गयाःदीपावली की तैयारी आम तौर पर दशहरा के बाद ही होती है, लेकिन प्रजापति समाज के लोग इसकी तैयारी चार महीने पहले से ही करने लगते हैं. जिले के कुम्हार दिन-रात एक करके दीप बनाने में जुटे हैं. दीपावली में दिये की ज्यादा मांग को देखकर मानपुर प्रखंड के नौरंगा गांव के कुछ कारीगर इलेक्ट्रिक चाक से दिये बना रहे हैं.
इलेक्ट्रॉनिक चाक से दीप बनाता कुम्हार इलेक्ट्रिक चाक से दिये बना रहे कुम्हार
गया के नौरंगा गांव में तकरीबन 100 परिवार प्रजापति समाज के हैं. लगभग सभी घरों में मिट्टी के बर्तन और सामान बनाने का काम किया जाता है. ज्यादातर घरों में अब भी परंपरागत चाक के सहारे ही दिये बनाए जाते हैं. जबकि कुछ कारीगर इलेक्ट्रॉनिक चाक से दीप और खिलौना बनाते हैं. ये लोग पिछले दो दशक से इलेक्ट्रॉनिक चाक से दीपावली के दिये बनाते हैं.
2001 में मिली थी इलेक्ट्रिक चाक की जानकारी
कारीगर शिवदयाल प्रजापति ने बताया कि यहां सिर्फ 10 से 12 लोग ही इलेक्ट्रॉनिक चाक से दीप बनाते हैं. 2001 में एक एनजीओ ने हमलोगों को इलेक्ट्रॉनिक चाक के बारे में बताया था. फिल हमलोग कलकत्ता गए, फिर वहीं से इलेक्ट्रॉनिक चाक खरीदकर लाए और काम शुरू किया. इसका उपयोग करने के लिए बहुत कम जगह चाहिए, कम समय में परंपरागत चाक से ज्यादा दिये इससे बनते हैं और बहुत आराम भी है.
परंपरागत चाक से दीया बनाता कुम्हार पहले से बेहतर है परिवार की स्थिति
इस इलेक्ट्रॉनिक चाक में एक मशीन लगी हुई है, जिसमें स्पीड कम और ज्यादा करने की व्यवस्था है. बिजली की भी ज्यादा खपत नहीं होती. हालांकि इस चाक से बड़े बर्तन नहीं बन पाते हैं. लेकिन सभी साइज के दिये, खिलौने, प्याली और ग्लास बन जाते हैं. इन कुम्हारों का कहना है कि इस इलेक्ट्रॉनिक चाक की वजह से गरीबी दूर हो गई है. पहले से बेहतर स्थिति से जीवन यापन हो रहा है.
प्रजापति समाज की सरकार से मांग
वहीं, रंजीत प्रजापति ने बताया कि मेरे घर में परंपरागत चाक से दीप बनाया जाता है. इसमें मेहनत बहुत लगती है, उसके अनुसार बहुत मुनाफा नहीं मिलता है. परंपरागत चाक एक घण्टे में 150 दिये बनाता है. वहीं इलेक्ट्रॉनिक चाक 250 दिये बनाता है. नौरंगा गांव के कारीगरों की सरकार से मांग है कि उन्हें सब्सिडी के तहत इलेक्ट्रॉनिक चाक दिए जाएं.
आज भी बनते हैं परंपरागत चाक से दिये
बता दें कि इस आधुनिक युग में भी बिहार में बहुत कम जगहों पर इलेक्ट्रॉनिक चाक से मिट्टी के बर्तन या दिये बनाए जाते हैं. जबकि पड़ोसी राज्य यूपी में अधिकांश कारीगर इलेक्ट्रॉनिक चाक का उपयोग करते हैं. वहां की सरकार सब्सिडी पर प्रजापति समाज के कारीगरों को इलेक्ट्रॉनिक चाक देती है. बिहार में इस ओर सरकार की कोई पहल और योजना नहीं है.