गया:आज से पितृपक्ष शुरू हो रहा है, भारतीय धर्म शास्त्र और कर्म कांड में पितृ पक्ष को बहुत महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है. 17 दिनों का पितृपक्ष 1 सितंबर से शुरू होकर 17 सितंबर को खत्म होगा. इस अवधि में लोग अपने पूर्वजों (पितरों) को पिंडदान करेंगें. बात पितृपक्ष की हो और बिहार के गयाजी का नाम ना लिया जाए, तो यह अधूरा सा लगता है. चलिए जानते हैं, विश्व प्रसिद्ध गया जी की अलौकिक कहानी.
विश्वभर में गया एक मात्र शहर है, जिसे नाम के साथ जी लगाया जाता है. मोक्ष की नगरी गयाजी सनातन धर्मावलंबियों के लिए खास स्थान है. पितरों के मोक्ष के लिए यहां देश के कोने-कोने से ही नहीं, बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु पहुंचते हैं. गया जी में फल्गू नदी की रेत के बने पिंड और पानी के तर्पण करने से ही पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है. धार्मिक वेद पुराणों में गया जी की पौराणिक कहानियां बयां हैं.
अंतिम पुरुषार्थ का स्थान गयाजी
मनुष्य के लिये वेदों में चार पुरुषार्थों का नाम लिया गया है, ये चार धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष हैं. ऐसे में अंतिम पुरुषार्थ मोक्ष की प्राप्ति का स्थान गयाजी को माना गया है. जब तीन पुरुषार्थ सार्थक हैं, तब ही मोक्ष सुलभ हो सकता है.
पितृपक्ष में गयाजी आते हैं पितर
पितृपक्ष यानी पितरों का पक्ष, इस पक्ष में पीतर अपने लोक से पृथ्वी लोक के गयाजी में आते हैं. कहा जाता है कि गयाजी में पीतर अपने वंशजों को देखकर काफी प्रसन्न होते हैं. यहां आटा, फल, फूल, भोजन और कुछ नहीं मिले, तो बालू का पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिल जाता है. उन्हें बैकुंठ की प्राप्ति होती है.
ब्रह्मा पुत्र ने शुरू किया पितृपक्ष में पिंडदान
पितृपक्ष में पिंडदान करने की शुरुआत ब्रह्मा जी के पुत्र ने शुरू की थी. वायु पुराण की कथा के अनुसार, 'प्राचीन काल में गयासुर ने दैत्यों के गुरु शंकराचार्य की सेवा कर वेद, वेदांत, धर्म तथा युद्ध कला में महारत हासिल की. इसके बाद उसने भगवान विष्णु की तपस्या कर उन्हें भी प्रसन्न कर लिया. भगवान विष्णु ने गयासुर को मनचाहा वरदान मांगने की बात कह दी. इसपर गयासुर ने वरदान मांगते हुए कहा कि भगवान जो भी मेरा दर्शन करे, वह सीधे बैकुंठ जाए. भगवान विष्णु तथास्तु कह कर चले गए.'
स्वर्ग में मचा हाहाकार
भगवान विष्णु से वरदान प्राप्त करते ही गयासुर का दर्शन और स्पर्श करके दैत्य, असुर, दानव सभी मोक्ष की प्राप्ति करने लगे. नतीजा यह हुआ कि यमराज सहित अन्य देवताओं का अस्तित्व संकट में आने लगा. फिर, ब्रह्मा जी ने देवताओं को बुलाकर सभा की और विचार विमर्श किया. इसके बाद भगवान विष्णु ने कहा कि आप सभी गयासुर उसके शरीर पर महायज्ञ करने के लिए राजी करें.