गया: बिहार के बोधगया में अब तक 18 बार कालचक्र पूजा आयोजित(Kalachakra Puja in Bodh Gaya) की जा चुकी है. मूल रूप से तिब्बत से कालचक्र पूजा की परंपरा शुरू हुई थी, उसके बाद कई देशों और भारत में कालचक्र पूजा (What is kalachakra puja) की शुरुआत हुई. इस पूजा में तांत्रिक साधना से विश्व शांति की कामना की जाती है. वहीं इसमें जीवित लोगों के लिए शांति और मृत लोगों के लिए मोक्ष की कामना की जाती है.
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क्या है कालचक्र पूजा? : कालचक्र पूजा की अगुवाई बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा करते हैं. कालचक्र पूजा के आयोजन पर पूरे विश्व के बौद्ध श्रद्धालु जुटते हैं. जानकारी के लिए बता दें, कि जिस स्थान पर कालचक्र पूजा होती है, उसका नाम कालचक्र हो जाता है. कालचक्र पूजा में तांत्रिक पूजा होती है उसमें विशेष लोग ही भाग लेते हैं. पूजा के संबंध में बताया जाता है कि इसकी विधि के क्रम में जो सूत्र बोला जाता है, उसे पेंटिंग के माध्यम से दर्शाया जाता है. इस तरह एक पूरा चक्र बन जाता है. इसे कालचक्र पूजा कहा जाता है.
3 दिन की होगी टीचिंग: 22 दिसंबर को बौद्ध धर्म गुरु दलाई लामा बोधगया पहुंचे हैं. वह करीब 1 माह तक बोधगया में प्रवास करेंगे. इस क्रम में 3 दिन 29, 30 और 31 दिसंबर को बौद्ध धर्म गुरु कालचक्र मैदान में टीचिंग करेंगे. इसमें नागार्जुन का पाठ होगा और 21 तारा देवी का अभिषेक किया जाएगा. तिब्बती पूजा समिति से जुड़े आम जी बाबा ने बताया कि गुरु जी प्रवचन करेंगे और अभिषेक देंगे. वहीं नए साल में कालचक्र मैदान से बौद्ध धर्मगुरु दलाई लामा की लंबी आयु के लिए पूजा की जाएगी. इसमें 50 से 60 हजार श्रद्धालु शामिल होंगे, जो कि पूरे विश्व से आते हैं. इसमें भाग लेने नेपाल, भूटान, यूरोप, अमेरिका समेत सभी देशों से श्रद्धालु आते हैं. बता दें कि 3 दिन की टीचिंग के दौरान बोधिसत्व की दीक्षा दी जाएगी.
कालचक्र पूजा का पहला दिन:कालचक्र पूजा के पहले दिन मंडला निर्माण के लिए धर्मगुरू द्वारा भूमि पूजन किया जाता है. उसके बाद तांत्रिक विधि विधान से मंडाला का निर्माण धर्मगुरू की देखरेख में बौद्ध लामाओं द्वारा किया जाता है. इसके लिए भूमि का चयन उत्तर-पूर्व दिशा में होता है. चयनित भूमि पर एक गड्डा खोदा जाता है और फिर इसी गड्डे से निकली मिट्टी से गड्डे को भरा जाता है. माना जाता है कि यदि मिट्टी गडडे से अधिक हो तो शुभ होता है. जबकि अगर कम पड़ जाए तो अशुभ होता है.