गया: बिहार के जिले में पहली बार ब्लैक राइस व ब्लैक व्हीट की खेती करने वाले प्रगतिशील किसान आशीष कुमार सिंह अब एंटी फंगल गुणों से भरा काली हल्दी की खेती कर रहे हैं. काली हल्दी की खेती करने वाले आशीष संभवतः सूबे में पहले किसान हैं. आशीष जिले के टिकारी प्रखण्ड के गुलारियाचक ग्राम के रहने वाले हैं और क्षेत्र में खेती में नये प्रयोगकर्ता के रूप में जाने जाते हैं.
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काली हल्दी में एंटी ऑक्सीडेंट पाया जाता है
एंटी फंगल व एंटी ऑक्सीडेंट के गुणों से भरा काली हल्दी की खेती किसान आशीष ने अपने पैतृक गांव गुलारियाचक ग्राम में कर रहे हैं. मूल रूप से आदिवासियों में प्रचलित यह काली हल्दी आशीष प्रयोग के तौर पर लगभग एक कट्ठा जमीन में खेती कर रहे हैं.
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लुप्तप्राय प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध है काली हल्दी
भारतीय कृषि विभाग ने वर्ष 2016 में काली हल्दी को लुप्त प्रायः प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया है. इंटरनेशनल जनरल ऑफ रिसर्च इन फार्मेसी एंड केमिस्ट्री में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार काली हल्दी का उपयोग करने से पेट दर्द, गैस्ट्रिक व तनाव से राहत पाने में काफी मदद मिलती है. साथ ही साथ यह शरीर में सूजन के साथ साथ संक्रमण को दूर करता है.
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ब्लैक व्हीट की खेती भी करते हैं आशीष
किसान आशीष खेती में नये-नये प्रयोग करने के लिए जाने जाते हैं. इसके पूर्व आशीष ब्लैक राइस, ब्लैक व्हीट, ब्लू व्हीट की खेती कर चुके हैं. आशीष बताते हैं कि इन सभी फसल का उत्पादन बहुत अच्छे तरीके से हुआ है. आशीष से खेती के गुर सीखने दूर-दराज से भी लोग आते हैं. कृषि के लिए आयोजित, कई कृषि कार्यक्रमों में आशीष बतौर वक्ता भी शामिल हुए हैं.
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क्या है काली हल्दी
लोग काली हल्दी के बारे में नहीं जानते हैं. लेकिन यह आमतौर से भारत के पूर्वोत्तर के साथ-साथ मध्यप्रदेश में उगाया जाता है. इसका मूल उपज स्थान पूर्वोत्तर और छत्तीसगढ़ रहा है. आदिवासियों के बीच यह पुष्टिकारक औषधि के रूप में पीढ़ियों से जाना जाता रहा है. पीली हल्दी की तरह ही इसका उपयोग किया जाता है. मध्यप्रदेश के कई आदिवासी समुदाय द्वारा काली हल्दी का उपयोग किया जाता है.