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बिहार का नन्हा 'अर्जुन': आंखें बंद कर पैरों से चलाता है तीर...अपने करतब से नन्हे तीरंदाज ने किया सबको हैरान

बिहार के गया में एक 9 साल के बच्चे रूद्र प्रताप सिंह (Gaya Rudra Pratap Singh) ने अपनी तीरंदाजी से सभी चौंका दिया है. रूद्र आंख पर पट्टी बांधकर पैरों से अचूक निशाना लगाता है. इसका निशाना देख बड़े-बड़े तीरंदाज भी हैरान हैं. जानिए नन्हें तीरंदाज की पूरी कहानी..

Gaya Rudra Pratap Singh
Gaya Rudra Pratap Singh

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Published : Jul 29, 2022, 2:27 PM IST

गया:आपने तीरंदाज तो कई देखे होंगे लेकिनबिहार के रूद्र प्रताप सिंह(9 Year Old Rudra Pratap Singh From Gaya) की तीरंदाजी ने सभी को हैरत में डाल दिया है. रूद्र अपनी सामान्य और सीधी तीरंदाजी के लिए नहीं बल्कि पैरों से निशाना लगाने को लेकर फेमस है. पैरों से निशाना (Archery With feet) लगाना आसान नहीं होता, उसपर भी यह नन्हा खिलाड़ी (Gaya Little Archer) आंखों में पट्टी बांधकर निशाना (Archery With Closed Eyes) लगाता है. रूद्र जब निशाना लगाता है तो देखने वालों की आंखें फटी की फटी रह जाती है.

पढ़ें- गया का बाबा रामदेव है रूद्र, 150 से अधिक योगासनों में है महारत, ओलंपिक में मेडल जीतने का है सपना

रूद्र के तीरंदाजी का अनोखा अंदाज: गया का रूद्र हाथ के बल उल्टा होकर, आंखें बंद कर पैरों के अंगूठे से तीर चलाता है. योग में 150 से भी अधिक योगासन और प्राणायाम कर हैरत करने वाले इस नन्हे बच्चे में इस तरह की एक और अनोखी प्रतिभा निखर रही है. रूद्र अभी से ही तीरंदाजी में माहिर होता जा रहा है. रूद्र ने बताया कि उसने इसके लिए काफी प्रैक्टिस की है. लगन और मेहनता से इसने महज दो महीने में ही इस कला को बखूबी सीख लिया.

आंखों में पट्टी बांधकर पैरों से चलाता है तीर:9 साल के नन्हे रूद्र ने योग और स्केटिंग में पहले ही अपनी प्रतिभा का जौहर दिखा दिया है. यही कारण है कि उसे क्षेत्र के लोग नन्हा बाबा रामदेव भी कहते हैं. उसने इस क्षेत्र में कई स्टेट और नेशनल लेवल के मेडल हासिल कर लिए हैं. अब वह काफी हैरतअंगेज करने वाला कारनामा कर रहा है.

5 से 20 फीट की दूरी तक साधता है निशाना:रुद्र प्रताप सिंह हाथ के बल उल्टा खड़ा होकर उसी पोजीशन में पैर के अंगूठे से आंख बंद कर भी तीर चला लेता है. तीर धनुष का उसका निशाना देखते ही बनता है. 5 से 20 फीट की दूरी तक वह सधा निशाना मारता है. आई लेवल और फुट लेवल का डिफरेंस होने के बावजूद सटीक निशाना लगाना उसकी प्रतिभा को दर्शाता है.

'विदेशी एथलीट से मिली आर्चरी की प्रेरणा':वहीं रूद्र प्रताप सिंह का कहना है कि एक विदेशी एथलीट महिला का वीडियो देखने के बाद उसे आर्चरी की प्रेरणा मिली. उसने इसमें भी विभिन्न प्रकार से प्रैक्टिस शुरू कर दी. सामान्य-सीधे तौर पर तीरंदाजी तो करता ही है. साथ ही हाथ के बल उल्टा खड़ा होकर और उल्टे हालत में ही बंद आंखों से भी तीर चलाता है. योगा को अपना आधार बनाया और महज एक महीने में ही तीरंदाजी को कमांड करने लगा. इस क्रम में 20 फीट तक का निशाना साधता है.

