गया:पितृ पक्ष 2022(Pitru Paksha 2022) का आज 12वां दिन ( Importance Of 12th Day Of Pitru Paksha) है. कहा जाता है कि मुंड पृष्ठा तीर्थ पर पिंडदान करने से पितरों को ब्रह्मलोक की प्राप्ति होती है. वहीं, आदि गया वेदी पर पिंडदान( 12th Day Of Pinddan In Gaya) करते हैं. यहां चांदी की वस्तु दान की जाती है. दोनों जगह कर्मकांड करने से ही पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. 10 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत हुई है और 25 सितंबर को इसका समापन होगा.
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क्या है मुंड पृष्ठा की पौराणिक कहानी:गया सुर पर जब धर्मशिला पर्वत को रखा गया, तो उसे स्थिर करने के लिए आदि गदाधर भगवान मुंड पृष्ठा पर बैठ गए. इसके चलते इस तीर्थ को आदि गया कहते हैं. जो मुंडपृष्ठा पर स्थित आदि गदाधर देव स्तुति करते हैं, पूजा करते हैं वो विष्णु लोक को चले जाते हैं.
क्यों देते हैं चांदी दान?:इसके बाद मुंडपृष्ठा पर ही अवस्थित धौतपद वेदी पर श्राद्ध करते हैं. यहां ब्रह्मा जी ने चांदी का दान दिया था और धौंता ऋषि ने संकल्प कराया. इसलिए इस वेदी का नाम द्दोतपद पड़ा. द्दोतपद पर अपने पुरोहित को यथा शक्ति चांदी का दान अवश्य करना चाहिए, जिससे पितर तर जाते हैं
विरजा देवी की खंडित मूर्ति के दर्शन करते हैं पिंडदानी: गया जी में पिंडदान के 12 दिन एकादशी तिथि को फल्गु नदी में तर्पण कर श्राद्ध की शुरुआत करनी चाहिए. करसल्ली पर्वत पर तीनों पिंड वेदी को नाभि तीर्थ भी कहते हैं. इसके ऊपर विरजा देवी विराजमान हैं, इसलिए इसे विरजा तीर्थ भी कहते हैं. मुस्लिम शासक औरंगजेब ने विरजा देवी की मूर्ति को भंग कर दिया था. आज भी विरजा देवी की भंग मूर्ति के दर्शन होते हैं.
पवित्र रह कर करना चाहिए पिंडदान:पिंडदान करने के समय ब्रह्मचारी रहना चाहिए. इस दौरान एक बार भोजन करना चाहिए. पृथ्वी पर सोना चाहिए और सच बोलना चाहिए. साथ ही पवित्र रहना चाहिए. इतना काम करने से ही गया तीर्थ का फल मिलेगा. जिनके घर में कुत्ते पाले जाते हैं उनका जल भी पितर ग्रहण नहीं करते हैं. नियमों का पालन कर पिंडदान करने से पितरों को शिवलोक की प्राप्ति होती है.
पितृपक्ष की तिथि:आश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर अमावस्या तक की अवधि को पितृपक्ष माना जाता है. वैदिक परंपरा और हिंदू मान्यताओं के अनुसार पितरों के लिए श्रद्धा से श्राद्ध करना एक महान और उत्कृष्ट कार्य है. मान्यता के मुताबिक, पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक माना जाता है, जब वह अपने जीवन काल में जीवित माता-पिता की सेवा करे और उनके मरणोपरांत उनकी मृत्यु तिथि (बरसी) तथा महालय (पितृपक्ष) में उनका विधिवत श्राद्ध करें.
भूल के भी ना करें ये काम:पितृ पक्ष के दौरान घर के किचन में मीट, मछली, मांस, लहसून, प्याज, मसूर की दाल, भूलकर भी न बनाएं. ऐसा करने से पितृ देव नाराज होते हैं और पितृ दोष लगता है. इसके साथ ही इस दौरान जो लोग पितरों का तर्पण करते हैं उन्हें शरीर में साबुन और तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. पितृ पक्ष के दौरान नए कपड़े, भूमि, भवन सहित सभी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. इस दौरान कोई भी मांगलिक काम करने से परहेज करें.
गया श्राद्ध का क्रम: गया श्राद्ध का क्रम 1 दिन से लेकर 17 दिनों तक का होता है. 1 दिन में गया श्राद्ध कराने वाले लोग विष्णुपद फल्गु नदी और अक्षय वट में श्राद्ध पिंडदान कर सुफल देकर यह अनुष्ठान समाप्त करते हैं. वह एक दृष्टि गया श्राद्ध कहलाता है. वहीं, 7 दिन के कर्म केवल सकाम श्राद्ध करने वालों के लिए है. इन 7 दिनों के अतिरिक्त वैतरणी भसमकुट, गो प्रचार आदि गया आदि में भी स्नान-तर्पण-पिंडदानादि करते हैं. इसके अलावा 17 दिन का भी श्राद्ध होता है. इन 17 दिनों में पिंडदान का क्या विधि विधान है जानिए.
पहला दिन: पुनपुन के तट पर श्राद्ध करके गया आकर पहले दिन फल्गु में स्नान और फल्गु के किनारे श्राद्ध किया जाता है. इस दिन गायत्री तीर्थ में प्रातः स्नान, संध्या मध्याह्न में सावित्री कुंड में स्नान करना चाहिए. संध्या और सांय काल सरस्वती कुंड में स्नान करना विशेष फलदायक माना जाता है.
दूसरा दिन: दूसरे दिन फल्गु स्नान का प्रावधान है. साथ ही प्रेतशिला जाकर ब्रह्मा कुंड और प्रेतशिला पर पिंडदान किया जाता है. वहां से रामशिला आकर रामकुंड और रामशिला पर पिंडदान किया जाता है और फिर वहां से नीचे आकर काकबली स्थान पर काक, यम और स्वानबली नामक पिंडदान करना चाहिए.
तीसरा दिन: तीसरे दिन पिंडदानी फल्गु स्नान करके उत्तर मानस जाते हैं. वहां स्नान, तर्पण, पिंडदान, उत्तरारक दर्शन किया जाता है. वहां से मौन होकर सूरजकुंड आकर उसके उदीची कनखल और दक्षिण मानस तीर्थों में स्नान तर्पण पिंडदान और दक्षिणारक का दर्शन करना चाहिए. फिर पूजन करके फल्गु किनारे जाकर तर्पण करें और भगवान गदाधर जी का दर्शन एवं पूजन करें.
चौथा दिन: चौथे दिन भी फल्गु स्नान अनिवार्य है. मातंग वापी जाकर वहां पिंडदान करना चाहिए. इस दिन धर्मेश्वर दर्शन के बाद पिंडदान करना चाहए फिर वहां से बोधगया जाकर श्राद्ध करना चाहिए.