मोतिहारी:दीपावली ( Diwali ) के अवसर पर दूसरों के घर को रोशन करने वालों के घर में एक दीया जलना भी मुश्किल हो गया है. एक तो सरकारी योजनाएं इनके घरों के चौखट तक आते-आते दम तोड़ देती है. जबकि पूरा परिवार मिट्टी के सामानों को बनाने के पुश्तैनी काम में लगा रहता है. तब जाकर कहीं दो जून की रोटी इन्हें मयस्सर होती है.
दूसरी ओर आधुनिकता के दौर में दीपावली के मौके पर लोग मिट्टी के दीपक के जगह चाइनीज लाइट्स से घरों को सजाने लगे हैं. वहीं कोरोना की मार से कुम्हारों की कमर अलग टूटी हुई है, जिस कारण उनको अपना लागत निकलना भी इस साल मुश्किल हो रहा है.
यह भी पढ़ें- धनतेरस से पहले ऑटोमोबाइल सेक्टर में बूम, राजधानी पटना में 200 करोड़ के कारोबार की उम्मीद
मिट्टी को चाक पर अपने हुनर के बदौलत तरह-तरह की आकृति में ढालने वाले कुम्हारों की जिन्दगी एक छोटे से किल पर नाचते चाक की तरह, उनकी अपनी पुश्तैनी काम के इर्द-गिर्द ही घूम रही है. गरीबी के साये में पेट पालने की जद्दोजहद में इन कुम्हारों का बचपन से लेकर बुढ़ापा तक मिट्टी के बीच ही बीत जाता है.
दीपावली का समय है. जिस में पौराणिक काल से ही मिट्टी के बने दिये का महत्त्व रहा है. मिट्टी के काम में जुटे कुम्हार परिवार इस दीपावली में अपने कमाई के लिए दीया बनाने में जुटा हुआ है. पुश्तैनी काम को ही रोजगार का साधन बना चुके कुम्हारों से दूसरा काम भी हो पाना मुश्किल है. जिस कारण मिट्टी के बरतन बनाकर परिवार पालने की मजबूरी में इन्हे अपने चाक को रफ्तार पकड़ानी पड़ती है, चाहे आमदनी पहले जैसी हो या नहीं हो.
ये भी पढ़ें- पटना: दीपावली पर मिट्टी के दीयों की बढ़ी मांग, कुम्हारों को मुनाफे की जगी आस
बहरहाल, कुम्हारों के हालात को सुधारने के लिए उनके बनाये गए दीये को खरीदने की मुहीम चलाने वालो के घर खुद चाइनीज लाइट्स से रोशन होते रहे हैं. लिहाजा, सरकारी योजनओं से महरुम इन कुम्हारों के हुनर और कला को समझने की जरुरत है, जो इस आधुनिकता के दौर भी पौराणिक काल से चले आ रहे दीपावली के सही अर्थ को समझने में आज भी वे सपरिवार हमारी मदद करते हैं. इसलिए इस साल दीपावली में उनके हाथों से बने मिट्टी के दीपक को जलाकर कुम्हारों के कला का हम आदर करेंगे.व हीं दूसरी ओर हमारे इस प्रयास से कुम्हारों घर को भी रौशनी मयस्सर हो सकेगी.