गया:धर्मनगरी की ख्याति विश्वविख्यात है. राजकुमार सिद्धार्थ को बोधगया (Bodhgaya) में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. बोधगया में ज्ञान की प्राप्ति के बाद राजकुमार सिद्धार्थभगवान गौतम बुद्ध (Mahatma Buddha) कहलाये और उन्होंने बौद्ध धर्म की स्थापना की. जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई, उसी गया में भगवान बुद्ध को देवी मां (Worshiped As A Goddess),भगवान शंकर,ब्रह्म बाबा के रूप में पूजा जा रहा है.
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भगवान बुद्ध को हिन्दू देवी-देवता के रूप में पूजने की ये परंपरा प्राचीन काल से ही चली आ रही है. उसी परंपरा को शिक्षित और जानकर लोग आज भी अपनाए हुए हैं. बता दें कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी भगवान बुद्ध की धर्म परिवर्तन वाले मन्दिर और प्रतिमा को देखा था,उन्होंने निर्देश दिया था कि इस स्थान को संरक्षित किया जाए. लेकिन स्थानीय प्रशासन के द्वारा आज तक किसी तरह की पहल नही की गई है.
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दरअसल, गया जिले के गुरुआ प्रखण्ड के दुब्बा गांव में एक गढ़ है. उस गढ़ में थोड़ी भी खुदाई करने पर भगवान बुद्ध की बेशकीमती और अतिप्राचीन प्रतिमा मिलती थी. प्राचीन काल मे दुब्बा गांव के ग्रामीणों ने गढ़ की खुदाई की तो भगवान बुद्ध की बेशकीमती मूर्तियां मिलने लगी. उन मूर्तियों को आस्था या जानकारी के आभाव में गांव के विभिन्न मंदिरों में स्थापित किया गया.
भगवान बुद्ध की मूर्तियों की उसी वक्त से हिन्दू धर्म के देवी -देवता के रूप में पूजा अर्चना शुरू हो गई थी. गया जिले में भगवान बुद्ध का धर्म परिवर्तन सिर्फ गुरुआ प्रखण्ड में नहीं बोधगया और सीताकुंड में भी देखने को मिलता है. सीताकुंड में बुद्ध स्तूप पर लोग पिंड अर्पित करते हैं. वहीं नालंदा जिले के कई गांवो में भगवान बुद्ध को हिंदू देवी-देवता की तरह पूजा जाता है.
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दुब्बा गांव के पूर्व सरकारी शिक्षक सह जानकार राजदेव प्रसाद बताते हैं कि अंधविश्वास की वजह से लोग भगवान बुद्ध को देवी मानकर पूजते हैं. दुब्बा गांव और भूरहा गांव में बुद्ध की छोटी, बड़ी मूर्तियों को ग्रामीण हिन्दू देवी-देवता के रूप में पूजते हैं. ग्रामीण भगवान बुद्ध की मूर्ति को ब्रह्म बाबा,डाक बाबा और गौरैया बाबा मानकर मन्नत मांगते हैं. मन्नत पूरी होने पर मुर्गा चढ़ाया जाता है, शराब चढ़ाते हैं और चढ़ावा चढ़ाते हैं.
दुब्बा गांव में तीन एकड़ 85 डिसमिल का जो गढ़ है, इसके इतिहास के बार मे स्पष्ट जानकारी नहीं है. लेकिन पूर्वजों के अनुसार यह कोल शासक का किला था. भगवान बुद्ध जब बोधगया से पहला प्रवचन देने के लिए सारनाथ पहुंचे थे, तो वे इसी किले में एक रात में रुके थे. उसके बाद उनके शिष्यों ने उनकी कई प्रतिमा बनवाई थी. ऐसा प्रतीत होता है कि सालों बाद वह किला जमीन में समा गया और गढ़ में तब्दील हो गया.