'किताबों में शब्दभेदी बाण की मिली थी जानकारी':रूद्र बताता है कि पुराने समय में शब्दभेदी बाण की बातें किताबों में वह पढ़ता था. उसने सोचा कि क्यों न इसे आज के युग में भी दिखाया जाए. इसके बाद उसने हाथ के बल उल्टा खड़ा होकर और आंख बंद कर तीर चलाना शुरु कर दिया. सबसे बड़ी बात यह है कि आंख बंद करके बहुत सटीक निशाना लगा रहा है. 100% आत्मविश्वास और अनुभव से ऐसा निशान लगाता है कि वह सटीक ही लगती है.

"योगा के कारण मैंने तीरंदाजी भी सीखी. मैं पैर से तीर चलाता हूं. अभी तो मैं प्रैक्टस कर रहा हूं. यह विदेश में ज्यादा होता है, इंडिया में नहीं होता है. दो-तीन महीने से अभ्यास कर रहा हूं. मेरा टारगेट 5 फीट से 20 फीट तक का है. मेरे पापा सिखाए हैं. मैं योगा में ओलंपिक खेलना चाहता हूं."- रूद्र प्रताप सिंह, नन्हा तीरंदाज

टॉय आर्चरी से प्रैक्टिस, कंपाउंड आर्चरी खरीदने को नहीं पैसे:रूद्र के पिता राकेश कुमार सिंह बताते हैं कि वह जहानाबाद के खरका गांव के रहने वाले हैं. गया में वह बच्चे को पढ़ाने को लेकर बोधगया के राजापुर में रहते हैं. रूद्र प्रताप सिंह को योग से काफी लगाव था तो उनकी देखरेख में ही योग की प्रैक्टिस उसने शुरू की और आज करीब डेढ़ सौ से अधिक योगासनों में उसको महारत है.

"संभवत रुद्र भारत का पहला बच्चा है, जो 9 साल की उम्र में 5 से 20 फीट का टारगेट करता है और चैलेंज करता है कि कोई उसे नहीं हरा सकता है. तीरंदाजी में वह निश्चित तौर पर मेडल लाएगा. टॉय आर्चरी से ही उसकी प्रैक्टिस चल रहा है. कंपाउंड आर्चरी खरीदने के लिए पैसे नहीं है. इसमें करीब ढाई लाख रुपए खर्च होते हैं. सरकार मदद कराए तो निश्चित तौर पर देश के लिए रुद्र ओलंपिक में गोल्ड मेडल तीरंदाजी में ला सकता है."- राकेश कुमार सिंह, रूद्र के पिता

ऐसे करता है प्रैक्टिस:रूद्र के पिता राकेश प्रसाद सिंह बताते हैं कि उसकी प्रैक्टिस सीधे खड़े होकर तीरंदाजी करने के अलावा हाथ के बल उल्टा खड़ा होकर भी तीर चलाने में माहिर है. बताते हैं कि पैर के अंगूठे से धनुष उठाता है. तीर पहले ही लगाता है फिर तमंचा पर चढ़ा दिया जाता है. फिर अंगूठे से धनुष को पकड़कर दूसरे पैर के अंगूठे से तीर को कमांड कर लक्ष्य पर सटीक निशाना लगाता है.



एकलव्य और अर्जुन भी कहते हैं लोग: फिलहाल आर्चरी में अविश्वसनीय प्रतिभा दिखाने वाले रूद्र को लोग एकलव्य-अर्जुन कहकर भी बुलाते हैं. यदि सरकार साधन मुहैया कराए तो निश्चित तौर पर देश के लिए रूद्र तीरंदाजी में ओलंपिक मेडल लाएगा और उसका लक्ष्य भी यही है कि वह देश के लिए ओलंपिक में गोल्ड मेडल जीते.


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