पूर्वी चंपारण(मोतिहारी): बिहार विधानसभा चुनाव का शंखनाद हो गया है. चुनाव आयोग के निर्देश पर मतदान प्रतिशत बढ़ाने और लोगों को कोरोना प्रटोकॉल के प्रति जागरुक करना जिला प्रशासन के लिए बड़ी चुनौती है. इन सब के बीच वीवी-पैड पर लगे उम्मीदवारों के नाम और चुनाव चिन्ह के साथ सबसे नीचे 'नोटा' का विकल्प रहता है, जिसके बारे में सुदूर ग्रामीण क्षेत्र के लोगों को पता तक नही है, इससे जिला प्रशासन की चुनाव की तैयारियों पर भी सवाल खड़े होते हैं.
ग्रामीणों को 'नोटा' के बारे में नहीं है जानकारी
ईटीवी भारत की टीम जिले के चिरैया प्रखंड के सुदूर जयपाल टोला गांव पहुंची. गांव के लोगों से वीवी-पैट में उम्मीदवारों की लिस्ट के सबसे नीचे लगे विकल्प 'नोटा' बटन के बारे में पूछे जाने पर ग्रामीणों ने कहा कि उन्हें इसके बारे में कोई जानकारी नहीं है.
ग्रामीणों को 'नोटा' के बारे में नहीं है जानकारी 'बताएम तब नू जानकारी होई'
गांव की ही रहने वाली बासमती देवी से नोटा के बारे में पूछने पर उन्होंने अपनी भाषा में कहा कि 'बताएम तब नू जानकारी होई' (कोई बताइगा तब जानकारी होगी ना). इसी प्रकार ग्रामीण भैरव लाल प्रसाद ने बताया कि वह जब वोट देने जाते हैं, तो केवल पार्टी के चुनाव चिन्ह को देखकर बटन दबा देते हैं.
नोटा का मतलब जानते हैं आप?
नोटा का मतलब 'नान ऑफ द एवब' यानी इनमें से कोई नहीं है. अब चुनाव में आपके पास एक और विकल्प होता है कि आप 'इनमें से कोई नहीं' का बटन दबा सकते हैं. यह विकल्प है नोटा. इसे दबाने का मतलब यह है कि आपको चुनाव लड़ रहे कैंडिडेट में से कोई भी उम्मीदवार पसंद नहीं है. ईवीएम मशीन में इनमें से कोई नहीं या नोटा का बटन गुलाबी रंग का होता है.
पहली बार कब हुआ नोटा का इस्तेमाल?
भारतीय निर्वाचन आयोग ने दिसंबर 2013 के विधानसभा चुनावों में इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन यानी ईवीएम में इनमें से कोई नहीं या 'नोटा' बटन का विकल्प उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे. चुनाव आयोग ने वर्ष 2014 में नोटा को पूरे देश में लागू किया और वर्ष 2018 में चुनाव आयोग ने नोटा को उम्मीदवारों के समकक्ष का दर्जा दे दिया था.
वोटों की गिनती के समय नोटा पर डाले गए वोट को भी गिना जाता है. नोटा में कितने लोगों ने वोट किया, इसका भी आंकलन किया जाता है. चुनाव के माध्यम से मतदाता का किसी भी उम्मीदवार के अपात्र, अविश्वसनीय और अयोग्य अथवा नापसंद होने का यह मत (नोटा) केवल यह संदेश होता है कि कितने प्रतिशत मतदाता किसी भी प्रत्याशी को नहीं चाहते.