गया:मोक्षनगरी गयाजी में आज पिंडदान (Pind Daan in Gayaji) का 16वां दिन ( Importance Of 16th Day Of Pitru Paksha) है. आज सर्व पितृ अमावस्या है. पितृ अमावस्या के श्राद्धपक्ष के दिन जिन्होंने हमें पाला-पोसा, बड़ा किया, पढ़ाया-लिखाया, हममें भक्ति, ज्ञान और धर्म के संस्कारों का सिंचन किया, उनका श्रद्धापूर्वक स्मरण करके उन्हें तर्पण-श्राद्ध कर प्रसन्न करने का दिन है. जिस प्रकार चारागाह में सैकड़ों गायों के बीच छिपी हुई अपनी मां को बछड़ा ढूंढ लेता है, उसी प्रकार श्राद्धकर्म में दिए गये पदार्थ को मंत्र वहां पर पहुंचा देता है, जहां वो लक्षित जीव अवस्थित रहता है.
पढ़ें- मोक्ष धाम गयाजी में मनाई गई पितृ दिवाली. पिंडदानियों ने कहा अनोखा है यह तीर्थ स्थान
ब्रह्मा की श्राद्ध मर्यादा:पितरों ( 16th Day Of Pinddan In Gaya) के नाम, गोत्र और मंत्र श्राद्ध में दिये गये अन्न को उसके पास ले जाते हैं. चाहे वो सैकड़ों योनियों में क्यों न गये हों. श्राद्ध के अन्नादि से उनकी तृप्ति होती है. परमेष्ठी ब्रह्मा ने इसी प्रकार के श्राद्ध की मर्यादा स्थिर की है. सर्व पितृ अमावस्या को पितर भूमि पर आते हैं, इसलिए इस दिन श्राद्ध अवश्य करनी चाहिए. अगर इस दिन श्राद्ध नहीं करते हैं, तो पितर नाराज होकर चले जाते हैं.
श्राद्ध न कर पाने की स्थिति में...आप यदि इस दिन श्राद्ध करने में सक्षम नही हैं, तो तांबे के लोटे में जल भरकर भगवद गीता के सातवें अध्याय का पाठ करें और मंत्र 'ॐ नमो भगवते वासुदेव' एवं 'ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं स्वधा देव्यै स्वाहा' की 1-1 माला कर सूर्यनारायण भगवान को जल का अर्घ्य दें. सूर्य भगवान की तरफ ऊंची कर बोले कि मैं अपने पितरों को प्रणाम करता हूं. वो मेरी भक्ति से ही तृप्तिलाभ करें. मैंने अपनी दोनों बाहें आकाश में उठा रखी हैं और जिनका श्राद्ध किया जाए, उन माता, पिता, पति, पत्नी, संबंधी आदि का स्मरण करके उन्हें याद दिलायें कि 'आप देह नहीं हो, आपकी देह तो समाप्त हो चुकी है, किंतु आप विद्यमान हों.'
पितरों को ऐसे करें स्मरण...:'आप अगर आत्मा हो. शाश्वत हो. चैतन्य हो. अपने शाश्वत स्वरूप को निहार कर हे पितृ आत्माओं ! आप भी परमात्ममय हो जाओ. हे पितरात्माओं ! हे पुण्यात्माओं ! अपने परमात्म-स्वभाव का स्मरण कर जन्म मृत्यु के चक्र से सदा-सदा के लिए मुक्त हो जाओ. हे पितृ आत्माओ ! आपको हमारा प्रणाम है. हम भी नश्वर देह के मोह से सावधान होकर अपने शाश्वत् परमात्म-स्वभाव में जल्दी जागें. परमात्मा एवं परमात्म-प्राप्त महापुरुषों के आशीर्वाद आप पर हम पर बरसते रहें. ॐ...ॐ...ॐ...
