गया:जिन लोगों की मृत्यु पूर्णिमा तिथि (Pitru Paksha Date 2022) पर हुई हो, उनका श्राद्ध पहले दिन (Importance Of First Day Pitru Paksh) करना चाहिए. आज 10 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत हो गई है. पितृ पक्ष का समापन 25 सितंबर को होगा. इन 17 दिनों तक पिंडदानी अपने पितरों (पूर्वजों) को तर्पण कर सकते हैं. पितरों की पूजा की विधि की प्रक्रिया भी बहुत अलग होती है. पिंडदान करने के दौरान कई चीजों का खास ख्याल रखना होता है. पिंडदानी को खासकर काफी नियमों का पालन करना होता है. इस दौरान जब तक श्राद्ध ना हो जाए वंशज ना तो दाढ़ी बना सकते हैं और ना हीं अपने नाखून काट सकते हैं. इस नियम का पालन काफी सख्ती से आज भी किया जाता है. मांस मदिरा से भी दूरी बना ली जाती है. माना जाता है कि इन नियमों का पालन नहीं करने से पितृ दोष लगता है. यानी कि आने वाली कई पीढ़ियों को पितरों के कोप का भाजन बनना पड़ता है.
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पहले दिन ऐसे करें पूजन:मोक्ष धाम गया को प्राप्त करके 17 दिन में श्राद्ध करने वाले पहले तीर्थ पुरोहित (पंडा जी) चरण-पूजा करके श्राद्ध के लिए श्री गणेश हेतु आदेश लें.आचार्य को वरण करके उनके आचार्य में कर्मकांड आरंभ करें. भाद्रपद पूर्णिमा अर्थात प्रथम दिन पिंडदान अंत: सलिला फल्गु तट पर करें. प्रायः गदाधर भगवान से पूरब श्राद्ध स्थल है. परंतु वायु पुराण को मानें तो गया धाम के ब्रह्म सरोवर के सामने से उत्तर मानस वेदी तक फल्गु का महत्व है. इसके बीच कहीं भी पिंडदानी फल्गु श्राद्ध कर सकते हैं.
पितृपक्ष श्राद्ध की पूजा विधि: श्राद्ध ( Pitru Paksha Puja Vidhi) में तिल, चावल, जौ आदि को अधिक महत्त्व दिया जाता है .श्राद्ध में इन चीजों को विशेष रुप से सम्मिलित करना चाहिए. इसके बाद श्राद्ध को पितरों को भोग लगाकर किसी ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए. तिल और पितरों की पंसद चीजें, उन्हें अर्पित करें.श्राद्ध में पितरों को अर्पित किए जाने वाले भोज्य पदार्थ को पिंडी रूप में अर्पित करना चाहिए.श्राद्ध का अधिकार पुत्र, भाई, पौत्र, प्रपौत्र समेत महिलाओं को भी होता है.अंत में कौओं को श्राद्ध को भोजन कराएं. क्योंकि कौए को पितरों का रुप माना जाता है.
डीएम खुद रख रहे व्यवस्थाओं पर नजर: गया मेंविश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला चल रहा है. पितृपक्ष मेले में काफी संख्या में पिंडदानियों की भीड़ जुटी है. वहीं दूसरी ओर जिला प्रशासन मेला क्षेत्र की व्यवस्था को लेकर पूरी एहतियात बरत रहा है. इसी क्रम में शनिवार को गया जिलाधिकारी डॉ त्यागराजन एसएम ऑटो से मेला क्षेत्र का जायजा लेने के लिए इलेक्ट्रिक टोटो (ऑटो) से निकल गए. आम पैसेंजर की तरह वे टोटो में बैठ कर पितृपक्ष मेले का जायजा लिया.
पितरों को मिलता है बैकुंठ में निवास: ज्योतिषों के अनुसार जिस तिथि को माता-पिता, दादा-दादी आदि परिजनों की मृत्यु होती है, उस तिथि पर इन सोलह दिनों में उनका श्राद्ध करना उत्तम रहता है. जब पितरों के पुत्र या पौत्र द्वारा श्राद्ध किया जाता है तो पितृ लोक में भ्रमण करने से मुक्ति मिलकर पूर्वजों को मोक्ष प्राप्त हो जाता है.
