सबसे बड़ी बात यह है कि जो शराब पीते हैं, उन्हें भी थोड़ी सी शराब के साथ पकड़े जाने पर शराब बेचने के मामले में भी जेल में भेज दिया जाता है, जिससे उनके बेल होने में भी समय लगते हैं. शराब पीने में धारा 37 लगाया जाता है, वहीं शराब रखने में धारा 30 लगता है. ऐसे बंदी काफी संख्या में है, जिससे जेल प्रशासन काफी परेशान है.
क्या है विड्रोल इफेक्ट?:वहीं, जयप्रकाश नारायण अस्पताल में वेक्टर बोन डिजीज और एमसीडी के प्रभार में रहे डॉक्टर एमई हक बताते हैं कि शराब नशीली चीज है और कोई भी नशा खराब होता है. बिहार में शराब को प्रतिबंधित किया गया है. शराब पीने वालों को सर से लेकर पैर तक का हिस्सा डैमेज होता है. लीवर और कैंसर की बीमारी होती है. शराब का जो आदी है, वह हमेशा इसी चक्कर में रहता है, कि शराब कैसे मिले. वहीं शराब को पीने से रोका जाता है तो कई दिन तक इसका विड्रोल इफेक्ट होता है. शराब यदि एकाएक छोड़ दी जाए तो नींद खत्म हो जाती है.
"जेल में दो-तीन डॉक्टर रहते हैं. वह लोग बता सकते हैं कि ऐसे बंदियों का इलाज कैसे किया जाता है. यदि शराब के लती हमारे पास इलाज कराने आते हैं तो उनकी साइकोलॉजिकली काउंसिलिंग की जाती है. अस्पताल में ऐसी भी दवा उपलब्ध है, जिसे दारू की आदत छूटती है. यहां नशा मुक्ति केंद्र है, लेकिन कोई भर्ती नहीं होते हैं. अगर ऐसे मरीज आते हैं तो उसे चालू किया जाएगा."- डॉक्टर एमई हक, वेक्टर बोन डिजीज सह एनसीडी प्रभारी