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पितृपक्ष के चौथे दिन बोधगया की पांच वेदियों पर किया जा रहा है पिंडदान - bihar news

चौथे दिन महाबोधि मंदिर और यहां स्थित तीन पिंडवेदियों पर पिंडदानी पहुंच रहे हैं. यहां धर्मारण्य पिंडवेदी अन्य वेदियों से अलग महत्व रखती है.

पितरों के लिए पिंडदान करते पिंडदानी

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Published : Sep 16, 2019, 6:57 AM IST

गया: एक ओर जहां महाबोधि मंदिर परिसर में 'बुद्धं शरणं गच्छामि' के स्वर गूंज रहे हैं, वहीं दूसरी ओर पिंडवेदियों पर मोक्ष के मंत्रों का उच्चारण हो रहा है. इसी क्रम में सोमवार को गयाजी में पितृपक्ष के मौके पर हजारों की संख्या में हिंदू धर्मावलंबी अपने पुरखों की मोक्ष प्राप्ति के लिए पिंडदान और तर्पण कर कर्मकांड को पूरा कर रहे है.

महात्मा बुद्ध की ज्ञानस्थली बोधगया में भी अनूठा संगम देखने को मिल रहा है. बोधगया क्षेत्र में ऐसे तो पांच पिंडवेदियां हैं, परंतु तीन पिंडवेदियां धर्मारण्य, मातंगवापी और सरस्वती प्रमुख हैं. पुरखों के मोक्ष की कामना लेकर आने वाले श्रद्धालु भगवान बुद्ध को विष्णु का अवतार मानते हुए महाबोधि मंदिर में भी पिंडदान के विधान को कालांतर से निभाते आ रहे हैं.

कर्मकांड करते पिंडदानी

सरस्वती (मुहाने नदी) में तर्पण के पश्चात धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान के दौरान वहां स्थित अष्टकमल आकार के कूप में पिंड विसर्जित कर यात्री मातंगवापी पिंडदान के लिए निकलते हैं. यहां पिंडदानी पिंड मातंगेश शिवलिंग पर अर्पित करते हैं.

महाबोधि मंदिर और पांच वेदियों पर किया जा रहा पिंडदान

स्कंद पुराण के अनुसार...
एक कथा है कि महाभारत युद्ध के दौरान मारे गए लोगों की आत्मा की शांति और पश्चाताप के लिए धर्मराज युधिष्ठिर ने धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान किया था. धर्मारण्य पिंडवेदी पर पिंडदान और त्रिपिंडी श्राद्ध का विशेष महत्व है. यहां किए गए पिंडदान और त्रिकपंडी श्राद्ध से प्रेतबाधा से मुक्ति मिलती है.

पितरों के लिए पिंडदान करते पिंडदानी

पढ़ें स्कंद पुराण की धर्मारण्य वेदी से जुड़ी कहानी-

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