गया: मोक्ष की नगरी गया जी में पिंडदान के दसवें दिन मातृ नवमी को सीताकुंड और रामगया तीर्थ इन दो पुण्य तीर्थो में पिंडदान करने का विधान है. दसवें दिन सीताकुंड पर सुहाग पिटारी दान और बालू का पिंड अर्पित किया जाता है. फल्गु नदी की बालू से पिंड बना विधि विधान पूरा किया जाता है.
सीताकुंड को लेकर एक कथा प्रचलित हैं. कथा ये है कि जब राम, लक्षमण और माता सीता वनवास काल में राजा दशरथ की मृत्यु के पश्चात पिंडदान करने गया जी में आए. भगवान श्रीराम और लक्ष्मण पिंड की सामग्री लेने के लिए चले गए. इसी बीच राजा दशरथ की आकाशवाणी हुई. जिसमें राजा दशरथ ने कहा पुत्री सीता जल्दी से हमें पिंड दे दो. पिंड देने का मुहूर्त बीता जा रहा है. माता सीता ने भगवान श्रीराम और लक्ष्मण के आने में देरी होते देख फल्गु नदी के बालू का पिंड बनाया और राजा दशरथ को अर्पित कर दिया. इसके बाद राजा दशरथ को मोक्ष की प्राप्ति हुई. तब से सीताकुंड पिंडवेदी पर बालू का पिंड बनाकर पितरों को देने का प्रावधान है.
जब श्री राम ने मांगी गवाही...
राजा दशरथ को पिंडदान करने की बात जब माता सीता ने श्रीराम को बताई. तो उन्होंने कहा कि बिना किसी सामग्री के पिंडदान कैसे किया जा सकता है. क्योंकि माता सीता ने गाय, फल्गु नदी और केतकी के फूल तीनों को साक्षी मानकर पिंडदान किया था. तो उन्होंने तीनों से आग्रह किया कि बताएं पिंडदान किया जा चुका है.
झूठ बोल गए गाय, फल्गु और केतकी के फूल...
इस बाबत, गाय, फल्गु और केतकी तीनों मुकर गए. अंत में माता सीता ने राजा दशरथ को याद कर प्रामणिकता देने की बात कही. राजा दशरथ ने श्री राम को बताया कि सीता ने मुहूर्त निकलता देख ऐन मौके पर मुझे पिंडदान कर दिया था.