पितृपक्ष की तिथि:आश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर अमावस्या तक की अवधि को पितृपक्ष माना जाता है. वैदिक परंपरा और हिंदू मान्यताओं के अनुसार पितरों के लिए श्रद्धा से श्राद्ध करना एक महान और उत्कृष्ट कार्य है. मान्यता के मुताबिक, पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक माना जाता है, जब वह अपने जीवन काल में जीवित माता-पिता की सेवा करे और उनके मरणोपरांत उनकी मृत्यु तिथि (बरसी) तथा महालय (पितृपक्ष) में उनका विधिवत श्राद्ध करे.
गया में ही क्यों पिंडदान?: गया को विष्णु का नगर माना जाता है, जिसे लोग विष्णु पद के नाम से भी जानते हैं. यह मोक्ष की भूमि कहलाती है. विष्णु पुराण के अनुसार यहां पूर्ण श्रद्धा से पितरों का श्राद्ध करने से उन्हें मोक्ष मिलता है. मान्यता है कि गया में भगवान विष्णु स्वयं पितृ देवता के रूप में उपस्थित रहते हैं, इसलिए इसे पितृ तीर्थ भी कहते हैं.
गया में भगवान राम ने भी किया था पिंडदान: ऐसी मान्यताएं हैं कि त्रेता युग में भगवान राम, लक्ष्मण और सीता राजा दशरथ के पिंडदान के लिए यहीं आये थे और यही कारण है की आज पूरी दुनिया अपने पूर्वजों के मोक्ष के लिए आती है.
इन घाटों पर होती है सबसे अधिक भीड़: पिंडवेदियों में प्रेतशिला, रामशिला, अक्षयवट, देवघाट, सीताकुंड, देवघाट, ब्राह्मणी घाट, पितामहेश्वर घाट काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं. कई दशकों से यहां पितृपक्ष मेला लगता रहा है. कोरोना के बाद एक बार फिर से लोगों की भीड़ यहां देखने को मिल रही है.
गया श्राद्ध का क्रम: गया श्राद्ध का क्रम 1 दिन से लेकर 17 दिनों तक का होता है. 1 दिन में गया श्राद्ध कराने वाले लोग विष्णुपद फल्गु नदी और अक्षय वट में श्राद्ध पिंडदान कर सुफल देकर यह अनुष्ठान समाप्त करते हैं. वह एक दृष्टि गया श्राद्ध कहलाता है. वहीं, 7 दिन के कर्म केवल सकाम श्राद्ध करने वालों के लिए है. इन 7 दिनों के अतिरिक्त वैतरणी भसमकुट, गो प्रचार आदि गया आदि में भी स्नान-तर्पण-पिंडदानादि करते हैं. इसके अलावा 17 दिन का भी श्राद्ध होता है. इन 17 दिनों में पिंडदान का क्या विधि विधान है जानिए.
पहला दिन: पुनपुन के तट पर श्राद्ध करके गया आकर पहले दिन फल्गु में स्नान और फल्गु के किनारे श्राद्ध किया जाता है. इस दिन गायत्री तीर्थ में प्रातः स्नान, संध्या मध्याह्न में सावित्री कुंड में स्नान करना चाहिए. संध्या और सांय काल सरस्वती कुंड में स्नान करना विशेष फलदायक माना जाता है.
दूसरा दिन: दूसरे दिन फल्गु स्नान का प्रावधान है. साथ ही प्रेतशिला जाकर ब्रह्मा कुंड और प्रेतशिला पर पिंडदान किया जाता है. वहां से रामशिला आकर रामकुंड और रामशिला पर पिंडदान किया जाता है और फिर वहां से नीचे आकर काकबली स्थान पर काक, यम और स्वानबली नामक पिंडदान करना चाहिए.
तीसरा दिन: तीसरे दिन पिंडदानी फल्गु स्नान करके उत्तर मानस जाते हैं. वहां स्नान, तर्पण, पिंडदान, उत्तरारक दर्शन किया जाता है. वहां से मौन होकर सूरजकुंड आकर उसके उदीची कनखल और दक्षिण मानस तीर्थों में स्नान तर्पण पिंडदान और दक्षिणारक का दर्शन करना चाहिए. फिर पूजन करके फल्गु किनारे जाकर तर्पण करें और भगवान गदाधर जी का दर्शन एवं पूजन करें.
चौथा दिन: चौथे दिन भी फल्गु स्नान अनिवार्य है. मातंग वापी जाकर वहां पिंडदान करना चाहिए. इस दिन धर्मेश्वर दर्शन के बाद पिंडदान करना चाहए फिर वहां से बोधगया जाकर श्राद्ध करना चाहिए.