गया: मोक्ष की नगरी गया में पितृ पक्ष (Pind Daan in Gayaji) के 13वें दिन ( Importance Of 13th Day Of Pitru Paksha) द्वादशी तिथि को भीम गया, गौ प्रचार, गदालोल इन तीन वेदियों पर श्राद्ध करने का विधान है. मंगला गौरी मंदिर के मुख्य रास्ता से भीम गया वेदी अक्षयवट वाले रास्ते मे गौप्रचार वेदी है. अक्षयवट के सामने गदालोल वेदी स्थित है, जहां पिंडदान ( 13th Day Of Pinddan In Gaya) किया जाता है.
13वें दिन ऐसे करें पिंडदान: सर्वप्रथम फल्गु नदी में स्नान तर्पण कर, भीम गया जो भस्म कूट पर्वत पर मंगला गौरी मंदिर के नीचे सीढ़ी के पास है, पर श्राद्ध करना चाहिए. ऐसा कहा जाता है कि यहां भीमसेन ने बयां घुटना मोड़कर श्राद्ध किया था. उनके घुटने का चिन्ह आज भी यहां मौजूद है. भीम गया में श्राद्ध करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है.
पितरों को विष्णुलोक की होती है प्राप्ति :गौ प्रचार वेदी में ब्रह्मा जी ने यज्ञ किया था. उन्होंने यहां यज्ञ के दौरान गायों को जिस पर्वत पर रखा था, उसे गौचर वेदी कहा गया. यहां पर्वत पर गायों के खुर के निशान आज भी हैं, यहां ब्रह्मा जी पंडा को सवा लाख गौ दान किया था. ऐसी मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से पितरों को विष्णुलोक की प्राप्ति होती हैं. मान्यता हैं यहां ब्राह्मण को भोजन कराने से एक करोड़ ब्राह्मण भोजन कराने का फल मिलता है.
गदालोल वेदी पर श्राद्ध :गदालोल-लोल शब्द का अर्थ तालाब होता हैं. इस वेदी की कहानी है कि यहां गदा नाम का असुर पुराकाल में वज्र से दृढ़ तपस्वी एवं दान वीर था. देव कार्य के लिए ब्रह्माजी के मांगने पर उसने अपनी अस्थियां भी दान में दे दी थीं. उन्ही अस्थियों से विश्वकर्मा जी ने गदा बना स्वर्ग में रख दिया. उसी काल मे हेति नाम का दैत्य बड़ा बलवान हुआ, उसने देवताओं को जीत कर स्वर्ग का राज्य छीन लिया. दैत्य हेति को मारकर राज्य दिलाने की विनती देवताओं ने भगवान विष्णु से की.भगवान ने कहा कि हमे कोई ऐसा अस्त्र दो, जिससे उसे हम मार सके, क्योंकि उसने वरदान पा लिया है कि हम वर्तमान किसी अस्त्र से नहीं मरेंगे. तब देवताओं ने स्वर्ग में रखी वही गदा दे दी, भगवान ने उसी गदा से हेति को मार दिया. इसके बाद जिस स्थान पर वह गदा धोया गया, उसे गदालोल वेदी कहा गया है. गदाधर करने से भगवान भी गदाधर नाम से प्रसिद्ध हुए.इस गदालोल वेदी में पिंडदान करने से तथा स्वर्ण पिवत्रीदान करने से पितरों को सदगति होती है.
पवित्र रह कर करना चाहिए पिंडदान:पिंडदान करने के समय ब्रह्मचारी रहना चाहिए. इस दौरान एक बार भोजन करना चाहिए. पृथ्वी पर सोना चाहिए और सच बोलना चाहिए. साथ ही पवित्र रहना चाहिए. इतना काम करने से ही गया तीर्थ का फल मिलेगा. जिनके घर में कुत्ते पाले जाते हैं उनका जल भी पितर ग्रहण नहीं करते हैं. नियमों का पालन कर पिंडदान करने से पितरों को शिवलोक की प्राप्ति होती है.
