गया: बिहार के गया का मनफर गांवलोकनायक जयप्रकाश नारायण (Lok Nayak Jai Prakash Narayan) की कर्मभूमि रही है. इस गांव में आज भी जेपी से जुड़ी कई स्मृतियां मौजूद हैं. यह गांव उन्हें आज तक नहीं भूला है. एक ओर पूरा देश आज जेपी की 120वीं जयंती मना रहा है, तो वहीं ये गांव जेपी द्वारा किए गए कामों को याद कर रहा है. जेपी ने भूदान आंदोलन के समय इस गांव के लोगों के लिए कई कार्य किए थे. जिसे लोग आज भी याद करते नहीं थकते. लेकिन यहीं गांव (Bad Condition Of JP karmbhoomi Manafar Village) आज विकास की राह देख रहा है.
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1962 में मनफर गांव गए थे जेपीःदरअसल भूदान आंदोलन के समय वर्ष 1962 में जेपी गया के बाराचट्टी प्रखंड अंतर्गत मनफर गांव आए थे. 1962 में वे लगातार दो महीने यहां रहे थे. इसके बाद वर्ष 1963, 64, और 65 में भी लगातार आते रहे. इसके बाद भी उनका इस गांव में आना जाना लगा रहा. मनफर गांव जेपी की कर्मभूमि रही है. इस गांव को उन्होंने कार्य क्षेत्र के रूप में चुना था और चतुर्दिक विकास की योजना यहीं से बनाते थे. आज भी मनफर गांव में सर्वोदय आश्रम जर्जर हालत में मौजूद है. जेपी की पहल पर बना अनुसूचित विद्यालय और उनके नाम का आहर आज भी मौजूद है.
गांव में बनवाया अनुसूचित विद्यालयःजेपी की पहल पर तत्कालीन मुख्यमंत्री केबी सहाय ने महज 7 दिनों में अनुसूचित जाति विद्यालय बनवाया था. मुख्यमंत्री केबी सहाय जब बाराचट्टी के डाकबंगला पर आए थे, तो जयप्रकाश नारायण ने 15 मार्च 1965 को अनुसूचित विद्यालय की पहल की थी. जेपी की पहल के बाद महज 7 दिनों बाद यानी 22 मार्च मार्च 1965 को विद्यालय शुरू कर दिया गया था. यहां सिंचाई के लिए बनाया गया एक आहर आज भी मौजूद है. इस आहर को लोग जयप्रकाश नारायण आहर के नाम से ही जानते हैं.
गांव में की चकबंदी की शुरुआतःइतना ही नहीं जयप्रकाश नारायण ने गांव में चकबंदी की शुरुआत की, सभी किसानों को एक-एक जोड़ा बैल दिया था. वो यहां से सर्वोदय आश्रम से चतुर्दिक विकास की योजना बनाते थे. उन्होंने मनफर की जमीन की चकबंदी की. कई कुआं का निर्माण करवाया और सिंचाई के लिए कई आहर बनवाए. आहर का निर्माण श्रमदान से किया गया था, जिसमें देश भर से श्रमदान के लिए लोग आए थे.