गया:बिहार के गया में विश्व प्रसिद्ध पितृपक्ष मेला चल रहा है. पितृपक्ष मेला 2023 के आठवें दिन विष्णुपद मंदिर के 16 वेदी नमक मंडप में 14 स्थान और पास के मंडप में दो स्थान पर पिंडदान होता है. 16 स्थान का एक स्थान में पिंडदान कर सभी 16 खंभे पर एक-एक पिंड चिपकाना होता है. विष्णुपद मंदिर के 16 वेदी नामक मंडप में पिंडदान से सात गोत्र माता-पिता, नाना-नानी, सास-ससुर और गुरु में 121 कुल का का उद्धार हो जाता है. यही वजह है कि आज के दिन की महत्ता और अधिक बढ़ जाती है.
विष्णुपद मंदिर के इन वेदियों पर पिंडदान का विधान: पितृपक्ष मेले के आठवें दिन यानी आश्विन कृष्ण षष्ठी को विष्णुपद मंदिर के 16 वेदी नामक मंडप में 14 स्थान पर और पास के मंडप में दो स्थान पर पिंडदान होता है. ये वेदियां हैं, कार्तिकपद दक्षिणाग्निपद, गार्हपत्याग्निपद, आवहनीयाग्निपद, संध्याग्निपद, आवसंंध्नियाग्निपद, सूर्यपद, चंद्रपद, गणेशपद, उधीचिपद, कण्वपद, मातंगपद, कौचपद, इंद्रपद, अगास्त्यपद और काश्यपद. इन वेदियों पर पिंडदान के बाद विष्णु चरण पर पिंड अर्पित किया जाता है.
सभी खंभों पर चिपकाना होता है पिंड:आश्विन कृष्ण षष्ठी को विष्णुपद मंदिर के 16 वेदी नामक स्थान पर पिंडदान होता है. इन 16 वेदी का एक स्थान पर पिंडदान का कर्मकांड होता है. पिंडदान का कर्मकांड होने के बाद उन सभी 16 वेदियों के 16 खंभे पर 1-1 पिंड चिपकाने का विधान है. विष्णु चरण पर भी पिंड अर्पित किया जाता है. मान्यता है कि विष्णुपद मंदिर के 16 वेदी नामक स्थान पर पिंडदान से सात गोत्र में 121 कुल का उद्धार हो जाता है.
सात गोत्र में 121 कुल का उद्धार:विष्णुपद मंदिर के 16 वेदी मंडप में पिंडदान का बड़ा ही महत्व है. मान्यता है कि यहां पिंडदान से सात गोत्र में 121 कुल का उद्धार हो जाता है. सात कुल में माता-पिता, नाना-नानी, सास-ससुर और गुरु शामिल होते हैं. इस तरह सात गोत्र में 121 कुल का उद्धार हो जाता है और पितर ब्रह्मलोक, शिवलोक, विष्णु लोक को प्राप्त होते हैं.
जौ के आटे का करना चाहिए पिंडदान:आश्विन कृष्ण षष्ठी को विष्णुपद मंदिर के 16 वेदियों में जौ के आटे से पिंडदान का विधान है. इन वेदियों के दर्शन से ही पितृदोष नष्ट हो जाते हैं. वहीं, पिंडदान से सात गोत्र में 121 स्कूल का उद्धार हो जाता है.
गया पितृपक्ष मेले के सात दिन पूरे:पितृपक्ष मेला 2023 के पहले दिन यानी 28 सितंबर को पुनपुन तट या गया के गोदावरी सरोवर पर श्राद्ध और पितृपक्ष मेले का उद्घाटन हुआ. दूसरे दिन यानी 29 सितंबर को फल्गु नदी के तट पर खीर के पिंड से श्राद्ध, फल्गु स्नान, प्रेतशिला जाकर ब्रह्मकुंड तथा प्रेतशिला पर पिंडदान वहां से रामशिला आकर रामकुंड और रामशिला पर पिंडदान और वहां से नीचे आकर काक बली स्थान पर काक यम तथा स्वान बलि नामक पिंडदान किया गया. तीसरे दिन यानी 30 सितंबर को प्रेतशिला, रामकुंड रामशिला ब्रह्मकुंड काकबली पर श्रद्धा की गई. चौथे दिन यानी 1 अक्टूबर को उत्तर मानस, उदीची, कनखल, दक्षिण मानस, जिहवा लोल वेदी पर पिंडदान किया गया. पांचवें दिन यानी 2 अक्टूबर को धर्मारणय बोधगया, सरस्वती स्नान, मातंग वापी, बोधगया में बोधि वृक्ष के नीचे श्राद्ध करने की विधि है. वहीं छठे दिन यानी 3 अक्टूबर को ब्रह्म सरोवर पर श्राद्ध किया गया, जबकि सातवें दिन यानी 4 अक्टूबर को विष्णुपद मंदिर में रूद्र पद ब्रह्म पद और विष्णुपद में खीर के पिंड से श्राद्ध किया गया.