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Published : Dec 28, 2019, 2:43 PM IST

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शांति के लिए तांत्रिक क्रियाओं से की जाती है कालचक्र पूजा, 18 बार हो चुका है गया में आयोजन

पूजा विधि के क्रम जो सूत्र बोला जाता है, उसे पेटिंग के माध्यम से दर्शाया जाता है. एक पूरा चक्र बनाया जाता है. चक्र में बोले गए अर्थ को पेटिंग से एक अवधि तक दर्शाया जाता है.

gaya
कालचक्र पूजा

गयाःतिब्बत से शुरू हुई कालचक्र पूजा की परंपरा देश-विदेश और भारत में कई जगहों पर होने लगी है. बौद्ध धर्म के अनुसार ये पूजा तांत्रिक साधना से की जाती है. कालचक्र पूजा जीवितों के लिए शांति और मृत व्यक्तियों के लिए मोक्ष की प्राप्ती के लिए की जाती है. इस पूजा का अगवाई तिब्बत के धर्म गुरु दलाई लामा करते हैं.

कालचक्र पूजा के दौरान श्रद्धालु

तिब्बतियों के लिए खास है कालचक्र पूजा
गौरतलब है कि कालचक्र पूजा मूलतः तिब्बत की पूजा है. तिब्बतियों ने भारत में शरण ले लिए तो ये पूजा भारत मूल के बौद्धिष्टों के लिए मान्य हो गई. भारत के अन्य हिस्सों के साथ विदेशो में कालचक्र पूजा की जाती है. विश्व शांति के लिए अद्भुत पूजा का अगुवाई तिब्बती दलाई लामा करते है.

कालचक्र पूजा

पूजा का अगुवाई दलाई लामा ही करते हैं
बौद्ध धर्म का उदय ज्ञान और शांति के लिए हुआ था. अपने उदय काल से ही बौद्ध धर्म ने ज्ञान और शांति का प्रचार किया है. शांति का संदेश पहुंचाने के लिए ही कालचक्र पूजा की जाती है. कालचक्र पूजा के बारे में बोधगया के बौद्ध भंते बताते हैं कि भूटान और तिब्बत के बौद्ध धर्मावलंबी काफी आस्था से कालचक्र पूजा करते हैं. ये बहुत बड़ी पूजा है. कालचक्र पूजा में भंते, लामा ही ज्यादातर भाग लेते हैं. इस पूजा का अगुवाई दलाई लामा ही करते हैं.

दिवगंत आत्मा के लिए भी है ये पूजा
कालचक्र पूजा वैश्विक स्तर तक पहुंच गई है. शांति के लिए तांत्रिक क्रियाओं से की जानेवाली ये बौद्ध धर्म की पूजा है. ये सालों से चली आ रही है. बौद्ध भंते इस पूजा के बारे में बताते हैं कि कालचक्र एक अनुष्ठान होता है, जो तकरीबन एक हप्ते का होता है. कालचक्र में विशेष पूजा की जाती है. जो दिवगंत हो जाते हैं उनके लिए भी पूजा की जाती है.

जानकारी देते बौद्ध भंते

गया में 18 बार हो चुकी है कालचक्र
कालचक्र पूजा जहां होता हैं उस मैदान का नाम कालचक्र मैदान हो जाता है. बोधगया में अब तक लगभग 18 बार कालचक्र मैदान में कालचक्र पूजा हो चुकी है. पिछली बार 2017 में कालचक्र पूजा हुई थी जिसकी अगुवाई भी तिब्बत के 14 वें गुरू दलाई लामा ने की थी. विश्व शांति के लिए तांत्रिक साधना से कामना करना बड़ा ही आलौकिक पल होता हैं.

महाबोधी मंदिर, गया

क्या है कालचक्र पूजा की कहानी
कालचक्र पूजा के पीछे एक कहानी भी है. प्रसिद्ध तिब्बती विद्वान तारानाथ के अनुसार भगवान बुद्ध ने चैत्र मास की पूर्णिमा को श्री धान्यकटक के महान स्तूप के पास कालचक्र का ज्ञान प्रसारित किया था. उन्होंने इसी स्थान पर कालचक्र मंडलों का सूत्रपात भी किया था. तब से कालचक्र पूजा की शुरुआत हुई थी.

कालचक्र पूजा

कैसे होती है कालचक्र पूजा
बौद्ध भंते ने पूजा की विधि को बताते हुए कहा कि ये तांत्रिक पूजा है, इस पूजा में विशेष लोग भाग लेते हैं. पूजा विधि के क्रम जो सूत्र बोला जाता है, उसे पेटिंग के माध्यम से दर्शाया जाता है. एक पूरा चक्र बनाया जाता है. चक्र में बोले गए अर्थ को पेटिंग से एक अवधि तक दर्शाया जाता है. कालचक्र पूजा में समय का आंकलन भी किया जाता है.

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