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Pitru Paksha 2022: आज पितृ पक्ष 2022 का 16वां और आखिरी दिन, भूलकर भी ना करें ये काम

10 सितंबर से पितृ पक्ष की शुरुआत हुई थी और आज 25 सितंबर को इसका आखिरी दिन है. इस बार पितृ पक्ष (Pitru Paksha 2022) 16 दिनों का है. ऐसे में जानें आज के दिन की महत्ता.

Importance Of 16th Day Of Pitru Paksha
Importance Of 16th Day Of Pitru Paksha

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Published : Sep 25, 2022, 6:01 AM IST

गया:मोक्षनगरी गयाजी में आज पिंडदान (Pind Daan in Gayaji) का 16वां दिन ( Importance Of 16th Day Of Pitru Paksha) है. आज सर्व पितृ अमावस्या है. पितृ अमावस्या के श्राद्धपक्ष के दिन जिन्होंने हमें पाला-पोसा, बड़ा किया, पढ़ाया-लिखाया, हममें भक्ति, ज्ञान और धर्म के संस्कारों का सिंचन किया, उनका श्रद्धापूर्वक स्मरण करके उन्हें तर्पण-श्राद्ध कर प्रसन्न करने का दिन है. जिस प्रकार चारागाह में सैकड़ों गायों के बीच छिपी हुई अपनी मां को बछड़ा ढूंढ लेता है, उसी प्रकार श्राद्धकर्म में दिए गये पदार्थ को मंत्र वहां पर पहुंचा देता है, जहां वो लक्षित जीव अवस्थित रहता है.

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ब्रह्मा की श्राद्ध मर्यादा:पितरों ( 16th Day Of Pinddan In Gaya) के नाम, गोत्र और मंत्र श्राद्ध में दिये गये अन्न को उसके पास ले जाते हैं. चाहे वो सैकड़ों योनियों में क्यों न गये हों. श्राद्ध के अन्नादि से उनकी तृप्ति होती है. परमेष्ठी ब्रह्मा ने इसी प्रकार के श्राद्ध की मर्यादा स्थिर की है. सर्व पितृ अमावस्या को पितर भूमि पर आते हैं, इसलिए इस दिन श्राद्ध अवश्य करनी चाहिए. अगर इस दिन श्राद्ध नहीं करते हैं, तो पितर नाराज होकर चले जाते हैं.

श्राद्ध न कर पाने की स्थिति में...आप यदि इस दिन श्राद्ध करने में सक्षम नही हैं, तो तांबे के लोटे में जल भरकर भगवद गीता के सातवें अध्याय का पाठ करें और मंत्र 'ॐ नमो भगवते वासुदेव' एवं 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधा देव्यै स्वाहा' की 1-1 माला कर सूर्यनारायण भगवान को जल का अर्घ्य दें. सूर्य भगवान की तरफ ऊंची कर बोले कि मैं अपने पितरों को प्रणाम करता हूं. वो मेरी भक्ति से ही तृप्तिलाभ करें. मैंने अपनी दोनों बाहें आकाश में उठा रखी हैं और जिनका श्राद्ध किया जाए, उन माता, पिता, पति, पत्नी, संबंधी आदि का स्मरण करके उन्हें याद दिलायें कि 'आप देह नहीं हो, आपकी देह तो समाप्त हो चुकी है, किंतु आप विद्यमान हों.'

पितरों को ऐसे करें स्मरण...:'आप अगर आत्मा हो. शाश्वत हो. चैतन्य हो. अपने शाश्वत स्वरूप को निहार कर हे पितृ आत्माओं ! आप भी परमात्ममय हो जाओ. हे पितरात्माओं ! हे पुण्यात्माओं ! अपने परमात्म-स्वभाव का स्मरण कर जन्म मृत्यु के चक्र से सदा-सदा के लिए मुक्त हो जाओ. हे पितृ आत्माओ ! आपको हमारा प्रणाम है. हम भी नश्वर देह के मोह से सावधान होकर अपने शाश्वत् परमात्म-स्वभाव में जल्दी जागें. परमात्मा एवं परमात्म-प्राप्त महापुरुषों के आशीर्वाद आप पर हम पर बरसते रहें. ॐ...ॐ...ॐ...