ग्रहों में पड़ता है असर!:ज्योतिषशास्त्र में बताया गया है कि जिनके पितर नाराज हो जाते हैं. उनकी ग्रह दशा अच्छी भी हो तब भी उनके जीवन में हर पल परेशानी बनी रहती है. श्राद्ध पक्ष में सयंम-नियम पालन करने से पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. श्राद्ध पक्ष में गाय को गुड़ के साथ रोटी खिलाएं और कुत्ते, बिल्ली और कौओं को भी आहार दें. इससे पितरों का आशीर्वाद आप पर बना रहेगा.
भूल के भी ना करें ये काम:पितृ पक्ष के दौरान घर के किचन में मीट, मछली, मांस, लहसून, प्याज, मसूर की दाल, भूलकर भी न बनाएं. ऐसा करने से पितृ देव नाराज होते हैं और पितृ दोष लगता है. इसके साथ ही इस दौरान जो लोग पितरों का तर्पण करते हैं उन्हें शरीर में साबुन और तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. पितृ पक्ष के दौरान नए कपड़े, भूमि, भवन सहित सभी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. इस दौरान कोई भी मांगलिक काम करने से परहेज करें.
गया श्राद्ध का क्रम:ऐसे तो पितृ पक्ष 17 दिनों का होता है लेकिनइस बार श्राद्ध का क्रम 1 दिन से लेकर 16 दिनों तक का है. 1 दिन में गया श्राद्ध कराने वाले लोग विष्णुपद फल्गु नदी और अक्षय वट में श्राद्ध पिंडदान कर सुफल देकर यह अनुष्ठान समाप्त करते हैं. वह एक दृष्टि गया श्राद्ध कहलाता है. वहीं, 7 दिन के कर्म केवल सकाम श्राद्ध करने वालों के लिए है. इन 7 दिनों के अतिरिक्त वैतरणी भसमकुट, गो प्रचार आदि गया आदि में भी स्नान-तर्पण-पिंडदानादि करते हैं. इसके अलावा 17 दिन का भी श्राद्ध होता है. इन 17 दिनों में पिंडदान का क्या विधि विधान है जानिए.
पहला दिन: पुनपुन के तट पर श्राद्ध करके गया आकर पहले दिन फल्गु में स्नान और फल्गु के किनारे श्राद्ध किया जाता है. इस दिन गायत्री तीर्थ में प्रातः स्नान, संध्या मध्याह्न में सावित्री कुंड में स्नान करना चाहिए. संध्या और सांय काल सरस्वती कुंड में स्नान करना विशेष फलदायक माना जाता है.
दूसरा दिन: दूसरे दिन फल्गु स्नान का प्रावधान है. साथ ही प्रेतशिला जाकर ब्रह्मा कुंड और प्रेतशिला पर पिंडदान किया जाता है. वहां से रामशिला आकर रामकुंड और रामशिला पर पिंडदान किया जाता है और फिर वहां से नीचे आकर काकबली स्थान पर काक, यम और स्वानबली नामक पिंडदान करना चाहिए.
तीसरा दिन: तीसरे दिन पिंडदानी फल्गु स्नान करके उत्तर मानस जाते हैं. वहां स्नान, तर्पण, पिंडदान, उत्तरारक दर्शन किया जाता है. वहां से मौन होकर सूरजकुंड आकर उसके उदीची कनखल और दक्षिण मानस तीर्थों में स्नान तर्पण पिंडदान और दक्षिणारक का दर्शन करना चाहिए. फिर पूजन करके फल्गु किनारे जाकर तर्पण करें और भगवान गदाधर जी का दर्शन एवं पूजन करें.
चौथा दिन: चौथे दिन भी फल्गु स्नान अनिवार्य है. मातंग वापी जाकर वहां पिंडदान करना चाहिए. इस दिन धर्मेश्वर दर्शन के बाद पिंडदान करना चाहए फिर वहां से बोधगया जाकर श्राद्ध करना चाहिए.