"बौद्ध धर्म के लोग यहां आते हैं. भगवान बुद्ध की इस अवस्था को देखकर उनको काफी निराशा होती है. मुझसे खासकर निवेदन करते हैं कि इसे दूसरे जगह रखकर संरक्षित करें. एक व्यक्ति इतना खर्च कैसे उठाएगा. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी दुब्बा गांव में स्थित गढ़ और मन्दिर को देखे थे. उन्होंने गढ़ की घेराबंदी और मूर्तियों को संरक्षित करने के लिए एक संग्रहालय बनाने का आदेश दिया था. लेकिन आज तक कुछ नहीं हुआ. संग्रहालय के नाम पर छोटी छोटी मूर्तियों को सरकारी स्कूल के एक कमरे में बंद करके रखा गया है."-.राजदेव प्रसाद, पूर्व शिक्षक सह जानकार
बुद्ध की मूर्तियों को देवी-देवता मानकर पूजा करने का कारण अंधविश्वास और जानकारी का अभाव है. इसके साथ ही एक और कारण सामने आया है. कुछ साल पहले मन्दिर में एक मूर्ति को चोर चोरी करके ले जा रहे थे, लेकिन वो सफल नहीं हुए. ग्रामीणों ने उस मूर्ति को मन्दिर मोटी छड़ से जड़ दिया. उसके बाद भी इस मूर्ति की चोरी करने के प्रयास हुए लेकिन चोरों के हाथ में सिर्फ मूर्ति का सिर आया.
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मान्यताओं के मुताबिक दुब्बा गांव के देवी मंदिर और भूरहा में पीपल का पेड़ के नीचे की एक मूर्ति का सिर चोर चोरी करके ले गए थे. बाद में बोधगया के बौद्ध धर्म के लोगों ने दोनों मूर्तियों में सिर लगवाया था. दुब्बा गढ़ से निकली मूर्तियां बेशकीमती हैं. इन मूर्तियों की जब चोरी होने लगी तो ग्रामीणों ने मूर्तियों को बचाने के लिए पूजा करना शुरू कर दिया.
दुब्बा गांव के ग्रामीण कोलेश्वर प्रसाद बताते है कि मैं गांव का बुजुर्ग व्यक्ति हूं. लेकिन मेरे बचपन से इस मन्दिर में भगवान बुद्ध की प्रतिमा को देवी के रूप में पूजा जाता है.
"ये कोई नई परंपरा नहीं है. प्राचीन काल से ही यहां बुद्ध की देवी के रूप में पूजा हो रही है. गांव और परिवार की सदियों पुरानी आस्था का हमलोग निर्वहन कर रहे हैं. कुछ जागरूक लोग भगवान बुद्ध की प्रतिमा पर सिंदूर लगाने के लिए मना करते हैं लेकिन महिलाएं नहीं मानती हैं."- कोलेश्वर प्रसाद, ग्रामीण,दुब्बा गांव
दुब्बा गांव के ग्रामीण कमलेश प्रसाद बताते है कि गांव में स्थित गढ़ से भगवान बुद्ध से जुड़ी और बौद्ध कला से बने हजारो की संख्या में मूर्तियां, स्तूप और स्तंभ निकला है. गांव के हर घर मे भगवान बुद्ध की बेशकीमती मूर्तियां हैं. उसे लोग अपने अपने तरीके से पूजते हैं. स्तूप और स्तंभ को बैठने के लिए और जानवरों को बांधने के लिए उपयोग में लाया जाता है. गांव की महिलाएं भगवान बुद्ध की प्रतिमा को हिन्दू देवी मानती हैं.
बता दें कि गया जिले के गुरुआ के नशेर गांव में ब्रह्म स्थान पर ब्रह्म बाबा के साथ मुकुट धारी बुद्ध की पूजा की जाती है. वहीं गुरुआ प्रखण्ड के दुब्बा गांव में भगवती स्थान में भगवान बुद्ध की पूजा देवी के रूप में हो रही है.गुरुआ के ही गुनेरी में भगवान बुद्ध की मूर्ति की पूजा भैरो बाबा के रूप में होती है. यहां लोग शराब भी चढ़ाते हैं.
गया शहर में स्थित सीता कुंड में बौद्ध स्तूप पर पिंडदान भी किया जाता है. बोधगया में भी कई स्थानों पर बौद्ध स्तूप को शिवलिंग रूप में रखा गया है.वजीरगंज के कुर्किहार गढ़ पर भी स्थित देवी मंदिर में भगवान बुद्ध की कई मूर्तियां हैं जिन्हें महिलाएं देवी और भैरो बाबा के रूप में पूजती हैं. गया सहित नालंदा में भी बौद्ध धर्म के धरोहर का हिंदूकर्ण किया जा रहा है. नालंदा के बड़गांव में श्री तिलैया भंडार में भैरो मंदिर में भगवान बुद्ध की विशाल मूर्ति स्थापित है और यहां लोग भैरव बाबा के रूप में भगवान बुद्ध की मूर्ति की पूजा करते हैं.