ग्रहों में पड़ता है असर!:ज्योतिषशास्त्र में बताया गया है कि जिनके पितर नाराज हो जाते हैं. उनकी ग्रह दशा अच्छी भी हो तब भी उनके जीवन में हर पल परेशानी बनी रहती है. श्राद्ध पक्ष में सयंम-नियम पालन करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. श्राद्ध पक्ष में गाय को गुड़ के साथ रोटी खिलाएं और कुत्ते, बिल्ली और कौओं को भी आहार दें. इससे पितरों का आशीर्वाद आप पर बना रहेगा.

भूल के भी ना करें ये काम:पितृ पक्ष के दौरान घर के किचन में मीट, मछली, मांस, लहसून, प्याज, मसूर की दाल, भूलकर भी न बनाएं. ऐसा करने से पितृ देव नाराज होते हैं और पितृ दोष लगता है. इसके साथ ही इस दौरान जो लोग पितरों का तर्पण करते हैं उन्हें शरीर में साबुन और तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. पितृ पक्ष के दौरान नए कपड़े, भूमि, भवन सहित सभी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. इस दौरान कोई भी मांगलिक काम करने से परहेज करें.


गया श्राद्ध का क्रम:ऐसे तो पितृ पक्ष 17 दिनों का होता है लेकिनइस बार श्राद्ध का क्रम 1 दिन से लेकर 16 दिनों तक का है. 1 दिन में गया श्राद्ध कराने वाले लोग विष्णुपद फल्गु नदी और अक्षय वट में श्राद्ध पिंडदान कर सुफल देकर यह अनुष्ठान समाप्त करते हैं. वह एक दृष्टि गया श्राद्ध कहलाता है. वहीं, 7 दिन के कर्म केवल सकाम श्राद्ध करने वालों के लिए है. इन 7 दिनों के अतिरिक्त वैतरणी भसमकुट, गो प्रचार आदि गया आदि में भी स्नान-तर्पण-पिंडदानादि करते हैं. इसके अलावा 17 दिन का भी श्राद्ध होता है. इन 17 दिनों में पिंडदान का क्या विधि विधान है जानिए.

पहला दिन: पुनपुन के तट पर श्राद्ध करके गया आकर पहले दिन फल्गु में स्नान और फल्गु के किनारे श्राद्ध किया जाता है. इस दिन गायत्री तीर्थ में प्रातः स्नान, संध्या मध्याह्न में सावित्री कुंड में स्नान करना चाहिए. संध्या और सांय काल सरस्वती कुंड में स्नान करना विशेष फलदायक माना जाता है.

दूसरा दिन: दूसरे दिन फल्गु स्नान का प्रावधान है. साथ ही प्रेतशिला जाकर ब्रह्मा कुंड और प्रेतशिला पर पिंडदान किया जाता है. वहां से रामशिला आकर रामकुंड और रामशिला पर पिंडदान किया जाता है और फिर वहां से नीचे आकर काकबली स्थान पर काक, यम और स्वानबली नामक पिंडदान करना चाहिए.


तीसरा दिन: तीसरे दिन पिंडदानी फल्गु स्नान करके उत्तर मानस जाते हैं. वहां स्नान, तर्पण, पिंडदान, उत्तरारक दर्शन किया जाता है. वहां से मौन होकर सूरजकुंड आकर उसके उदीची कनखल और दक्षिण मानस तीर्थों में स्नान तर्पण पिंडदान और दक्षिणारक का दर्शन करना चाहिए. फिर पूजन करके फल्गु किनारे जाकर तर्पण करें और भगवान गदाधर जी का दर्शन एवं पूजन करें.


चौथा दिन: चौथे दिन भी फल्गु स्नान अनिवार्य है. मातंग वापी जाकर वहां पिंडदान करना चाहिए. इस दिन धर्मेश्वर दर्शन के बाद पिंडदान करना चाहए फिर वहां से बोधगया जाकर श्राद्ध करना चाहिए.


पांचवा दिन: पितृ पक्ष के पांचवें दिन मोक्ष की नगरी गया में ब्रह्म सरोवर महत्व रखता है. ब्रह्म सरोवर में पिंडदान कर काकबलि वेदी पर कुत्ता, कौआ और यम को उड़द के आटे का पिंड बनाकर तर्पण दिया जाता है. काकबलि से बलि देकर आम्र सिचन वेदी के पास आम वृक्ष की जड़ को कुश के सहारे जल दिया जाता है. तीनों वेदियों में प्रमुख वेदी ब्रह्म सरोवर है.