पितृपक्ष की तिथि:आश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से शुरू होकर अमावस्या तक की अवधि को पितृपक्ष माना जाता है. वैदिक परंपरा और हिंदू मान्यताओं के अनुसार पितरों के लिए श्रद्धा से श्राद्ध करना एक महान और उत्कृष्ट कार्य है. मान्यता के मुताबिक, पुत्र का पुत्रत्व तभी सार्थक माना जाता है, जब वह अपने जीवन काल में जीवित माता-पिता की सेवा करे और उनके मरणोपरांत उनकी मृत्यु तिथि (बरसी) तथा महालय (पितृपक्ष) में उनका विधिवत श्राद्ध करें.
भूल के भी ना करें ये काम:पितृ पक्ष के दौरान घर के किचन में मीट, मछली, मांस, लहसून, प्याज, मसूर की दाल, भूलकर भी न बनाएं. ऐसा करने से पितृ देव नाराज होते हैं और पितृ दोष लगता है. इसके साथ ही इस दौरान जो लोग पितरों का तर्पण करते हैं उन्हें शरीर में साबुन और तेल का प्रयोग नहीं करना चाहिए. पितृ पक्ष के दौरान नए कपड़े, भूमि, भवन सहित सभी प्रकार के मांगलिक कार्य वर्जित होते हैं. इस दौरान कोई भी मांगलिक काम करने से परहेज करें.
गया श्राद्ध का क्रम: गया श्राद्ध का क्रम 1 दिन से लेकर 17 दिनों तक का होता है. 1 दिन में गया श्राद्ध कराने वाले लोग विष्णुपद फल्गु नदी और अक्षय वट में श्राद्ध पिंडदान कर सुफल देकर यह अनुष्ठान समाप्त करते हैं. वह एक दृष्टि गया श्राद्ध कहलाता है. वहीं, 7 दिन के कर्म केवल सकाम श्राद्ध करने वालों के लिए है. इन 7 दिनों के अतिरिक्त वैतरणी भसमकुट, गो प्रचार आदि गया आदि में भी स्नान-तर्पण-पिंडदानादि करते हैं. इसके अलावा 17 दिन का भी श्राद्ध होता है. इन 17 दिनों में पिंडदान का क्या विधि विधान है जानिए.
पहला दिन: पुनपुन के तट पर श्राद्ध करके गया आकर पहले दिन फल्गु में स्नान और फल्गु के किनारे श्राद्ध किया जाता है. इस दिन गायत्री तीर्थ में प्रातः स्नान, संध्या मध्याह्न में सावित्री कुंड में स्नान करना चाहिए. संध्या और सांय काल सरस्वती कुंड में स्नान करना विशेष फलदायक माना जाता है.
दूसरा दिन: दूसरे दिन फल्गु स्नान का प्रावधान है. साथ ही प्रेतशिला जाकर ब्रह्मा कुंड और प्रेतशिला पर पिंडदान किया जाता है. वहां से रामशिला आकर रामकुंड और रामशिला पर पिंडदान किया जाता है और फिर वहां से नीचे आकर काकबली स्थान पर काक, यम और स्वानबली नामक पिंडदान करना चाहिए.
तीसरा दिन: तीसरे दिन पिंडदानी फल्गु स्नान करके उत्तर मानस जाते हैं. वहां स्नान, तर्पण, पिंडदान, उत्तरारक दर्शन किया जाता है. वहां से मौन होकर सूरजकुंड आकर उसके उदीची कनखल और दक्षिण मानस तीर्थों में स्नान तर्पण पिंडदान और दक्षिणारक का दर्शन करना चाहिए. फिर पूजन करके फल्गु किनारे जाकर तर्पण करें और भगवान गदाधर जी का दर्शन एवं पूजन करें.
चौथा दिन: चौथे दिन भी फल्गु स्नान अनिवार्य है. मातंग वापी जाकर वहां पिंडदान करना चाहिए. इस दिन धर्मेश्वर दर्शन के बाद पिंडदान करना चाहए फिर वहां से बोधगया जाकर श्राद्ध करना चाहिए.