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ग्राउंड रिपोर्टः बाढ़ पीड़ितों का हाल देखिए सरकार, घोंघा-सितुआ खाकर बुझा रहे 'पेट की आग'

बिहार के 14 जिले बाढ़ की चपेट में हैं. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बाढ़ से पहले बैठक करके अधिकारियों को तैयारी पूरी करने के निर्देश दिए थे, लेकिन लोगों तक मदद नहीं पहुंच पा रही है.

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Published : Aug 10, 2020, 7:06 PM IST

दरभंगाः 'न चावल है न दाल, न आटा है न आलू, क्या खाएं, घोंघा-सितुआ खा कर ही बाल-बच्चों को किसी तरह जिंदा रख रहे हैं कोई सहारा नहीं है हमारा'.. ये शब्द जिले के बाढ़ प्रभावित लोगों के हैं. जो सरकार से मदद की आस लगाए बैठे हैं, लेकिन उन तक कोई मदद नहीं पहुंच रही है. बच्चे हो या बुजुर्ग सभी दाने दाने को मेहताज हो गए हैं.

नहीं पहुंच रही सहायता
ईटीवी भारत लगातार बाढ़ की स्थिति पर ग्राउंड रिपोर्ट दे रहा है. हमारे संवाददाता जब बहादुरपुर ब्लॉक के छपरार गांव पहुंचे तो वहां बांध पर शरण लिए बाढ़ पीड़ितों के दर्द ठलक उठे. जिले के 18 में से 15 प्रखंडों की 20 लाख से ज्यादा की आबादी बाढ़ से प्रभावित है. सरकार बाढ़ पीड़ितों के मदद के दावे कर रही है, लेकिन जरूरतमंद लोगों तक सहायता नहीं पहुंच पा रही है.

देखें रिपोर्ट

मवेशियों के लिए नहीं है चारा
बहादुरपुर प्रखंड के बाढ़ प्रभावित छपरार गांव के 50 से ज्यादा परिवार कमला नदी के तटबंध पर प्लास्टिक शीट तान कर रह रहे हैं. पीड़ितों के अनुसार इन तक न तो भोजन पहुंच रहा है और न ही मवेशियों के लिए चारा. ये लोग घोंघा-सितुआ चुन कर खा रहे हैं. पशुओं को सड़ा भूसा खिला रहे हैं. अब तक 6 हजार रुपये की सरकारी मदद भी इनके खाते में नहीं पहुंची है.

तटबंध पर शरण लिए लोग

बारिश में भीग रहे लोग
बाढ़ पीड़ितों की सुधि लेने के लिए न कोई जनप्रतिनिधि और कोई सरकारी अधिकारी ही आ रहा है. इसे लेकर लोगों में काफी आक्रोश देखने को मिल रहा है. लोग अगले चुनाव में जन प्रतिनिधियों से अपनी तकलीफ का हिसाब मांगने की बात कह रहे हैं. स्थानीय पलटन कामति ने कहा कि ने कहा कि भोजन-पानी से लेकर पशुओं के चारे तक की बहुत दिक्कत है. बांध पर झोपड़ी बना कर रह रहे हैं. प्लास्टिक की छप्पर फट गई है जिसकी वजह से बारिश में भीग कर रहते हैं.

पशुओं को नहीं मिल रहा चारा

नहीं मिल रहा खाना
पलटन कामति ने बताया कि गांव में जो कम्युनिटी किचन चलता है उसका खाना हम लोगों तक नहीं पहुंचता है. स्थानीय बॉबी देवी ने कहा कि सड़क पर रहने की वजह से हर चीज की दिक्कत है. उनका घर इस बाढ़ में गिर गया है. मदद की कोई व्यवस्था नहीं है.

सांप-बिच्छू का डर
वहीं, स्थानीय प्रमिला देवी ने कहा कि गांव छोड़ कर बांध पर रहते हुए करीब एल महीना हो गया है. बांध पर सांप-बिच्छू समेत कई खतरनाक कीड़ों का डर लगता है. इसी डर के बीच बाल-बच्चों के साथ यहां रह रहे हैं. कोई उनको देखने या पूछने नहीं आता है.

प्लास्टिक शीट तान कर रह रहे लोग

'जनप्रतिनिधियों से लेगें हिसाब'
बाढ़ प्रभावित बबलू कामति ने कहा कि मुखिया-सरपंच और विधायक की कौन कहे वार्ड मेंबर तक पूछने नहीं आते हैं. उन्होंने कहा कि अबकी बार चुनाव में वोट मांगने जो भी जनप्रतिनिधि आएंगे उनसे वे इस दुख-तकलीफ का हिसाब जरूर मंगेंगे. वहीं, झलिया देवी ने कहा कि बच्चे पानी में जाकर घोंघा-सितुआ चुन कर लाते हैं तो उसी से गुजारा चलता है.

घोंघा-सितुआ बना रही महिला

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