छठा दिन: छठे दिन फल्गु स्नान के पश्चात विष्णुपद दक्षिणा अग्नीपद वेदियों का आह्वान किया जाता है, जो विष्णु मंदिर में ही मानी जाती है. उसके दर्शन कर श्राद्ध पिंडदान करना चाहिए. वहां से गज कर्णिका में तर्पण करना चाहिए. साथ ही गया सिर पर पिंडदान करना चाहिए. मुंड पृष्टा पर पिंड दान करना चाहिए.


सातवां दिन: फल्गु स्नान, श्राद्ध, अक्षय वट जाकर अक्षय वट के नीचे श्राद्ध करना चाहिए. वहां 3 या 1 ब्राह्मण को भोजन कराना चाहिए. यहीं गया पाल पंडों के द्वारा सुफल दिलाई जाती है.

आठवां दिन: इस दिन जल से किए तर्पण के द्वारा पितृ दोष से मुक्ति मिलती है. पितृ कार्य करने के साथ पितरों की प्रसन्नता के लिए पितृ स्त्रोत का पाठ भी करना चाहिए.

नौवां दिन: पिंडदान अर्पित कर कण्वपद, दधीचि पद, कार्तिक पद, गणेश पद और गजकर्ण पद पर दूध ,गंगा जल या फल्गू नदी के पानी से तर्पण करना चाहिए. अंत में कश्यप पद पर श्राद्ध करके कनकेश, केदार और वामन की ओर उत्तर मुख होकर पूजा करने मात्र से पितर तर जाते हैं.


दसवां दिन:मोक्ष की नगरी गया जी में पिंडदान के दसवें दिन मातृ नवमी को सीताकुंड और रामगया तीर्थ इन दो पुण्य तीर्थो में पिंडदान करने का विधान है. दसवें दिन सीताकुंड पर सुहाग पिटारी दान और बालू का पिंड अर्पित किया जाता है. फल्गु नदी की बालू से पिंड बना विधि विधान पूरा किया जाता है.


11वां दिन:मोक्ष की नगरी गया जी में पिंडदान के 11वें दिन गया सिर और गया कूप नामक दो तीर्थों में पिंडदान होता है. गया सिर की ऐसी मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से नरक भोग रहे पूर्वजों को भी स्वर्ग की प्राप्ति हो जाती है. वहीं, गया कूप के बारे में कहा जाता है कि यहां पिंडदान करने से जो स्वर्गस्थ पितर हैं, उन्हें मोक्ष को प्राप्त होता है. दोनों तीर्थों की पौराणिक कथा भी प्रचलित है.


12वां दिन:मोक्ष की नगरी गयाजी में पिंडदान के 12वें दिन मुंड पृष्ठा तीर्थ पर पिंडदान करने का विधान है. एकादशी तिथि के दिन फल्गु स्नान करने के बाद यहां पिंडदान किया जाता है. वहीं, ऐसी मान्यता है कि खोया और चांदी का सामान दान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.

13वां दिन: मोक्ष की नगरी गया में पितृपक्ष के 13वें दिन द्वादशी तिथि को भीम गया,गौ प्रचार,गदालोल इन तीन वेदियों पर श्राद्ध करने का विधान है. मंगला गौरी मंदिर के मुख्य रास्ता से भीम गया वेदी अक्षयवट वाले रास्ते मे गौप्रचार वेदी है. अक्षयवट के सामने गदालोल वेदी स्थित है, जहां पिंडदान किया जाता है.


14वां दिन: 14वें दिन फल्गु नदी में स्नान करके दूध तर्पण करने का विधान है. 14वें दिन शाम यहां शाम को पितृ दीपावली मनायी जाती है. इसमें पितरों के लिए दीप जलाया जाता है और आतिशबाजी की जाती है.

15वां दिन:इस दिन वैतरणी सरोवर में पिंडदान और गौदान करने का नियम है. ऐसी मान्यता है कि देवनदी वैतरणी में स्नान करने से पितर स्वर्ग को जाते हैं. पिंडदान और गोदान करने के बाद सरोवर के निकट स्थित मार्कण्डेय शिव मंदिर में जाकर पूजा अर्चना करने का भी प्रावधान है.


16वां दिन: श्राद्ध पक्ष में गाय को गुड़ के साथ रोटी खिलाएं और कुत्ते, बिल्ली और कौओं को भी आहार दें. इससे पितरों का आशीर्वाद आप पर बना रहेगा. दुर्घटना, अस्त्र-शस्त्र और अपमृत्यु से मरे लोगों का श्राद्ध किया जाता है. इस दिन को तर्पण-श्राद्ध कर प्रसन्न करने का दिन माना जाता है.


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