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पितृपक्ष मेला पर संशय बरकरार, लोगों की उम्मीद कोरोना काल में हुए नुकसान की होगी भरपाई

इस साल 21 सितंबर से पितृपक्ष शुरू होने वाला है. गया में पितृपक्ष मेला लगने पर अब भी संशय बरकरार है. शहर के लोगों को उम्मीद है कि इस साल मेला लगेगा, जिससे उनकी पिछले साल हुई आर्थिक क्षति की भरपाई होगी. पढ़ें पूरी खबर...

Pitrapaksha Mela
पिंडदान

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Published : Aug 31, 2021, 8:25 AM IST

गया:पितृपक्ष(Pitru Paksha) में देश-विदेश से पिंडदानी अपने पितरों के मोक्ष के लिए गया में पिंडदान करने आते हैं. पिछले साल कोरोना महामारी (Corona Pandemic) के चलते पितृपक्ष मेला स्थगित कर दिया गया था. इससे करोड़ों रुपए का नुकसान हुआ था. इस साल मंदिर तो खुला है, लेकिन पितृपक्ष मेला पर संशय बरकरार है. पंडा और शहर के व्यवसायियों को उम्मीद है कि इस साल पितृपक्ष मेला लगेगा और कोरोना काल में हुए आर्थिक क्षति की भरपाई होगी.

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हर साल पितृपक्ष मेला की तैयारी दो माह पहले से होने लगती थी. इस साल 21 सितंबर से पितृपक्ष शुरू होने वाला है, लेकिन जिला प्रशासन की तरफ से कोई सुगबुगाहट नहीं है. गया में पितृपक्ष मेला से हर तबका जुड़ा हुआ है. पितृपक्ष मेला को लेकर सरकार और जिला प्रशासन द्वारा फैसला नहीं लिया जा रहा है, जिसके कारण छोटे से बड़े व्यापारी थोक खरीददारी नहीं कर रहे हैं. अगर इस साल भी मेला नहीं लगा तो शहर के लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भारी नुकसान उठाना पड़ेगा.

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पिंडदान में पीतल के बर्तन से विधि विधान किया जाता है. विष्णुपद मंदिर (Vishnupad Temple) क्षेत्र में बर्तन की करीब 200 दुकानें हैं. बर्तन दुकानदार मनीष कुमार ने कहा, 'इस साल मंदिर खुलने से थोड़ी उम्मीद है, लेकिन फैसला सरकार को लेना है. हम लोगों का आग्रह है कि सरकार हमारे पक्ष में फैसला ले. कोरोना काल में हमलोगों को बहुत क्षति हुई है. सरकार इसको ध्यान में रखते हुए और कोविड-19 की गाइडलाइन का पालन करवाते हुए पितृपक्ष मेला आयोजित करे.'

गया जी के पंडा द्वारा दिये गए सुफल से पिंडदान सफल होता है. पंडा तीर्थयात्रियों को अपने घर में रहने से लेकर हर व्यवस्था उपलब्ध करवाते हैं. जिला प्रशासन भी इसके लिए अनुमति देती है. पितृपक्ष आने में अब सिर्फ 22 दिन बचे हैं. अभी तक जिला प्रशासन ने तीर्थयात्रियों के ठहरने और सफाई व्यवस्था को लेकर कोई आदेश नहीं दिया है. विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के सदस्य महेश लाल गुप्त ने कहा, 'पूरी दुनिया में किसी भी तीर्थ स्थल पर श्रद्धालु 17 दिन रह कर आराधना नहीं करता है, लेकिन गया जी आने वाले श्रद्धालु यहां कम से कम 24 घंटे, 3 दिन, 1 सप्ताह या 17 दिन रुकते हैं. इतने दिनों में वे मानव जीवन में उपयोग होने वाले संसाधनों का प्रयोग करते हैं."

महेश लाल गुप्त ने कहा, 'तीर्थयात्रियों को 15 दिन में हर तबके और हर तरीके के संसाधन की जरूरत पड़ती है, जिससे गया वासियों को आर्थिक फायदा पहुंचता है. सरकार ने अभी तक पितृपक्ष मेला को लेकर कोई बात नहीं की है. सरकार को पितृपक्ष मेला लगाना रहता तो मंदिर खोलने के समय ही नोटिफिकेशन जारी कर देती. पितृपक्ष मेला नहीं होने से क्षेत्र में व्यापार कर रहे लोगों को करोड़ों का नुकसान होता है.'

"सरकार से हमारी मांग है कि जल्द से जल्द कोविड नियमों का पालन करवाते हुए पितृपक्ष मेला की शुरुआत की जाए. पूरे साल में एक बार गयाधाम क्षेत्र में पितृपक्ष मेला लगता है. पिछले साल पितृपक्ष मेला कोरोना से बचाव के लिए नहीं लगाया गया था. अब 22 दिन पितृपक्ष का बचा है. सरकार ने कोई आदेश जारी नहीं किया है. गया जिला में कोई उद्योग नहीं है. पर्यटन उद्योग ही गया जिले की अर्थव्यवस्था को चलाता है."- महेश लाल गुप्त, सदस्य, विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति

बता दें कि पितृपक्ष एक सांस्कृतिक और पारंपरिक प्रथा तो है ही साथ में गया वासियों के लिए आय का स्रोत भी है. पितृपक्ष से सिर्फ पंडा समुदाय ही नहीं हर तबके के लोग लाभान्वित होते थे. अगर इस साल भी पितृपक्ष मेला नहीं लगता है तो गया वासियों पर कोरोना के बाद दूसरी मार पड़ेगी. विष्णुपद क्षेत्र में फूलों की 21 दुकानें हैं. इन मालाकारों को पितृपक्ष मेला नहीं होने से बड़ी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है. मंदिर परिसर में फुटपाथ पर चूड़ी-सिंदूर और खिलौना बेचने वाले की हालत दयनीय है.

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