गयाःप्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत को आत्मनिर्भर बनाने के लिए 'लोकल फॉर वोकल'(Local for Vocal) पर जोर देने की बात कही है. पीएम के इस सपने को साकार करने के लिए कई संस्थाओं और आम लोगों ने इसकी पहल भी कर दी है. बोधगया के रती बीघा गांव (Rati Bigha Village) की रहने वाली महिलाएं (Jeevika Didi Making Jute slippers In Gaya) भी कुछ ऐसा ही कर रहीं हैं, जो आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ता हुआ कदम कहा जा सकता है. अंतरराष्ट्रीय नगरी बोधगया में कुछ महिलाएं इन दिनों जूट की चप्पलें बनाने में लगीं हैं. जो गया ही नहीं बल्कि विदेशों में भी चर्चा का विषय बन गया है.
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हैंड मेड हैं जूट की चप्पलें: दरअसल, जूट की चप्पलें बनाने वाली ये मेहनतकश महिलाएं जीविका समूह से जुड़ी हुई हैं और लगातार कुछ नया करने को प्रयासरत रहती हैं. इनकी इसी सोच का नतीजा है कि आज बोधगया में विदेशों से आने वाले बौद्ध श्रद्धालुओं के लिए जूट की चप्पलें उपलब्ध हैं. जिसे देखकर बौद्धिस्ट 'वैरी नाइस' और 'ब्यूटीफुल' कह रहे हैं. काफी बारीकी और मेहनत से जूट की ये चप्पलें तैयार की जा रही हैं. कोई फीता बंद लगा रहा है, तो कोई धागे तैयार कर रहा है, तो कोई कूट को काटकर उसकी साइज तैयार करने में जुटा है.
गर्मी में जलते थे पांव: बड़ी बात यह है कि जूट की चप्पल को पहनकर बौद्ध श्रद्धालु महाबोधि मंदिर में कहीं भी जा सकते हैं. महाबोधि मंदिर परिसर से लेकर गर्भगृह तक यह चप्पल पहन कर जाया जा सकता है. आम लोग से लेकर पर्यटक भी ऐसा कर सकते हैं. पहले चमड़े के चप्पल जूते पहने रहने के कारण मुख्य गेट के पास ही रोक दिया जाता था और चमड़े की चप्पल जूते उतरवा ली जाती थी. ऐसे में गर्मी के दिनों में श्रद्धालुओं पर्यटकों को काफी परेशानी होती थी. लेकिन अब जूट के चप्पलों का कमाल है कि श्रद्धालु या पर्यटक इसे पहनकर महाबोधि मंदिर में हर जगह आ जा सकते हैं.
पीएम नरेंद्र मोदी के संदेश से मिली प्रेरणा-प्रधानमंत्री का वह संदेश जिसमें उन्होंने महाबोधि मंदिर में चमड़े के चप्पल जूते पहनकर नहीं जाने की बात कही थी, इससे प्रेरणा लेकर उन्होंने जूट के चप्पल को बनाने का आईडिया सोचा और आज करीब सैकड़ों महिलाएं इसके निर्माण में दिन-रात जुटी हुई हैं. इन्होंने यूट्यूब से चप्पल बनाने का तरीका सीखा और फिर खुद आकर्षक जूट की चप्पलें बनाने लगीं. इस समय बौद्ध गया में जूट की चप्पलों की डिमांड काफी बढ़ गई है. बीटीएमसी द्वारा और बौद्ध श्रद्धालुओं के द्वार भी जूट की चप्पलों की खरीदारी की जा रही है. जूट प्लास्टिक की चप्पलों से ज्यादा बेहतर है. यह मिट्टी में आसानी से डिस्पोज भी हो जाता है.