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गया: सरकारी उपेक्षा का शिकार है ये प्राचीन मंदिर, जीर्णोद्धार के नाम पर मिलता है सिर्फ आश्वासन

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Published : Aug 12, 2019, 8:47 AM IST

Updated : Aug 12, 2019, 11:33 AM IST

पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर में सबसे पहले बराहेश्वर की मूर्ति थी. दुर्वासा ऋषि ज्योतिर्लिंग की स्थापना के बाद महर्षि यहां विष्णु की आराधना कर रहे थे. इसी बीच उनके मस्तक से भस्म गिरा. उसी भस्म से शिवलिंग स्थापित हुआ.

प्राचीन मंदिर

गया:सावन महीने में सभी शिव मंदिरों में श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती है, साजों सजावट होते हैं, लेकिन गया के उपरडीह में बैकुंठ घाट के पास बना कर्दमेश्वर, बराहेश्वर मनोकामना मंदिर में इस सावन रौनक नहीं है. सरकारी उपेक्षा का शिकार हुआ ये मंदिर अपने जिणोद्धार की राह देख रहा है.

मंदिर के अंदर 10 क्विंटल का शिवलिंग स्थापित है. कहा जाता है कि इस शिवलिंग की स्थापना दुर्वासा ऋषि ने की थी. इस मनोकामना मंदिर में जो भी मांगो वो पूरा होता है. बिहार सरकार के मंत्री प्रेम कुमार चुनाव के वक्त इसी मंदिर में अपनी जीत के लिए अनुष्ठान करने आते हैं. लेकिन चुनाव खत्म होते ही किसी को इस मंदिर की याद नहीं आती.

कर्दमेश्वर, बराहेश्वर मनोकामना मंदिर में स्थापित शिवलिंग

मंदिर में 22 देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित
मोक्षदायिनी फल्गु नदी के तट के बैकुंठ घाट पर प्राचीन कर्दमेश्वर बराहेश्वर मनोकामना मंदिर स्थित है. इस मंदिर का निर्माण टिकारी राजा ने करवाया था. उसके बाद ये खंडहर में तब्दील हो गया. 2002 में डालमिया परिवार के सहयोग से मंदिर का जीर्णोद्धार किया गया. मंदिर में 22 देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं.

यहां होता है पिंडदान
इस मंदिर में कर्दमेश्वर के रूप में शिव है, बराहेश्वर के रूप में भगवान विष्णु हैं. मनोकामना के रूप में मां खुद विराजमान हैं. मंदिर में लक्ष्मी और सरस्वती भी एक साथ विराजमान हैं. बराहेश्वर की मूर्ति सिर्फ इसी मंदिर में विराजमान है. यहां पिंडदान भी किया जाता है. मंदिर के पीठाधीश्वर श्री कृष्ण कांत पाण्डेय ने बताया कि इस मंदिर की प्रामाणिकता देवी भागवत पुस्तक के श्लोक से पता चलता है. गया में यह इकलौता मंदिर है जहां भगवान शिव, विष्णु, मां शक्ति का वास है.

पेश है रिपोर्ट

जीणोद्धार के नाम पर सिर्फ आश्वासन मिला
इस मंदिर के बगल में ही कृषि मंत्री सह स्थानीय विधायक प्रेम कुमार का घर है. चुनाव के वक्त अपनी जीत के लिये अनुष्ठान कराने वो इसी मंदिर में आते हैं. आज तक वो कभी चुनाव नहीं हारे हैं. लेकिन जीतने के बाद मंदिर को देखने तक नहीं आते. प्राचीनकाल में बना ये मंदिर कई सुविधाओं से महरूम है. बहुत ऊंचाई पर होने के कारण यहां आने जाने का साधन नहीं है. कई बार मंदिर के लिए रास्ता और घाट जाने के लिए सीढ़ी बनाने की मांग की गई, लेकिन सिवाय आश्वासन के और कुछ नहीं मिला.

मंदिर से जुड़ी है कई कहानी
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस मंदिर में सबसे पहले बराहेश्वर की मूर्ति थी. दुर्वासा ऋषि ज्योतिर्लिंग की स्थापना के बाद महर्षि यहां विष्णु की आराधना कर रहे थे. इसी बीच उनके मस्तक से भस्म गिरा. उसी भस्म से शिवलिंग स्थापित हुआ. इसके बाद उन्होंने अपने पुत्र के नाम से शिवलिंग का नामाकरण कर्दमेश्वर कर दिया.

Last Updated : Aug 12, 2019, 11:33 AM IST

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